जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा के चुनाव हुए हैं. आज चुनाव के नतीजे आ रहे हैं. प्रदेश में लंबे समय से राज्यपाल का शासन चल रहा है. पिछली बार जब 2014 में विधानसभा के चुनाव हुए थे इस समय मुफ्ती मोहम्मद सईद को बीजेपी और पीडीपी की मिली-जुली सरकार में सीएम बने थे. मुफ्ती मोहम्मद सईद की मौत के बाद उनकी जगह उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती सीएम के पद पर काबिज हुई थी. उसके बाद 2019 में कश्मीर में धारा 370 को खत्म कर दिया गया. ये केंद्र की बीजेपी सरकार की तरफ से अपने घोषणापत्र को पूरा करने को लेकर बड़ा फैसला था.
जम्मू-कश्मीर के सियासी हालात
साथ ही जम्मू-कश्मीर को एक राज्य से दो केंद्र शासित प्रदेश (UT) में बदल दिया गया है. कश्मीर को दो भागों में बांट दिया गया, एक यूटी जम्मू-कश्मीर को बनाया गया, वहीं लद्दाख अलग यूटी के तौर पर वजूद में आया. धारा 370 हटाने के बाद इंटरनेशनल लेवल पर पाकिस्तान और दूसरे भारत विरोधी तत्वों की तरफ से लगातार कश्मीर को लेकर भारत के खिलाफ नैरेटिव सेट करने में लगे रहे. उनकी तरफ से लगातार ये दिखाने की कोशिश की गई कि भारत कश्मीरी लोगों का दमन करता है. साथ ही भारत की कश्मीर नीतियों को अलोकतांत्रिक साबित करने में जुट गए. लेकिन इस चुनाव ने इसके सारे फेक नैरेटिव की हवा निकाल दी. कश्मीर में विधानसभा की 90 सीटें हैं. इनको लेकर आज नतीजे जारी किए जा रहे हैं.
कश्मीर की लोकतंत्रिक छवि का एक बड़ा नैरेटिव
इस बार कश्मीर में कई अलग पार्टियां शामिल हुईं. कई सारे अलगाववादियों ने भी चुनाव में हिस्सा लिया. अपनी पार्टी बनाई. भारत ने दुनिया के सामने लोकतंत्र की एक नई मिसाल पेश की. आपको बताते चलें कि कश्मीर के विधानसभा चुनाव के दौरान वहां पर मतदान प्रतिशत काफी अच्छा रहा है. लोगों ने भारी संख्या में मतदान किए. इस बार के विधानसभा चुनाव में अलगाववादियों ने भी जमकर मतदान में हिस्सा लिया. ये लोकतांत्रिक कश्मीर के इंटरनेशनल नैरेटिव के लिए बेहद अहम है. भारत दुनिया को दिखा सकता है कि कश्मीर में एक भागीदार लोकतंत्र जारी है.
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J-K के चुनावी नतीजों के बाद कैसे बदल जाएगा कश्मीर का अंतरराष्ट्रीय नैरेटिव? जानें कितनी अहम है लोकतंत्रिक सरकार की बहाली