देश का तीसरा लोकसभा चुनाव साल 1962 में हुआ. सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर इस चुनाव में बंपर जीत हासिल की. पंडित जवाहर लाल नेहरू की अगुवाई में चुनाव में उतरी कांग्रेस पार्टी ने लगातार तीसरे चुनाव में एकतरफा जीत हासिल की. हालांकि, यही चुनाव पंडित जवाहर लाल नेहरू का आखिरी चुनाव साबित हुआ. साल 1964 में पंडित नेहरू का निधन हो गया. यह ऐसा पहला चुनाव था जिसमें सभी लोकसभा सीटों के लिए एक-एक प्रत्याशी ही चुना गया. इससे पहले, कुछ सीटों पर एक से ज्यादा लोकसभा सांसद भी चुने जाते थे.
कांग्रेस ने कुल 488 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और 361 सीटों पर उसे जीत हासिल हुई. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) एक बार फिर से दूसरे नंबर पर रही और उसने 137 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए कुल 29 सीटें जीतीं. स्वतंत्र पार्टी को 18 सीटों पर जीत मिली जबकि वह कुल 173 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. इस चुनाव में जनसंघ की सीटों में कई गुना इजाफा हुआ. यह चुनाव इसलिए भी रोचक रहा कि प्रमुख समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के खिलाफ चुनाव लड़े. हालांकि, वह चुनाव जीत नहीं पाए.
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कैसा रहा तीसरा लोकसभा चुनाव?
1962 का लोकसभा चुनाव आते-आते पंडित नेहरू की छवि धीरे-धीरे मैली होने लगी थी. साल 1957-58 के दौरान खुद पंडित नेहरू के दामाद फिरोज गांधी ने मूंदडा कांड का पर्दाफाश किया जिसके चलते नेहरू सरकार के वित्तमंत्री टी टी कृष्णामाचारी को इस्तीफा देना पड़ा. इसके चलते पंडित नेहरू और फिरोज गांधी के बीच दूरियां बढ़ गईं. साल 1960 में फिरोज गांधी की मौत हो गई. इसके बाद अपनी बेटी इंदिरा गांधी को आगे बढ़ाने के चलते पंडित नेहरू पर वंशवाद के आरोप भी लगने लगे.
पार्टी | सीटों की संख्या | वोटों का प्रतिशत |
कांग्रेस | 361 | 44.72 प्रतिशत |
CPI | 29 | 9.94 प्रतिशत |
स्वतंत्र पार्टी | 18 | 7.89 प्रतिशत |
जनसंघ | 14 | 6.44 प्रतिशत |
PSP | 12 | 6.81 प्रतिशत |
सोशलिस्ट पार्टी | 6 | 2.69 प्रतिशत |
इन चुनावों से ठीक पहले ही स्वतंत्र पार्टी का गठन हुआ था. इसके कर्ताधर्ता चक्रवर्ती राजगोपालाचारी और मीनू मसानी थे. इसी पार्टी ने पंडित नेहरू की समाजवादी विचारधारा को चुनौती दी. स्वतंत्र पार्टी ने जमींदारी प्रथा के उन्मूलन का जमकर विरोध किया था. तीसरे लोकसभा चुनाव में कुल 494 सीटों के लिए चुनाव हुए थे. इसमें कुल 21 करोड़ से ज्यादा मतदाता थे जिसमें से 11 करोड़ 99 लाख लोगों ने वोट डाले. कुल 1985 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा जिसमें सिर्फ 66 महिलाएं थीं.
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युद्ध से टूट गए थे पंडित नेहरू
कहा जाता है कि यह पहला चुनाव था जिसमें उच्च वर्ग के लोगों के अलावा किसान और ग्रामीण पृष्ठभूमि के प्रतिनिधि भी चुनाव जीतकर आने लगे. इस चुनाव के 3 महीने बाद ही 1962 के अक्टूबर महीने में भारत और चीन का युद्ध हुआ. कहा जाता है कि इस युद्ध से पंडित नेहरू को बहुत धक्का लगा और 1964 में अपनी मृत्यु तक वह इससे उबर नहीं पाए.
पंडित नेहरू के खिलाफ लड़े लोहिया
इस चुनाव में उत्तर प्रदेश की फूलपुर लोकसभा सीट का चुनाव काफी रोमांचक हो गया. पंडित नेहरू पर फिजूलखर्ची का आरोप लगाते हुए राम मनोहर लोहिया ने फूलपुर से नेहरू के खिलाफ चुनाव लड़ा. हालांकि, लोहिया चुनाव हार गए और पंडित नेहरू को फिर से यहां जीत मिली. इस चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी, बलराज मधोक, जे बी कृपलानी, अब्दुल गफूर और ललित नारायण मिश्र जैसे दिग्गज नेता चुनाव हार गए.
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India's Third General Elections: कैसा था लोकसभा का तीसरा चुनाव? कांग्रेस ने यूं बरकरार रखी बादशाहत