नीति आयोग के सीईओ बी.वी.आर. सुब्रमण्यम ने रविवार भारत में गरीबों की संख्या, गरीबी के स्तर और प्रति व्यक्ति औसत खर्च के बारे में गुड न्यूज दी है. सुब्रमण्यम ने कहा कि नवीनतम घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण से संकेत मिलता है कि भारत में गरीबी स्तर 5 प्रतिशत से नीचे गिर गया है. साथ ही, ग्रामीण और शहरी, दोनों क्षेत्रों में लोग समृद्ध हो रहे हैं. राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) की ओर से शनिवार देर रात जारी आंकड़ों के अनुसार, प्रति व्यक्ति मासिक घरेलू खर्च 2011-12 की तुलना में 2022-23 में दोगुना से अधिक हो गया है, जो देश में समृद्धि के बढ़ते स्तर को दर्शाता है.
बी वी आर सुब्रमण्यम ने कहा, "उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण सरकार द्वारा उठाए गए गरीबी उन्मूलन के प्रयासों की सफलता को भी दर्शाता है." उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण में जनसंख्या को 20 अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया और आंकड़ों से पता चला है कि सभी श्रेणियों के लिए प्रति व्यक्ति औसत मासिक खर्च ग्रामीण क्षेत्रों में 3,773 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 6,459 रुपये है.
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"बढ़ रही है खर्च करने की क्षमता"
निचले 0-5 प्रतिशत वर्ग का औसत प्रति व्यक्ति मासिक खर्च ग्रामीण क्षेत्रों में 1,373 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 2,001 रुपये आंका गया है. नीति आयोग के सीईओ ने कहा, "अगर हम गरीबी रेखा को लें और इसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के साथ आज की दर तक बढ़ाएं तो हम देखेंगे कि सबसे निचले 0-5 प्रतिशत वर्ग की औसत खपत लगभग समान है. इसका मतलब है कि देश में गरीबी केवल 0-5 प्रतिशत समूह में है."
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उन्होंने कहा, "यह मेरा आकलन है लेकिन अर्थशास्त्री इसका विश्लेषण करेंगे और बिल्कुल सही आंकड़े सामने लाएंगे." NSSO का अनुमान 1.55 लाख ग्रामीण परिवारों और 1.07 लाख शहरी परिवारों से इकट्ठा किए गए आंकड़ों पर आधारित है. सुब्रमण्यम ने कहा कि आंकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में खपत लगभग 2.5 गुना बढ़ गई है.
सरकारी योजनाओं का अहम योगदान
उन्होंने कहा, "इससे पता चलता है कि देश में शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में प्रगति हो रही है. सर्वेक्षण से यह भी पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में खपत शहरी क्षेत्रों की तुलना में तेजी से बढ़ रही है, जिससे दोनों क्षेत्रों के बीच असमानताएं कम हो रही हैं." इस सर्वेक्षण में सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के लाभ को भी शामिल किया गया है, जिसने उन गरीब परिवारों की खपत में योगदान दिया है, जिन्हें अपने बच्चों के लिए मुफ्त खाद्यान्न और साइकिल और स्कूल यूनिफॉर्म जैसे सामान मिले हैं.
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सर्वेक्षण से पता चलता है कि 2011-12 में यह अंतर 84 प्रतिशत था और 2022-23 में घटकर 71 प्रतिशत हो गया है. 2004-05 में यह अंतर 91 प्रतिशत के अपने चरम पर था. NSSO सर्वेक्षण देश में ग्रामीण और शहरी दोनों परिवारों के कुल खर्च में अनाज और भोजन की खपत की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय गिरावट का भी संकेत देता है.
उन्होंने कहा, "इसका मतलब है कि लोग अतिरिक्त आय के साथ समृद्ध हो रहे हैं. इस बढ़ी हुई समृद्धि के साथ वे भोजन के अलावा अन्य चीजों पर अधिक खर्च कर रहे हैं. यहां तक कि भोजन में भी, वे अधिक दूध पी रहे हैं, फल और अधिक सब्जियां खा रहे हैं."
सुब्रमण्यम ने यह भी कहा, "सीपीआई मुद्रास्फीति में भोजन का योगदान कम होगा और शायद पहले के वर्षों में भी कम था. इसका मतलब है कि मुद्रास्फीति को बढ़ा-चढ़ाकर बताया जा रहा था और शायद कम है, क्योंकि मुद्रास्फीति में भोजन का प्रमुख योगदान रहा है."
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नीति आयोग ने बताया कितनी कम हुई गरीबी, हर महीने इतना खर्च करते हैं भारतीय