डीएनए हिंदी: सियाचिन के ग्लेशियर (Siachin Glacier) पर रहना बेहद मुश्किल और जानलेवा है. भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों की मुश्किल यह है कि वर्तमान में दोनों देशों की सीमाएं इस ग्लेशियर के आसपास हैं. यहां ग्लेशियर की बर्फ का अचानक टूट जाना आम बात है. साल 1984 में ऑपरेशन मेघदूत (Operation Meghdoot) के समय भी ऐसी ही एक घटना हुई जिसमें भारतीय सेना के 19 जवान दब गए थे. इन्हीं 19 में लांसनायक चंद्रशेखर भी शामिल थे. इस घटना के 38 साल बाद लांसनायक चंद्रशेखर का पार्थिव शरीर बर्फ के बीच से बरामद किया गया है. उनका शव उनके परिवार को ससम्मान सौंप दिया गया.
38 साल पहले शहीद हुए लांसनायक चंद्रशेखर का शव मिलने की सूचना जब उनके घर पहुंची तो एक बार फिर से परिवार के जख्म ताजा हो गए. उनके पार्थिव शरीर को हलद्वानी स्थित उनके घर भेजा जा रहा है. वह मूल रूप से उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के रहने वाले थे 1971 में सेना की कुमाऊं रेजीमेंट में भर्ती हुए चंद्रशेखर ऑपरेशन मेघदूत में शहीद हुए थे.
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ऑपरेशन मेघदूत के समय दब गई थी पूरी बटालियन
रिपोर्ट के मुताबिक, मई 1984 में लेफ्टिनेंट पीएस पुंडीर की अगुवाई में 19 जवानों की टीम सियाचिन में ऑपरेशन मेघदूत के लिए गया था. 29 मई को सियाचिन ग्लेशियर पर भारी हिमस्खलन हुई और पूरी की पूरी बटालियन बर्फ में दब गई. जब चंद्रशेखर का शव नहीं मिल सका तो उन्हें शहीद घोषित कर दिया गया था.
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अब 38 साल बाद चंद्रशेखर का शव मिलने के बाद फोन करके उनकी पत्नी को इसकी सूचना दी गई. रविवार को एसडीएम मनीष कुमार सिंह और कई अन्य अधिकारी चंद्रशेखर के घर पहुंचे. बताया गया है कि सोमवार शाम तक उनका पार्थिव शरीर हल्द्वानी पहुंच जाएगा. शहीद का पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा.
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सियाचिन ग्लेशियर में दबकर शहीद हो गए थे लांसनायक चंद्रशेखर, 38 साल बाद मिला शव