डीएनए हिंदी: द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती (Swaroopanand Saraswati) का आज यानी रविवार को निधन हो गया है. ज्योतिष और द्वारका-शारदा पीठ के शंकाराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में 99 साल की उम्र में अंतिम सांस ली थी.

खबरों के मुताबिक वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे. ध्यान देने वाली बात यह भी है कि वे एक प्रकांड विद्वान संत और शंकराचार्य तो थे ही लेकिन उन्होंने देश की आजादी की लड़ाई में भी अपना योगदान दिया था. साथ ही वे इस दौरान जेल भी गए थे. इतना ही नहीं अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भी उन्होंने लंबी कानूनी लड़ाई भी लड़ी थी.

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करोड़ों हिंदुओं की आस्था के प्रतीक

आपको बता दें कि शंकाराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को हिंदुओं का सबसे बड़ा धर्मगुरु माना जाता था. उन्हें करोड़ों हिंदुओं और सनातनियों की आस्था के ज्योति स्तंभ के रूप में जाना जाता था. राम मंदिर आंदोलन से लेकर कानूनी लड़ाई और स्वतंत्रता संग्राम सभी में उनकी सक्रियता उनके राष्ट्रप्रेम और हिंदुत्व को लेकर प्रेम को दर्शाता है.

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मध्य प्रदेश में हुआ था जन्म

शंकाराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म ब्राह्मण परिवार में मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में हुआ था. उनके परिजनों ने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था. उन्होंने सिर्फ 9 साल की उम्र में घर छोड़ स्वयं को एक धर्म को समर्पित कर दिया था. 

आपको बता दें कि इनके माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था. इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली थी. यह वह समय था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी और वे भारत छोड़ों आंदोलन में भी शामिल हुए थे. 

स्वतंत्रता आंदोलन में थे सक्रिय

गौरतलब है कि जब 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और 19 साल की उम्र में वह 'क्रांतिकारी साधु' के रूप में प्रसिद्ध हुए थे. इसी दौरान उन्होंने वाराणसी की जेल में नौ और मध्यप्रदेश की जेल में छह महीने की सजा भी काटी थी.

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शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती करपात्री महाराज की राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी थे. 1940 में वे दंडी संन्यासी बनाये गए और 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली. 1950 में शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा ली और इसके साथ ही वे स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे थे. 

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Shankaracharya of Dwarkapeeth Swaroopanand Saraswati passed away, breathed his last at the age of 99
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शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का निधन, 99 साल की उम्र में ली अंतिम सांस 
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Shankaracharya of Dwarkapeeth Swaroopanand Saraswati passed away, breathed his last at the age of 99
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शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का निधन, 99 साल की उम्र में ली अंतिम सांस