डीएनए हिंदी: पूर्वोत्तर में शांति प्रयास की दिशा में शुक्रवार (29 दिसंबर) का दिन काफी अहम रहा. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में सशस्त्र उग्रवादी संगठन यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए. अधिकारियों ने बताया कि इस दौरान असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा भी समझौते के दौरान मौजूद रहे. गृहमंत्री ने कहा कि यह असम के लोगों के लिए बहुत बड़ा दिन है
अमित शाह ने कहा, ‘असम लंबे समय तक उल्फा की हिंसा से त्रस्त रहा और वर्ष 1979 से अब तक 10 हजार लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. असम का सबसे पुराना उग्रवादी संगठन उल्फा हिंसा छोड़ने, संगठन को भंग करने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने पर सहमत हुआ है. उन्होंने कहा कि समझौते के तहत असम को एक बड़ा विकास पैकेज दिया जाएगा.
शाह ने कहा कि समझौते के प्रत्येक खंड को पूरी तरह से लागू किया जाएगा. अब असम में हिंसा की घटनाओं में 87 प्रतिशत, मौत के मामलों में 90 प्रतिशत और अपहरण की घटनाओं में 84 प्रतिशत की कमी आई है. मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने समझौते को ऐतिहासिक बताया और कहा कि यह समझौता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री शाह के मार्गदर्शन और नेतृत्व के कारण संभव हो सका है.
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12 साल तक बिना शर्त हुई बातचीत
अधिकारियों ने बताया कि अरबिंद राजखोवा के नेतृत्व वाले उल्फा गुट और सरकार के बीच 12 साल तक बिना शर्त हुई वार्ता के बाद इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. इस शांति समझौते से असम में दशकों पुराने उग्रवाद के खत्म होने की उम्मीद है. परेश बरुआ की अध्यक्षता वाला उल्फा का कट्टरपंथी गुट हालांकि इस समझौते का हिस्सा नहीं है. ऐसा माना जाता है कि बरुआ चीन-म्यांमा सीमा के निकट एक स्थान पर रहता है.
उल्फा का गठन 1979 में संप्रभु असम की मांग को लेकर किया गया था. तब से यह विध्वंसक गतिविधियों में शामिल रहा है जिसके कारण केंद्र सरकार ने 1990 में इसे प्रतिबंधित संगठन घोषित कर दिया था. राजखोवा गुट तीन सितंबर, 2011 को सरकार के साथ शांति वार्ता में उस समय शामिल हुआ था, जब इसके और केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच इसकी गतिविधियों को रोकने को लेकर समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे. (PTI इनपुट के साथ)
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ULFA ने हथियार डाले, 40 साल बाद शांति समझौता, गृहमंत्री बोले 'असम के लिए बड़ा दिन'