भारतीय जनता पार्टी (BJP) को हरियाणा में तीसरी बार सरकार बनाने का मौका मिला है. चुनाव में पूर्ण बहुमत के साथ जीत हासिल करने के बाद अब पार्टी ने सरकार गठन की प्रक्रिया को तेज कर दिया है. 17 अक्टूबर को शपथ ग्रहण समारोह होना तय है. 16 अक्टूबर को विधायक दल की बैठक बुलाई गई है. इस बैठक में ही विधायक दल का नया नेता चुना जाएगा. गृहमंत्री अमित शाह और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव को पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया है, जो इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी करेंगे.
मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार
हरियाणा में बीजेपी को पूर्ण बहुमत भले ही मिला हो, लेकिन अब तक मुख्यमंत्री के नाम पर मुहर नहीं लगी है. फिलहाल कई दावेदार सामने आ रहे हैं. केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह, पूर्व गृहमंत्री अनिल विज और मौजूदा मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी प्रमुख नामों में शामिल हैं. हालांकि, बीजेपी ने चुनाव से पहले नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया था और पार्टी ने उनके नाम पर ही चुनाव लड़ा. अब माना जा रहा है कि विधायक दल की बैठक में सैनी के नाम पर मुहर लगाई जा सकती है. राव इंद्रजीत और अनिल विज की दावेदारी को लेकर पार्टी के अंदर मतभेद की स्थिति बनी हुई है.
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अमित शाह को बनाया गया पर्यवेक्षक
बीजेपी नेतृत्व हरियाणा में किसी भी प्रकार की गुटबाजी या विवाद से बचने के लिए पहले से ही तैयारी कर रहा है. इस बार पार्टी ने अमित शाह को पर्यवेक्षक बनाकर भेजा है, ताकि विधायक दल का नेता चुनने की प्रक्रिया बिना किसी गुटबाजी के पूरी हो सके. इससे पहले मार्च में भी नायब सिंह सैनी के चुने जाने के दौरान अनिल विज नाराज होकर बैठक से बाहर चले गए थे. इस बार पार्टी ऐसी स्थिति से बचना चाहती है.
अहीरवाल क्षेत्र से दावेदारी
केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने भी मुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश जताई है. वह दक्षिण हरियाणा के बड़े नेता हैं. उनके समर्थकों ने इस बार चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया है. राव इंद्रजीत के नौ विधायकों के समर्थन के बाद उन्होंने अपनी दावेदारी मजबूत कर ली है. उनके समर्थक अहीरवाल क्षेत्र से मुख्यमंत्री बनाने की मांग कर रहे हैं. हालांकि, पार्टी इस समय राव इंद्रजीत को मुख्यमंत्री बनाकर कोई जोखिम उठाने के मूड में नहीं है, क्योंकि इससे गुड़गांव सीट पर उपचुनाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है.
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अनिल विज की चुनौती
बीजेपी के दिग्गज नेता और अंबाला छावनी से सातवीं बार विधायक बने अनिल विज ने भी मुख्यमंत्री पद की दावेदारी ठोंक दी है. चुनाव के दौरान उनकी दावेदारी को चुनावी रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा था, लेकिन अब भी वह सीएम पद की दौड़ में बने हुए हैं. अनिल विज के समर्थक भी उनके पक्ष में लामबंद हो रहे हैं, जिससे पार्टी नेतृत्व की चिंता बढ़ गई है.गौरतलब है कि कई ऐसे मौके आए हैं जब अनिल विज ने पार्टी से हटकर भी बयानबाजी कर दी थी, जिसके बाद से पार्टी आलाकमान ने अपनी नाराजगी भी दिखाई थी.
उत्तर बनाम दक्षिण की लड़ाई
हरियाणा में मुख्यमंत्री पद को लेकर उत्तर और दक्षिण की लड़ाई भी तेज हो गई है. 2014 में बीजेपी की जीत के बाद उत्तर हरियाणा के मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाया गया था, लेकिन इस बार दक्षिण हरियाणा से राव इंद्रजीत मुख्यमंत्री पद की मांग कर रहे हैं. दक्षिण हरियाणा में पार्टी का प्रदर्शन बेहतर रहा है, जहां से 22 सीटें जीती गई हैं, जबकि उत्तर हरियाणा में बीजेपी की सीटें घटी हैं. ऐसे में यह देखा जा रहा है कि क्या बीजेपी दक्षिण हरियाणा से मुख्यमंत्री बना सकती है या नहीं.
सरकार गठन की तारीखें बदलती रहीं
हरियाणा चुनाव के नतीजे 8 अक्टूबर को आए थे, जिसके बाद 12 अक्टूबर को शपथ ग्रहण की तारीख तय की गई थी. हालांकि, बाद में इसे 15 और फिर 17 अक्टूबर तक टाल दिया गया. दरअसल, सरकार गठन में देरी के पीछे मुख्यमंत्री पद को लेकर चल रही खींचतान को वजह माना जा रहा है. इसी खींचतान को खत्म करने के लिए अमित शाह को हरियाणा भेजा गया है, ताकि पार्टी के अंदर के मतभेदों को सुलझाया जा सके.
मुलाकातों का दौर जारी
चुनाव नतीजे आने के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर दिल्ली में बैठकों और मुलाकातों का दौर जारी है. कार्यवाहक मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की है, जबकि अनिल विज भी दिल्ली में पार्टी नेताओं से मिल चुके हैं. लगातार बदलती तारीखें और दावेदारों की भरमार ने पार्टी के लिए चुनौतियां बढ़ा दी हैं और यही वजह है कि पार्टी ने अमित शाह को हरियाणा में गुटबाजी को रोकने का जिम्मा सौंपा है.
हरियाणा में बीजेपी तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है, लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर पार्टी के अंदर मतभेद उभरकर सामने आ रहे हैं. नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया जा चुका है, लेकिन राव इंद्रजीत और अनिल विज की दावेदारी ने पार्टी नेतृत्व की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. अमित शाह को पर्यवेक्षक बनाकर भेजा गया है, ताकि विधायक दल की बैठक में नेता चुनने की प्रक्रिया बिना किसी विवाद के पूरी हो सके.
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