डीएनए हिंदी: आतंकवाद से कतर के रिश्ते किसी से छिपे नहीं हैं. भारत जैसे देश ही नहीं अरब देश भी कतर के इस रवैये से परेशान हैं. साल 2014 में सऊदी अरब और यूएई ने इस्लामिक आतंकवाद को समर्थन देने का आरोप लगाकर कतर से अपने राजदूत वापस बुला लिए थे. हालांकि, इसके बाद भी जब कतर का रवैया नहीं बदला तब साल 2017 में अरब देशों के एक समूह, जिसमें सऊदी अरब, यूएई, ओमान, मिस्र और बहरीन ने कतर से अपने सभी रिश्ते तोड़ लिए थे. यही नहीं इस समूह ने कतर की व्यापारिक घेराबंदी कर दी थी. पिछले कुछ वक्त में कतर और पाकिस्तान के रिश्ते मजबूत हुए हैं और इजरायल पर हमास के हमले के बाद भी कतर ने खुलकर हमास का साथ दिया है.
कतर का बायकॉट कर चुके हैं UAE, सऊदी और ओमान
कतर के एक छोर पर समंदर है और बाकी तीन ओर से सऊदी अरब, ओमान और यूएई से घिरा हुआ है. इन देशों ने कतर को जाने वाले अपने सभी रास्ते बंद कर दिए थे।यही नहीं कतर की एयरलाइंस को अपना एयरस्पेस इस्तेमाल करने से भी रोक दिया था. इसके अलावा, इन देशों ने समुद्री सीमा में भी कतर की घेराबंदी कर दी थी. कतर के हालात ये हो गए थे कि उसे अपना सारा व्यापार ईरान के जरिए करना पड़ता था जो ज्यादा खर्चीला था.
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घेराबंदी खत्म करने के लिए रखी थी यें शर्तें
घेराबंदी खत्म करने के लिए सऊदी अरब, ओमान और यूएई ने कतर के आगे कुछ शर्तें रखी थीं.
- पहली शर्त ये थी कि कतर इस्लामिक आतंकवाद को बढ़ावा देना बंद करेगा.
- दूसरी शर्त थी कि कतर आतंकवादी संगठनों को आर्थिक मदद देना बंद करेगा.
- तीसरी शर्त थी कि कतर दुनियाभर के इस्लामिक आतंकवादी सरगनाओं को अपने यहां शरण नहीं देगा.
- चौथी शर्त ये थी कि कतर, अल-जजीरा न्यूज चैनल पर प्रतिबंध लगाएगा.
- पांचवी शर्त थी कि ईरान और तुर्किए के साथ अपने संबंध कम करेगा.
अमेरिका की कतर की दोहरी नीति से परेशान
हालांकि, इनमें ज्यादातर शर्तों को कतर ने नहीं माना लेकिन करीब 4 सालों तक इन अरब देशों ने कतर की घेराबंदी बनाए रखी थी. इस वजह से कतर का बहुत बड़ा नुकसान हर साल होता रहा. आखिरकार कतर ने कुछ शर्तों पर हामी भरी और अमेरिका के बीच बचाव के बाद अरब देशों ने कतर की घेराबंदी खत्म कर दी. अमेरिका के लिए कतर एक महत्वपूर्ण सामरिक साझीदार है. अरब देशों में अमेरिका का सबसे बड़ा सैन्य ठिकाना कतर में ही है. आधिकारिक तौर पर अमेरिका ने कतर को अपना मुख्य नॉन नाटो पार्टनर बताया है. इसके बावजूद अमेरिका भी आतंकवाद के मामले में कतर की दोहरी नीति से परेशान है.
कतर को टेरर फंडिंग के लिए ट्रंप ने लगाई थी लताड़
वर्ष 2017 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने कहा था कि कतर बहुत बड़े स्तर पर आतंकवाद की फंडिंग करता है. उन्होंने तब ये भी कहा था कि वक्त आ चुका है कि जब कतर की टेरर फंडिंग पर रोक लगानी पड़ेगी. भले ही कतर दावा करता हो कि वो आतंकवाद के खिलाफ है, लेकिन हमास से लेकर तालिबान, मुस्लिम ब्रदरहुड जैसे आतंकवादी संगठनों के सरगनाओं को पनाह देता है. यही नहीं कतर वो देश है जो आतंकवादी संगठनों और विश्व के अन्य देशों के बीच डील करवाता है.
आतंकी संगठनों के साथ डील कराने में अहम भूमिका
अमेरिका और तालिबान के बीच जो डील हुई थी वह भी कतर की राजधानी दोहा में ही हुई थी. अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ अमेरिका जंग में उतरा हुआ था, तब तालिबान के कई बड़े नेताओं को कतर ने ही शरण दी हुई थी. इसी तरह से फिलिस्तीन के आतंकी संगठन हमास के बड़े नेता भी इस वक्त कतर में ही मौजूद हैं. हमास का चीफ इस्माइल हानिया भी साल 2012 से दोहा में ही आलीशान जिंदगी जी रहा है. 7 अक्टूबर यानी जिस दिन हमास ने इजरायल पर हमला किया था उस दिन भी इस्माइल हानिया कतर में मौजूद था. उसका एक वीडियो भी सामने आया था जिसमें वो इस हमले के बाद खुशी का इजहार कर रहा था.
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हमास को देता है बड़ी आर्थिक मदद
यही नहीं कतर हर महीने हमास को 30 मिलियन डॉलर यानी करीब 250 करोड़ रुपये देता है. इसके अलावा, 2017 में कतर ने सीरिया में मौजूद अलकायदा आतंकी संगठन को 1 बिलियन डॉलर यानी करीब साढ़े 8 हजार करोड़ रुपये फिरौती के बहाने दे दिए थे. अल जजीरा के जरिए अपने पड़ोसी अरब देशों के आंतरिक मामलों में भी कतर दखल देता आया है. अरब स्प्रिंग आंदोलन के दौरान अल-जजीरा ने कई खाड़ी देशों में मौजूद सरकार के खिलाफ माहौल बनाया था. जब कतर के शाही परिवार के खिलाफ कोई प्रदर्शन होता था तब अल-जजीरा उसे नहीं दिखाता था. 7 अक्टूबर को हमास के हमले के बाद जब अमेरिकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकन, कतर के अमीर अल थानी से मिले थे.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्होंने कतर से अल-जजीरा की आवाज कम करने के लिए कहा था. यानी अल-जजीरा को गाजा पट्टी पर हो रहे हमले को लेकर दिखाए जाने वाले भड़काऊ खबरों को रोकने के लिए कहा था. आपको याद होगा कि कतर वो देश है जिसने नुपुर शर्मा के मामले में सबसे पहले भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की थी. कतर ने नुपुर शर्मा पर ईशनिंदा का आरोप लगाते हुए भारत पर कार्रवाई करने का दबाव बनाया था. कतर वही देश है जिसने हिंदू देवी देवताओं को आपत्तिजनक तस्वीर बनाने वाले पेंटर एमएफ हुसैन को ना सिर्फ अपने यहां शरण दी थी बल्कि उन्होंने कतर की नागरिकता भी दे दी थी.
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