डीएनए हिंदी: हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) विधानसभा चुनाव (Assembly Election 2022) के नतीजे भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए रिवाज नहीं बदल सके. कांग्रेस (Congress) ने 40 सीटें जीत ली और बीजेपी को 25 सीटों पर संतोष करना पड़ा. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) के साथ-साथ पीएम मोदी ने भी वोट प्रतिशत में 1 प्रतिशत के अंतर का जिक्र किया. बीजेपी को जहां 43% वोट मिला, वहीं कांग्रेस को 43.9% मत मिले. दोनो दलों में 0.9% वोटों का ही अंतर था. आइए देखते हैं कि कैसे महज 1% वोटों के अंतर के कारण बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा.
2 प्रतिशत वोट से कांग्रेस को हुआ 19 सीटों का फायदा
जहां साल 2017 में कांग्रेस को 42.1 वोट मिले थे लेकिन सीटों की संख्या महज 21 थी. वहीं इस बार कांग्रेस को 43.9 प्रतिशत वोट मिले लेकिन सीटों की संख्या बढ़कर 40 हो गई. वहीं बीजेपी के वोट प्रतिशत में 5.8 प्रतिशत की कमी दर्ज गई. टिकटों की घोषणा होते ही बागी बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती बताए जा रहे थे और वैसा ही हुआ भी. इस बार निर्दलीय उम्मीदवारों को 10.39% वोट मिला जो कि पिछले चुनावों में 6.4% ही था.
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तीन सीटों पर मार्जिन से ज्यादा NOTA
चुनावों में मत प्रतिशत का अंतर बहुत कम था. प्रदेश की तीन सीटों पर जीत का अंतर तो NOTA (None of the Above) से भी कम था. तीन में से 2 सीटें कांग्रेस को मिली.
हमीरपुर के भोरंज सीट से कांग्रेस के सुरेश कुमार ने बीजेपी के प्रत्याशी डॉक्टर अनिल धीमान को महज 60 वोटों से हराया जबकि 293 लोगों ने NOTA का बटन दबाया था. वहीं नैनादेवी विधानसभा सीट से बीजेपी के प्रत्याशी रणधीर शर्मा महज 171 वोटों से जीते जबकि NOTA की संख्या 225 थी. सिरमौर जिला के शिलाई विधानसभा सीट पर कांग्रेस के हर्षवर्धन चौहान 382 वोटों से जीते जबकि NOTA को 525 वोट मिले.
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5 सीटों पर जीत के अंतर पर भारी पड़े बागी वोट
इस बार के चुनावों में बागियों को मनाने में दोनों पार्टियों को जूझना पड़ा था. बीजेपी (BJP) और कांग्रेस (Congress) दोनों पार्टियों को कई पार्टी कार्यकर्ताओं का अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए पार्टी से बाहर भी निकलना पड़ा. हालांकि बागियों ने बीजेपी को कई जगह नुकसान पहुंचाया. कुछ सीटें तो ऐसी थी जहां पर बागी उम्मीदवारों के मिले वोट कांग्रेस के जीत के अंतर से ज्यादा थे.
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धर्मशाला की सीट पर कांग्रेस के सुधीर शर्मा ने बीजेपी राकेश कुमार को 3,285 मतों से हराया. वहीं बीजेपी के बागी विपिन नैहरिया को 7416 वोट मिले. विपिन नैहरिया धर्मशाला के बीजेपी एसटी मोर्चा के अध्यक्ष थे लेकिन पार्टी उनको मनाने में नाकामयाब रही. इंदौरा सीट से कांग्रेस के मलेन्द्र राजन ने बीजेपी की रीता देवी को 2,250 वोटों से मात दी. जबकि पार्टी के बागी मनोहर धीमान (Manohar Dhiman) को 4,442 वोट मिले.
कुल्लू से बीजेपी के नरोत्तम सिंह कांग्रेस के सुरेन्द्र सिंह ठाकुर से 4,103 वोटों से हार का सामना करना पड़ा. पार्टी के बागी राम सिंह करीब तीन गुना वोट ( 11,937) ले उड़े. बड़सर विधानसभा सीट पर कांग्रेस के इंदरदत लखनपाल ने बीजेपी की माया शर्मा को 13,792 वोटों से हराया. वहीं बीजेपी के बागी संजीव कुमार को 15,252 वोट मिले. किन्नौर में भी बीजेपी ने पूर्व प्रत्याशी कुलवंत सिंह नेगी का टिकट काटा. बागी होकर चुनाव लड़ने पर उन्हें 8,574 वोट मिले. जबकि कांग्रेस के प्रत्याशी जगत सिंह नेगी के जीत का अंतर 6,964 वोट था.
तीन निर्दलीय उम्मीदवारों की बगावत बीजेपी को पड़ी भारी
तीन सीटों पर पार्टी द्वारा मजबूत दावेदारों को नकारने का भी खामियाजा भुगतना पड़ा. इनकी अपनी सीटों पर पकड़ इतनी मजबूत थी पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार तीसरे स्थान पर खिसक गए.
इन विधायकों ने भी बिगाड़ा बीजेपी का गेम प्लान
देहरा विधानसभा सीट से पिछली बार निर्दलीय विधायक रह चुके होशियार सिंह ने चुनावों से 6 महीने पहले ही मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की मौजूदगी में बीजेपी का हाथ थामा था लेकिन उनको टिकट नहीं दिया गया. उन्होंने कांग्रेस से भी टिकट पाना चाहा लेकिन बात नहीं बनी. अंत में ये 38 फीसदी वोट पाकर विजयी हुए, जबकि बीजेपी के प्रत्याशी को 27.6% वोटों के साथ तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा.
दूसरे निर्दलीय जीतने वाले विधायक आशीष शर्मा ‘गौसेवा आयोग’ नामक एक सगंठन चलाते हैं. उन्होंने पहले बीजेपी से टिकट मांगा लेकिन नहीं मिला. कांग्रेस से भी कोशिश की लेकिन मामला सिरे नहीं चढ़ा. जिसके बाद इन्होंने निर्दलीय ताल ठोकी. आशीष शर्मा को 47.1 % वोट मिला जबकि पूर्व विधायक नरेन्द्र ठाकुर को 23.3 % वोट ही मिल पाए.
तीसरे निर्दलीय विधायक के एल ठाकुर साल साल 2012 में नालागढ़ सीट से बीजेपी के विधायक रह चुके हैं. 2017 में वो कांग्रेस के लखविंदर राणा से चुनाव हार गए थे. इस बार चुनावों से ठीक पहले कांग्रेस के विधायक ने पाला बदल कर बीजेपी ज्वाईन की और उन्हे पार्टी की ओर से टिकट भी मिल गया. के एल ठाकुर ने इससे नाराजगी जाहिर करते हुए आजाद पर्चा भरा और जीत गए. ठाकुर को जहां 44.5 % वोट मिले जबकि पार्टी के लखविंदर सिंह राणा को सिर्फ 23% वोट ही मिल पाए.
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