डीएनए हिंदी: केरल हाईकोर्ट ने तलाक शुदा मुस्लिम महिलाओं के लिए बड़ी राहत दी है. हाईकोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि अगर किसी मुस्लिम महिला को पर्सनल लॉ के तहत तलाक दिया गया है तो उसे तलाक दर्ज कराने के लिए अदालत भेजने की जरूरत नहीं है. अदालत ने इस संबंध में 2008 के नियम पर फिर से विचार करने की बात कही है.

जस्टिस पी वी कुन्हिकृष्णन ने कहा कि केरल विवाह पंजीकरण (सामान्य) नियम 2008 के तहत एक महिला को अपनी शादी का पंजीकरण कराना पड़ता है और उसे तलाक उसके पर्सनल लॉ के तहत मिला है तो उसे अपना तलाक दर्ज कराने के लिए अदालत नहीं भेजना जाना चाहिए. उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि संबंधित अधिकारी अदालत के आदेश पर जोर देने के बजाय तलाक को दर्ज कर सकता है.

हाईकोर्ट ने 10 जनवरी के अपने फैसले में कहा कि मुझे लगता है कि इस संबंध में 2008 के नियम में एक खामी है. विधायिका को इस बारे में सोचना चाहिए. रजिस्ट्री इस फैसले की एक प्रति राज्य के मुख्य सचिव को कानून के मुताबिक आवश्यक कार्रवाई करने के लिए भेजेगी. 

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क्या कहता है 2008 का नियम?
उच्च न्यायालय ने कहा कि 2008 के नियम के तहत एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला तबतक दूसरी शादी नहीं कर सकती है जबतक सक्षम अदालत रजिस्टर से प्रविष्टि को न हटा दे, लेकिन पति के लिए ऐसी कोई रुकावट नहीं है. हाईकोर्ट का आदेश और टिप्पणियां एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला की याचिका पर आई हैं जिसने स्थानीय विवाह रजिस्ट्रार को विवाह रजिस्टर में उसका तलाक दर्ज कराने का निर्देश देने का आग्रह किया था.

रजिस्ट्रार ने इस आधार पर तलाक दर्ज करने से इनकार कर दिया कि 2008 के नियमों में उसे ऐसा करने के लिए अधिकृत करने वाला कोई प्रावधान नहीं है जिसके बाद महिला ने उच्च न्यायालय का रुख किया. (इनपुट- भाषा)

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No need to send divorced Muslim women to court to register divorce Kerala High Court
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पर्सनल लॉ के तहत दिया तलाक तो कोर्ट में दर्ज कराने की जरूरत नहीं, केरल हाईकोर्ट
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पर्सनल लॉ के तहत दिया तलाक तो कोर्ट में दर्ज कराने की जरूरत नहीं, केरल HC ने क्यों कहा ऐसा?

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