डीएनए हिंदी: पंजाब की राजनीति (Punjab Politics) की धुरी रहे अकाली दल (Akali Dal) आज राज्य में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. अकालियों के सभी गुट राजनीतिक अनिश्चितता का अनुभव कर रहे हैं. जब से शिरोमणि अकाली दल (B) के संरक्षक प्रकाश सिंह बादल (Prakash Singh Badal) ने सक्रिय राजनीति को अलविदा कहा है तब से स्थिति और खराब होती नजर आ रही है.
बादल परिवार से नाराज अकाली गुटों ने शिरोमणि अकाली दल (बी) से अलग कई गुटों की नींव रखी.
रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा ने शिअद (टकसाली), सुखदेव सिंह ढींडसा ने एसएडी (लोकतांत्रिक) का गठन किया. जब ये राजनीतिक दल किसी भी तरह से पंजाब के सिख वोटरों को लुभाने में फेल रहे तो सबने एक होकर शिअद (संयुक्ता) का गठन किया. नतीजे वैसे के वैसे ही रहे.
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बादल परिवार के तले रहने अकालियों को नहीं मंजूर
ढींढसा और ब्रह्मपुरा दोनों को उनकी कथित पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए शिअद (बी) से निष्कासित कर दिया गया था. सिर्फ यही नहीं, अकाली दल के एक और सीनियर नेता सेवा सिंह सेखवां ने बादल परिवार से नाता तोड़कर आम आदमी पार्टी (AAP) की राह पकड़ ली.
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जिन नेताओं ने शिअद से किनारा किया उन्होंने कहा कि बादल के नेतृत्व वाली पार्टी में उन्हें घुटन हो रही है. यह पार्टी भाई-भतीजावाद तक सीमित हो गई है, यही वजह है कि अब इसमें रहना मुमकिन नहीं रह गया है.
क्या है अकालियों की असली चुनौती?
पंजाब में एक तरफ आम आदमी पार्टी (AAP) ने मजबूत जड़ें जमा ली हैं. दूसरी तरफ कांग्रेस अच्छी टक्कर में रहती है. भारतीय जनता पार्टी राज्य में स्वतंत्र अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. जहां इन सभी पार्टियों की नींव में धर्मनिरपेक्षता और विकासवाद है वहीं दूसरी तरफ आज भी अकाली दल पंथिक राजनीति से बाहर नहीं निकल पाए हैं. AAP के जीतने की एक बड़ी वजह सिर्फ उसकी विकास आधारित राजनीति है. अकाली दल सिखों की पार्टी बनने के लिए बेचैन नजर आते हैं.
खत्म हो गया बादल परिवार का मैजिक
SAD (B) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल का मैजिक भी अब खत्म हो गया है. पार्टी के भीतर इनसे लोग इस्तीफा तो नहीं मांग रहे हैं लेकिन बगावत शुरू हो गई है. दूसरी अकाली गुट सुखबीर को पद से हटाने की मांग कर रहे हैं. अकाली गुटों को लग रहा है कि अगर बादल परिवार हटता है तो नई राजनीतिक संभावनाएं पैदा हो सकती हैं. शिअद के सभी दल सत्ता में बने रहना चाहते हैं. अकाली दल अब पंथ की राह से भी अलग होकर व्यक्तिगत राजनीति पर उतरते नजर आ रहे हैं.
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क्यों संकट का सामना कर रहा है अकाली गुट?
शिअद (बी) चौतरफा घिरती भी नजर आ रही है. पार्टी के सीनियर रणनीतिकार और प्रभावी नेता बिक्रम सिंह मजीठइया ड्रग केस में सलाखों के पीछे तक पहुंच गए. ऐसे में पार्टी की छवि और भी प्रभावित हुई है.
अकाली दल अक्सर यह कहते नजर आ रहे हैं कि वे पंथिक मूल्यों की रक्षा करने चाहते हैं और विकासवादी राजनीति पर आगे बढ़ना चाहते हैं लेकिन वे कभी नहीं मानने को तैयार होते हैं कि उनके शासनकाल में बेअदबी की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं.
(यहां दिए गए विचार लेखक के नितांत निजी विचार हैं. यह आवश्यक नहीं कि डीएनए हिन्दी इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे और आपत्ति के लिए केवल लेखक ज़िम्मेदार है.)
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