डीएनए हिंदी: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के दायरे से संबंधित परिसीमन आयोग को हरी झंडी दे दी है. सुप्रीम कोर्ट ने परिसीमन आयोग के गठन को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है. सोमवार को जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एएस ओका की एक बेंच ने इस याचिका को खारिज कर दिया है. दो कश्मीरी निवासियों ने सुप्रीम कोर्ट में परिसीमन के खिलाफ याचिका दायर की थी.
सुप्रीम कोर्ट ने केस पर फैसला सुनाते हुए कहा कि केंद्र सरकार को अधिकार और शक्ति है कि वह निर्वाचन आयोग की सहमति से परिसीमन आयोग का गठन कर सकती है. जस्टिस एएस ओका ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इस फैसले में किसी भी चीज को संविधान के अनुच्छेद 370 के खंड एक और तीन के तहत शक्ति के प्रयोग का अनुमोदन नहीं माना जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 370 से संबंधित शक्ति के प्रयोग की वैधता का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित याचिकाओं का विषय है.
क्या परिसीमन की वजह से चुनाव में हो रही थी देरी?
जम्मू कश्मीर में 2014 के बाद से ही विधानसभा चुनाव नहीं हुए हैं. चुनाव में देरी की सबसे बड़ी वजह कश्मीर के मौजूदा हाल के साथ-साथ परिसीमन भी है. परिसीमन पर सुप्रीम कोर्ट में फैसला लंबित होने की वजह से भी चुनाव नहीं हो पा रहे थे. अब चुनाव आयोग, चुनाव कराने पर ज्यादा स्पष्ट फैसले ले सकता है.
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सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र ने क्या कहा था?
1 दिसंबर 2023 को सुनवाई के दौरान केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि जम्मू कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के लिए गठित परिसीमन आयोग को ऐसा करने का अधिकार है. केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने परिसीमन आयोग के गठन के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करने का अनुराध करते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 केंद्र सरकार को परिसीमन आयोग की स्थापना किए जाने से रोकता नहीं है.
केंद्रीय विधि और न्याय मंत्रालय ने 6 मार्च, 2020 को परिसीमन अधिनियम, 2002 की धारा तीन के तहत अपनी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए एक अधिसूचना जारी की थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में एक परिसीमन आयोग का गठन करने की बात की गई थी.
केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्त करके जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द कर दिया था. शीर्ष अदालत ने परिसीमन आयोग गठित करने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर पिछले साल एक दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
याचिका में किन मुद्दों पर थी आपत्ति?
हाजी अब्दुल गनी खान और मोहम्मद अयूब मट्टू ने परिसीमन के खिलाफ याचिका दायर की थी. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि परिसीमन की कवायद संविधान की भावनाओं के विपरीत की गई थी और इस प्रक्रिया में सीमाओं में परिवर्तन तथा विस्तारित क्षेत्रों को शामिल नहीं किया जाना चाहिए था.
याचिका में यह घोषित करने की मांग की गई थी कि जम्मू कश्मीर में सीट की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 करना संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों, विशेष रूप से जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 63 के तहत अधिकारातीत है. याचिका में दावा किया गया था कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में 24 सीटें कैसे बढ़ाई जा सकती हैं.
याचिका में कहा गया था कि 2001 की जनगणना के बाद प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करके पूरे देश में चुनाव क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण की कवायद की गई थी और परिसीमन अधिनियम, 2002 की धारा तीन के तहत 12 जुलाई, 2002 को एक परिसीमन आयोग का गठन किया गया था.
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क्या हैं याचिका की प्रमुख बातें?
1. याचिका में कहा गया था कि आयोग ने पांच जुलाई, 2004 के पत्र के जरिए विधानसभा और संसदीय क्षेत्रों के परिसीमन के लिए संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों के साथ दिशा-निर्देश और कार्यप्रणाली जारी की थी.
2. याचिका में कहा गया था, 'यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और पांडिचेरी के संघ शासित प्रदेशों सहित सभी राज्यों की विधानसभाओं में मौजूदा सीटों की कुल संख्या, जैसा कि 1971 की जनगणना के आधार पर तय की गई है, वर्ष 2026 के बाद की जाने वाली पहली जनगणना तक अपरिवर्तित रहेगी.'
3. याचिका में 6 मार्च, 2020 की उस अधिसूचना को असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया था, जिसमें केंद्र द्वारा जम्मू कश्मीर और असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड राज्यों में परिसीमन करने के लिए परिसीमन आयोग का गठन किया गया था. (इनपुट: भाषा)
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