डीएनए हिंदी: केंद्र सरकार की तरफ से 8 नवंबर, 2016 की रात को अचानक देश में नोटबंदी लागू करने का फैसला सही था या गलत, अब सुप्रीम कोर्ट इसका परीक्षण करेगा. सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने बुधवार को यह फैसला लिया. जस्टिस एसए नजीर (Justice SA Nazeer) की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ (constitution bench) ने कहा कि सरकार के नीतिगत फैसलों की न्यायिक समीक्षा को लेकर कोर्ट अपनी 'लक्ष्मण रेखा' से वाकिफ है. इसके बावजूद वह 2016 के नोटबंदी के फैसले की पड़ताल अवश्य करेगी. यह इसलिए जरूरी है ताकि यह स्पष्ट हो सके कि कहीं यह फैसला महज 'एकेडमिक' कवायद तो नहीं था.
पढ़ें- प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ दायर याचिकाओं पर SC का केंद्र को नोटिस, 31 अक्टूबर तक मांगा जवाब
किसी मामले का जवाब देना संविधान पीठ की ड्यूटी
संविधान पीठ में जस्टिस नजीर के अलावा जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी. रमासुब्रमण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना शामिल थे. पीठ ने कहा कि संविधान पीठ के सामने कोई मामला पेश होने पर यह पीठ की ड्यूटी होती है कि उस मसले को स्पष्ट किया जाए.
पढ़ें- Indian Army के वाहनों में होगा बड़ा बदलाव, जानिए क्या तैयारी की जा रही है
अटॉर्नी जनरल ने कहा- यह मुद्दा एकेडमिक ही है
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने कहा. नोटबंदी से जुड़े अधिनियम को उचित चुनौती नहीं दिए जाने तक यह मुद्दा अनिवार्य तौर पर एकेडमिक ही रहेगा. उन्होंने कहा, हाई वैल्यू वाले बैंक नोट का जनहित में विमुद्रीकरण करने के लिए साल 1978 में उच्च मूल्य बैंक नोट (विमुद्रीकरण) कानून पारित किया गया था. इसका एक टारगेट इकोनॉमी को नुकसान पहुंचाने वाले गैरकानूनी मनी ट्रांसफर पर रोक लगाना भी था.
पढ़ें- Diwali Bonus: रेलवे कर्मचारियों को दिवाली तोहफा, मिलेगा 78 दिन का बोनस
इस पर संविधान पीठ ने कहा कि इस मसले पर दोनों पक्ष आपस में सहमत नहीं हैं, इसलिए नोटबंदी को एकेडमिक या बेकार घोषित करने से पहले इस मामले की पड़ताल जरूरी है. पीठ ने कहा, यह कवायद एकेडमिक है या न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर है, इन सभी सवालों का जवाब सुनवाई से ही मिलेगा. सरकार की नीति और विवेक, इस मामले का एक अलग पहलू है. पीठ ने कहा, हम अपनी लक्ष्मण रेखा (अधिकारों की सीमा) जानते हैं, लेकिन इसे लागू करने के तरीके की पड़ताल की जानी चाहिए और इसके लिए हमें वकील (दूसरे पक्ष के) को सुनना होगा.
पढ़ेंः AIIO चीफ उमर इलियासी को मिली Y+ श्रेणी की सुरक्षा, मोहन भागवत से मुलाकात के बाद मिली थी धमकी
केंद्र ने कहा- सुनवाई से अदालत के समय की बर्बादी
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एकेडमिक मुद्दे पर सुनवाई से अदालत के समय की बर्बादी का मुद्दा उठाया, जिस पर एक याचिकाकर्ता विवेक नारायण शर्मा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने आपत्ति जताई. दीवान ने कहा कि संवैधानिक पीठ के समय की बर्बादी जैसे शब्द हैरान करने वाले हैं, क्योंकि इस मुद्दे को संविधान पीठ के सामने रखने की सिफारिश सुप्रीम कोर्ट की ही पीठ ने की है. एक अन्य पक्ष की तरफ से वकील के तौर पर पेश पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने भी कहा कि ऐसे विमुद्रीकरण के लिए संसद से अलग कानून जरूरी होता है. यह मुद्दा एकेडमिक है या नहीं, इस पर फैसला सुप्रीम कोर्ट को ही करना है.
2016 में संविधान पीठ को भेजा गया था मामला
नोटबंदी लागू होने के बाद उसके वैध और अवैध होने को लेकर कई तरह की राय दी जा रही थीं. इस दौरान यह मसला सुप्रीम कोर्ट के सामने भी उठाया गया था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर (Chief Justice TS Thakur) ने नोटबंदी के फैसले की वैधता और उससे जुड़े अन्य मुद्दे 5 जजों की बड़ी पीठ के सामने रखे जाने के लिए रेफर कर दिया था. इसके बाद से ही यह मामला लंबित चल रहा था, जिस पर अब सुनवाई शुरू की गई है.
देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगल, फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर.
- Log in to post comments
सुप्रीम कोर्ट जांचेगा नोटबंदी का फैसला, कहा- अपनी 'लक्ष्मणरेखा' जानते हैं पर यह जरूरी