प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की डिग्री सार्वजनिक करने के केंद्रीय सूचना आयोग के आदेश को दिल्ली यूनिवर्सिटी प्रशासन ने चुनौती दी है. डीयू की ओर से हाई कोर्ट में दी गई दलील में कहा गया है कि आरटीआई (RTI) का उद्देश्य किसी तीसरे पक्ष की जिज्ञासा संतुष्ट करना नहीं है. जस्टिस सचिन दत्ता की बेंच के पास मामले की सुनवाई चल रही है. पीएम मोदी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से साल 1976 में बीए की परीक्षा पास की थी.
यह है पूरा मामला
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि विश्वविद्यालय की जिम्मेदारी होती है कि वह अपने स्टूडेंट्स की जानकारी सुरक्षित रखे. इसे किसी तीसरे अजनबी के साथ साझा करने के कई नुकसान हो सकते हैं. आरटीआई कार्यकर्ता नीरज ने पीएम मोदी की डिग्री सार्वजनिक करने के संबंध में याचिका दाखिल की थी. केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने 21 दिसंबर, 2016 को 1976 में इस साल बीए करने वाले सभी छात्रों की लिस्ट सार्वजनिक करने का आदेश दिया था. हालांकि, इस आदेश पर जनवरी 2017 में हाई कोर्ट ने रोक लगाया है.
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सॉलिसिटर जनरल ने दिए तर्क
दिल्ली यूनिवर्सिटी की ओर से पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि दिल्ली यूनिवर्सिटी की स्थापना 1922 में हुई थी. आरटीआई कानून के तहत, 1976 में उत्तीर्ण सभी छात्रों की डिग्री दिखाने, 1978 में परीक्षा में शामिल सभी छात्रों की जानकारी सार्वजनिक करने की मांग करना कानून का मजाक उड़ाना है. उन्होंने कहा कि मैं अपने विश्वविद्यालय जा सकता हूं और अपनी डिग्री, मार्कशीट मांग सकता हूं. धारा के तहत प्रकटीकरण से छूट) 8 (1) (ई) तीसरे पक्ष पर लागू होती है. इससे कल कोई 1964 के छात्रों की, कोई 1965 के छात्रों की डिटेल मांग सकता है. इसके दूरगामी परिणाम विश्वविद्यालय के हित में नहीं होंगे. देश के विश्वविद्यालयों के पास करोड़ों छात्रों की डिग्री है.
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पीएम मोदी के डिग्री विवाद पर सुनवाई
पीएम मोदी डिग्री विवाद पर DU की दलील, 'RTI का उद्देश्य तीसरी पार्टी की जिज्ञासा शांत करना नहीं'