एक समय था जब उत्तर प्रदेश की जनता बसपा के साथ खड़ी थी. यूपी की जनता ने बसपा सुप्रीमो मायवती को अपना सरदार चुना था, लेकिन बीते कुछ सालो में प्रदेश के अंदर बसपा का हाल ऐसा है कि मानों यूपी में इस पार्टी का कभी अस्तित्व ही नहीं था. हालांकि बसपा समय-समय पर अपने आप को पुन: जीवित करने के लिए राजनीतिक कायदें अपनाती रही है. पर उनका कुछ खास फायदा पार्टी को हुआ नहीं है. हाल ही में बसपा ने एक बार फिर से आकाश आनंद की पार्टी में वापसी की है, लेकिन उत्तराधिकार पर तो अभी भी संशय बराबर बना हुआ है.
पार्टी से क्यों निकाला गया
जब इससे पहले मायवती ने आकाश आनंद को नेशनल कोआर्डिनेटर और उत्तराधिकारी बनाया था तो लग रहा था कि अब बसपा एक नई राह पर चलने वाली है, उस दौरान बसपा को युवाओं का अच्छा खासा साथ मिलना शुरू हो गया था. लेकिन फिर बीते साल अप्रैल माह में लोकसभा चुनाव के दौरान सीतापुर की जनसभा में दिए भड़काऊ भाषण की वजह से उनसे नेशनल कोआर्डिनेटर और उत्तराधिकारी के पद की जिम्मेदारी वापस ले ली गई थी. दरअसल उस बयान में उन्होंने भाजपा नेताओं की तुलना आतंकवादियों से की थी.
बीते ढ़ाई महीने सबसे ज्यादा मुश्किल
आकाश के लिए बीती ढ़ाई महीने ज्यादा कष्टदायक रहे थे. दरअसल मायावती ने आकाश को 2 मार्च को पार्टी से निष्काषित कर दिया था. बीती 13 मार्च को मायावती ने आकाश द्वारा सार्वजनिक रूप से माफी मांगने पर उनका निष्कासन तो वापस लिया, लेकिन अभी तक उन्हों किसी भी तरह की जिम्मेदारी नहीं दी गई है. अब कई राजनीतज्ञ इसको मायवती का मास्टरस्ट्रोक मान रहे है तो कई का ये भी मानना है कि मायावती के पास आकाश आनंद के अलावा ज्यादा कुछ विकल्प ही नही है.
आकाश के लिए हो सकती है मुश्किलें
पार्टी के जो पुराने और अनुभवी नेता थे वो या तो पार्टी छोड़ चुके हैं. अगर पार्टी में है भी तो वो निष्क्रिय हैं. ऐसे हो भी सकता है कि आकाश आनंद लास्ट ऑप्शन वाली बात सच हो, लेकिन कहा ये भी जा रहा है कि पार्टी आने वाले यूपी विधानसभा चुनाव की तैयारी में अभी से जुट गई है. खबर ये भी है कि आकाश आनंद 2027 में पार्टी का मुख्य चेहरा भी हो सकते हैं. उधर पार्टी को चंद्रशेखर आजाद से लगातार चुनौतियां मिल रही है. दलित वोट पर भी सपा अपना हक जमाती जा रही है. इस सब से ये बात तो तय हो जाती है कि आकाश आनंद के लिए आगे मुश्किलें होने वाली हैं.
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आकाश आनंद की बीएसपी में वापसी मायावती की मजबूरी या मास्टरस्ट्रोक? पार्टी को बचाने का आखिरी दांव तो नहीं