डीएनए हिंदी: 25 अगस्त का दिन कोटा शहर के लिये कहर बन कर टूटा था. अपने सपनों को साकार करने के लिए दूर दूर के प्रदेशों से आये दो किशोरों ने पढ़ाई के दबाव में आ कर सपनों को जीने की बजाय उनको कफन में लपेटने का फ़ैसला किया. दोनों छात्र यहां की निजी कोचिंग केंद्रों में NEET (मेडिकल एंट्रेस परीक्षा) की तैयारी कर रहे थे.  कोटा में अब ये घटनाएं इतनी आम हो चली हैं कि शायद अब लोग भी चौंकना बंद कर चुके हैं. इस साल में कोटा शहर में पढ़ाई के दबाव ना झेल पाने की वजह से अब तक 27 बच्चों ने मौत को गले लगा लिया है. बावजूद इसके तमाम राजनीतिक दल चुनाव के घोषणा होते ही बच्चों की आत्महत्या से ज़्यादा चुनाव की चर्चा में लीन हैं. 

कोटा में पिछले कई सालों से छात्रों को खुदकुशी का मामला सामने आ रहा है. इस बीच कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दल सता का स्वाद चख चुके हैं लेकिन किसी भी राजनीतिक दल ने ना इस को सुधारने के कोई गंभीर प्रयास किए हैं बल्कि संवेदनशील विषय को विधानसभा के पटल पर भी कभी गंभीर चर्चा के लायक नही समझा गया है. सरकार और प्रशासन की इस बेरुखी के कारण इस बरस केवल अक्टूबर महीने तक 27 छात्र अब तक आत्महत्या कर चुके हैं,को किसी भी साल में सबसे अधिक है.

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इस साल अब तक हो चुकी हैं 27 आत्महत्याएं
कोटा में जनवरी से अब तक  तक सुसाइड के 27  मामले सामने आए हैं. इनमें 13 स्टूडेंट्स को कोटा आए हुए दो-तीन महीने से लेकर एक साल से भी कम समय हुआ था. सात स्टूडेंट्स ने तो डेढ़ महीने से लेकर पांच महीने पहले ही कोचिंग इंस्टीट्यूट में एडमिशन लिया था। इसके अलावा दो मामले खुदकुशी के असफल प्रयास के भी सामने आ चुके हैं. साल  2023 में अभी तक  27 छात्र ख़ुदकुशी कर चुके हैं वहीँ  पिछले साल 2022 में 15 वहीं 2019 में 18 तो 2018 में 20 छात्रों को पढ़ाई और प्रतियोगिता परीक्षा के मुकाबले जान देना आसान लगा. एक आंकड़े के मुताबिक कोटा शहर में कोचिंग का कारोबार करीब पांच हजार करोड़ का है। इसके चलते कोचिंग सेंटर के मालिक सरकार पर अपनी मर्जी ले हिसाब से नियम को तोड़ने मरोड़ने में सक्षम हैं.
 
करियर और पैरेंट्स की महत्वाकांक्षाओं का दबाव
बेहतर कोचिंग और अच्छे करियर की आस  हर साल हजारों बच्चे इसी तरीके से मेडिकल या इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिले के लिए तैयारी करने के इरादे से कोटा के अलग-अलग कोचिंग इंस्टिट्यूटों में दाखिले लेते हैं. कोटा शहर में आम तौर पर एक समय में करीब डेढ़ लाख बच्चे देश के अलग-अलग हिस्सों से अपने सपनों को सच करने यहां आते हैं. कोटा शहर एक ज़माने में यहां के उद्योग और कोटा स्टोन के लिए मशहूर था लेकिन धीरे-धीरे यहां पत्थर की चमक कम होती गयी तो उद्योग-धंधे भी कई कारणों के से  घटते चले गए. आज कोटा शहर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ यहां के कोचिंग केंद्रों को माना जाता है. मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं में अच्छे रिजल्ट की वजह से कोचिंग नगरी कोटा में इंजीनयर और डॉक्टर बनने का सपना संजोए विद्यार्थी पिछले कई बरसों से यहां आ रहे हैं. कोटा में वो सब कुछ है जो एक छात्र को अपने करियर में आगे बढ़ने के लिए चाहिए. यहां उसे राष्ट्रीय स्तर की स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के साथ अच्छी फैकल्टी का मार्गदर्शन भी मिलता है. ऐसे में कोटा अभिभावकों और विद्यार्थियों की पहली पसंद है.

हर साल बच्चों की बड़ी भीड़ पहुंचती है कोटा 
कोटा में अब पिता के एक हाथ में भारी भरकम बैग तो दूसरे में लगैज ट्रॉली... पीछे मां के हाथों में दस्तावेजों का पुलिंदा. एक कोचिंग इंस्टीट्यूट से दूसरे और दूसरे से तीसरे....बस एक ही उम्मीद लिए अभिभावक घूमते हैं कि अपने बच्चे  को अच्छे संस्थान में एडमिशन दिलाएं, ताकि उसका भविष्य बन जाए. दसवीं और बारहवीं बोर्ड की परीक्षाएं खत्म होने के बाद अपने लाडलों के सुनहरे भविष्य के लिए देश के कोने-कोने से अभिभावकों और विद्यार्थियों के कोटा शहर आने का सिलसिला यूं ही साल दर साल जारी है. हर साल होने वाली आत्महत्या की घटनाओं के बावजूद भी यह जारी है.

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कोटा के कोचिंग नगरी बनने की शुरुआत हुई ऐसे
देश भर के अलग-अलग शहरों में जहा अनेक कोचिंग सेंटर खुले हुए हैं ऐसे में हर साल कोटा ही छात्रों का पहला पंसदीदा शहर आखिर क्यों बना हुआ?  इसका श्रेय जाता है यहां के सबसे पुराने कोचिंग सेंटर के दिवंगत मालिक वीके बंसल के पास. वीके बंसल अपनी बीमारी की वजह से नौकरी छूट जाने के कारण कुछ बच्चों को टूशन पढ़ाने लगे और वहीं से करीब चार दशक पहले कोटा के कोचिंग सेंटर बनाने की नींव पड़ी थी.  महज कुछ छात्रों के साथ 1980 के दशक में शुरू किए गए कोचिंग सेंटर के बाद आज यहां पूरे शहर में करीब डेढ़ लाख छात्र पढ़ते हैं. साल 2014 में भी एक ही शहर के एक संस्थान में 66 हजार 504 विद्यार्थी नामांकित होने पर भी कोटा का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉड्र्स में दर्ज हो चुका है. गूगल और फेसबुक जैसी नामी-गिरामी कंपनियां भी कोटा कोचिंग का लोहा मानती हैं. यही कारण है की देश के कोने-कोने से छात्र यहां पढ़ने आते हैं. इसके बावजूद, कोटा की कोचिंग का एक और पहलू है जो सबके लिए चिंता का विषय है उस पर अभी तक कोई कारगर प्रयास  नहीं किया गया है. इसके साथ-साथ कई जानकारों की राय ये भी है की कोचिंग संस्थाओं की तरफ से दिखाए जाने वाले झूठे सपनों पर भी लगाम लगाई जानी चाहिए. आईआईटी और मेडिकल की सीमित सीटें होने के बावजूद छात्रों को बिना किसी मेरिट के आधार पर रख लेने के कारण केवल फीस के लालच में बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जाता है.

बच्चों की आत्महत्या बनना चाहिए बड़ा मुद्दा 
देश के मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज में बड़ी संख्या में छात्रों को भेजने वाले कोटा शहर में छात्रों का आना-आने का सिलसिला आने वाले समय में भी जारी रहेगा. कुछ नकारातमक बातों का ध्यान रखते हुए उनपर सरकार को ध्यान देने की ज़रूरत है ताकि इस शहर जैसे कई और शहर स्वाबलंबी बन सकें और देश को बेहतरीन इंजीनियर और डॉक्टर्स मिल सकें. इस चुनाव के दौर में पूरे राजस्थान के मतदाताओं को राजनीतिक दलों पर ये दबाव बनाना चाहिए कि वो खुदकुशी के मामलों को घोषणापत्र में शामिल करें और इसका स्थाई समाधान खोजें.

आज कोटा को कोचिंग संस्थानों के साथ साथ यहां के सांसद जो लोकसभा स्पीकर भी हैं उनके नाम से जाना जाता है. हालांकि, ओम  बिरला की तरफ से भी खुदकुशी के मामलों पर कोई गंभीर प्रयास न संसद के भीतर दिखाई दिया है और न ही बाहर . इतना अहम् मुद्दा होने के बावजूद भी ओम  बिरला इस मसले को एक बार भी लोकसभा में बहस का विषय नहीं बना पाए. न ही यहां के स्थानीय विधायक राजस्थान सरकार के कैबिनेट मंत्री शांति धारीवाल ने भी इस मामले पर कोई गंभीर प्रयास किया है.  उम्मीद की जानी चाहिए इस विधानसभा चुनाव के बाद कोटा का अगला जनप्रतिनिधि सरकार के साथ मिलकर इस गंभीर मामले का स्थायी समाधान निकाल पाएगा.

नोट: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं. 

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Kota student suicides cases kno how parental expectations Academic pressure push students to the brink 
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Opinion: कोटा शहर कैसे बनते जा रहा कत्लगाह, कहां हुई चूक समझें यहां
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