डीएनए हिंदी: राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 में कांग्रेस की हार के बाद से ही तकरार देखने को मिल रही है. लगातार मेहनत और प्रभावी चुनाव प्रचार के बाद भी कांग्रेस रिवाज बदलने में कामयाब नहीं हो पाए. राजस्थान सरकार की चिरंजीवी योजना, सस्ता सिलेंडर जैसी योजनाओं की तारीफ मतदाताओं ने भी की थी. हालांकि, इसके बाद भी पार्टी की करारी हार के बाद अंदरूनी कलह भी बढ़ गई है. अशोक गहलोत ने कांग्रेस की बैठक में कहा कि चुनाव के दौरान बीजेपी की सांप्रदायिक रणनीति सफल रही है. राज्य सरकार की योजनाएं अच्छी थीं और इससे लोगों को वाकई लाभ मिला था. हालांकि, राहुल गांधी इससे सहमत नहीं हुए और उन्होंने कहा कि योजनाएं अच्छी थीं लेकिन उनका रैलियों में ही ज्यादा प्रचार हुआ और धरातल पर उतरने में कामयाब नहीं हो सकीं.
सूत्रों का कहना है कि बैठक के दौरान राहुल गांधी और राजस्थान के पूर्व सीएम के बीच राजस्थान चुनाव पर चर्चा के दौरान बहस का माहौल भी बन गया था. चुनाव से पहले भी विधायकों के टिकट काटने के मुद्दे पर राहुल गांधी की नहीं चली थी और गहलोत अपने चहेतों को टिकट दिलाने में कामयाब रहे. राजस्थान सरकार के 23 मंत्रियों में से सिर्फ 6 ही अपनी सीट बचा सके और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष ने इस पर भी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने टिकट वितरण को लेकर अपनी आपत्तियों का खुलकर इजहार किया.
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गहलोत से सहमत नहीं दिखे राहुल गांधी
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में वोट प्रतिशत का अंतर दिखाते हुए अशोक गहलोत ने तर्क दिया कि राजस्थान में यह फासला सिर्फ 2 फीसदी तक का है. उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी चुनावों में ध्रुवीकरण करने में कामयाब रही. वोट प्रतिशत के तर्क से राहुल गांधी सहमत नहीं हुए. उन्होंने कहा कि अगर ध्रुवीकरण का तर्क सही होता तो कांग्रेस 40 फीसदी का वोट शेयर नहीं बनाए रख पाती. सूत्रों का कहना है कि चुनाव लड़ने की रणनीति में कमी थी और इस वजह से पार्टी के अंदर संवादहीनता की स्थिति बनी. कार्यकर्ताओं के मनोबल पर इसका असर देखने को मिला. बता दें कि कांग्रेस में 4 साल तक सचिन पायलट और अशोक गहलोत खेमे के बीच खींचतान चलती रही.
राजस्थान में बदलेगा नेतृत्व, यह सवाल अब भी कायम
लंबे समय से यह चर्चा है कि राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस नेतृत्व में बदलाव की चर्चा होती रही है लेकिन अब तक इस पर कोई ठोस काम देखने को नहीं मिला है. लोकसभा चुनाव में अब 6 महीने का वक्त भी नहीं बचा है और कांग्रेस के पास न तो संगठन को एकजुट करने और कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने के लिए कोई सिरा है और न प्रदेश नेतृत्व को लेकर स्पष्टता है. हिंदी पट्टी के राज्यों में पार्टी का प्रदर्शन पिछले दो चुनावों से निराशाजनक ही रहा है.
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हार के बाद कांग्रेस में घमासान, गहलोत ने गिनाए कारण तो राहुल ने खूब सुनाया