भारत-पाक युद्ध में पहली बार स्वदेशी फाइटर जेट LCA तेजस ने अपनी ताकत दिखाई. अत्याधुनिक तकनीक और शौर्य से सुसज्जित तेजस ने आसमान में विजय का परचम लहराया. चलिए, इसकी अब इसकी विशेषताओं पर एक नजर डालते हैं.
भारत ने जब स्वदेशी लड़ाकू विमान ‘तेजस’ को भारतीय वायुसेना में शामिल किया, तब यह सिर्फ एक तकनीकी उपलब्धि नहीं थी, बल्कि आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम भी था. अब इस विमान को भारतीय वायुसेना को एक अहम हिस्सा माना जाता है. इतने समय में इसने खुद को एक भरोसेमंद फाइटर जेट के रूप में साबित कर दिया है. यह विमान हल्का होने के बावजूद बेहद घातक है, और एकल सीट और इंजन के साथ काफी फुर्तीला भी.
अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे ‘तेजस’ नाम दिया
तेजस परियोजना की शुरुआत 1980 के दशक में उस समय हुई थी, जब यह तय किया गया कि मिग-21 जैसे पुराने विमानों का विकल्प तैयार किया जाना चाहिए. इसके विकास में दो दशकों से अधिक का समय लगा, लेकिन 2001 में इसने पहली बार उड़ान भरकर भारत की तकनीकी क्षमता का परिचय दिया. इसके कुछ वर्षों बाद, 2003 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे ‘तेजस’ नाम दिया, जो इसकी चमकदार और तेजस्वी पहचान को दर्शाता है.
'फ्लाइंग डैगर्स' नाम से जाना जाता है
1 जुलाई 2016 को भारतीय वायुसेना ने इस विमान की पहली यूनिट को औपचारिक रूप से शामिल किया. स्क्वाड्रन 45, जिसे 'फ्लाइंग डैगर्स' कहा जाता है. तेजस को अपनाकर देश में बनी तकनीक को फ्रंटलाइन पर खड़ा किया. तेजस को खासतौर पर इसीलिए विकसित किया गया ताकि मिग-21 जैसी तकनीकी रूप से पुरानी और दुर्घटनाओं से ग्रस्त मशीनों को हटाया जा सके.
एक बार में कई टारगेट्स को पकड़ सकता है
तकनीक के मामले में तेजस किसी भी आधुनिक फाइटर जेट से कम नहीं है. यह विमान उन्नत रडार प्रणाली, BVR मिसाइलें, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों और हवा में ईंधन भरने जैसी क्षमताओं से लैस है. इसकी यह खासियत है कि यह एक बार में कई टारगेट्स को पकड़ सकता है और सटीक निशाना साध सकता है. हल्का होने के बावजूद यह भारी हथियार प्रणाली ढोने की क्षमता रखता है, जो इसे बहु-भूमिका वाला लड़ाकू विमान बनाता है.
वैश्विक सैन्य बाजार का भी आकर्षण
तेजस की बढ़ती प्रतिष्ठा के चलते अब यह सिर्फ भारत का ही नहीं, बल्कि वैश्विक सैन्य बाजार का भी आकर्षण बन गया है. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देश इसमें दिलचस्पी दिखा चुके हैं. भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसका प्रदर्शन करके यह दिखाया है कि वह सिर्फ सैन्य उपकरणों का उपभोक्ता नहीं, बल्कि एक निर्माता राष्ट्र भी बन चुका है.
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