डीएनए हिंदी: ओडिशा के बालासोर में हुए भीषण रेल हादसे (Odisha Train Accident) ने लोगों को झकझोर दिया. हादसे में ट्रेनों के डिब्बे बुरी तरह से पिचक गए. ट्रेन हादसा होते ही लोगों की की पुकार के साथ चारों तरफ केवल लाशें और मांस के टुकड़े नजर आने लगे. ऐसे में मदद करने के लिए आसपास के लोग पहुंच गए. शवों और घायलों को ट्रेन के डिब्बे से बाहर निकालने वाले चश्मदीदों ने जो मंजर बताया, उसे जानकर आपकी आंखें भर जाएंगी.
बालासोर रेल हादसे के बाद एनडीआरएफ (NDRF) टीम से पहले पहुंचे 'फरिश्तों' ने बताया कि हादसे के बाद वहां की हालत क्या थी. कोई मां गोद में अपना बच्चा लिए रो रही थी तो वहीं कोई अपनी मां को ढूंढता हुआ इधर से उधर भटक रहा था. मदद के लिए पहुंचे आसपास के लोग अंधेरा होने के कारण मोबाइल की टॉर्च से लोगों को निकालने की कोशिश कर रहे थे. उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि किस तरह से घायलों की मदद की जाए और चीख - पुकार कर रहे लोगों को संभाला जाए.
चश्मदीदों ने बताई ऐसी दास्तां
घटनास्थल पर NDRF और ODRAF की टीम से पहले बालासोर के रहने वाले कुछ लोग पहुंच गए थे. जब आसपास के लोग पहुंचे तो देखा कि रेलवे ट्रैक लगभग नष्ट हो चुके हैं. इन सबकी परवाह किए बगैर मददगार ट्रेन के डिब्बों में घुस गए. रेलवे ट्रैक की मरम्मत करने वाले आलोक शुक्ला बताते हैं कि जब उन्हें कोरोमंडल एक्सप्रेस के पटरी से उतर जाने की खबर मिली तो वह बिना समय खराब किए स्टेशन पहुंच गए. वहां पहुंचते ही उन्हें पता चला कि यहां ट्रिपल ट्रेन घटना हुई है. वहां पर उन्होंने खून से लथपथ लाशें और एक दूसरे से चिपक कर पड़े शवों को देखा तो वह विचलित हो गए.
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आलोक ने बताया कि वह दर्द से कराह रहे यात्रियों को देख रहे थे. वहां पर लोगों की चीख और पुकार के अलावा कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था. ऐसे में अपने तीन दोस्तों के साथ पहुंचे आलोक ने ट्रेन में फंसे घायलों को बाहर निकाला और उन्हें अस्पताल भेजने में मदद की. उन्होंने डेढ़ सौ से ज्यादा शवों को बाहर निकाला. उस दर्दनाक मंजर को याद करते हुए आलोक कहते हैं कि वे जहां भी पैर रख रहे थे, वहां पर केवल मांस के टुकड़े गिरे हुए थे. जो उनके जूते और चप्पलों में चिपक जा रहे थे. अपने नंगे हाथों से लाश और घायलों को निकालने के बारे में बात करते हुए आलोक ने कहा कि उन्हें उस समय कुछ भी नहीं समझ में आ रहा था, केवल इतना लग रहा था कि ज्यादा से ज्यादा लोगों की जिंदगी बचाई जा सके.
अभी तक कानों में गूंज रही है घायलों की आवाज - बोले मददगार
आलोक के दोस्त घनश्याम बेहरा ने बताया कि जब वह बोगियों में मदद के लिए अंदर गए तो उन्हें हर जगह केवल कटे हाथ और कटे पांव दिखाई दे रहे थे. उस समय समझ में नहीं आ रहा था कि पहले क्या करना चाहिए. हमने सूझबूझ से सबसे पहले घायलों को ढूंढना शुरू कर दिया. जितना संभव था, हमने उनकी मदद की. आलोक के एक अन्य दोस्त ने बताया कि वह अब उस भयानक मंजर को याद भी नहीं करना चाहते हैं. अभी तक उनके कानों में घायलों की आवाज गूंज रही है.
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उन्होंने कहा कि उस मंजर को याद कर वह कांप जा रहे हैं. वहीं, स्टेशन के बगल एक मंदिर में काम कर रहे तुकना दास ने बताया कि ट्रेन हादसे की खबर सुनते ही वह दौड़ कर पहुंच गए थे. उन्होंने कहा कि बड़ा भयानक मंजर था. मैं वहां जाते ही लोगों की मदद करने लगा. मैं जिस बोगी में पहुंचा, वहां पर 60 शव पड़े हुए थे. उन्होंने बताया कि वहां घायल पड़े ज्यादातर लोग कह रहे थे कि हमें बचा लीजिए. कुछ लोग पानी मांग रहे थे. मैं बोगी से नीचे उतर कर पहले बाहर गया और पानी की कुछ बोतल लाया. पटरियों पर बच्चे, महिलाएं और बुजुर्गों के कटे अंग बिखरे हुए थे. यह सब देख पाना बहुत मुश्किल था.
NDRF के जवान ने दी थी ट्रेन दुर्घटना की जानकारी
कोरोमंडल एक्सप्रेस में सवार एनडीआरएफ के जवान ने सबसे पहले रेलवे को इसकी जानकारी दी थी. एनडीआरएफ के जवान वेंकटेश ने बताया कि वह पश्चिम बंगाल के हावड़ा से तमिलनाडु जा रहे थे. वह बी- 7 कोच में बैठे हुए थे. वह इस हादसे में बाल-बाल बच गए. जिसके बाद उन्होंने व्हाट्सएप पर साइट की लाइव लोकेशन एनडीआरएफ नियंत्रण टीम को भेजी. इन सबके बीच वह अपने आसपास पड़े घायलों की मदद भी कर रहे थे.
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