डीएनए हिंदी: फिलिस्तीन और इजरायल के बीच गाज़ापट्टी में चल रहे तनाव को लेकर भारत ने इजरायल पर हुए आतंकी हमले की निंदा कर इजरायल का साथ दिया. अब देखने वाली बात यह होगी कि भारत के इजरायल का समर्थन करने से क्या फिलिस्तीन और भारत के रिश्तों पर असर पड़ेगा क्योंकि इजरायल जिस तरह से भारत के लिए महत्वपूर्ण है उसी तरह से फिलिस्तीन भी अपना महत्व रखता है.

भारत और फिलिस्तीन के बीच 1949 से ही मधुर संबंध रहे. हाल ही में भारत और फिलिस्तीन सहयोग पर संयुक्त आयोग-JCBC का गठन किया. हमेशा से ही भारत ने फिलिस्तीन के लोगों के अधिकारों का समर्थन किया है. भारत के विदेश मंत्रालय के अनुसार, फिलिस्तीनी मुद्दे पर भारत का समर्थन देश की विदेश नीति का एक अभिन्न हिस्सा रहा है. साल 1974 में भारत, यासिर अराफ़ात की अगुवाई वाले फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (पीएलओ) को फिलिस्तीनी लोगों के एकमात्र और वैध प्रतिनिधि के रूप मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश बन गया था. 

फिलिस्तीन से भारत के रहे हैं अच्छे संबंध
यह भी कहा जाता है कि उस समय भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और यासिर अराफ़ात के बीच अच्छे संबंध थे. 1988 में भारत, फिलिस्तीन राष्ट्र को मान्यता देने वाले पहले देशों में से भी एक देश बन गया था. वहीं, वर्ष 1996 में भारत ने गाज़ा में अपना प्रतिनिधि कार्यालय खोला जिसे बाद में रामल्ला में स्थानांतरित कर दिया गया था. भारत ने 2003 और 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलिस्तीन का समर्थन किया था. भारत ने विभिन्न अवसरों पर फिलिस्तीन का साथ दिया. भारत और फिलिस्तीन प्रशासन के बीच नियमित रूप से उच्च स्तरीय द्विपक्षीय यात्राएं भी होती रही हैं. भारत ने फिलिस्तीन को कई तरह की आर्थिक सहायता भी दी है.

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पिछले हफ्ते आंतकी संगठन हमास द्वारा इजरायल पर हमला किया तो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुलकर कहा कि भारत आंतकी हमले के खिलाफ इजरायल के साथ खड़ा है. नरेंद्र मोदी ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से बात कर इस मुश्किल वक्त में साथ खड़े होने की बात भी की. भारत के फिलिस्तीन के साथ हमेशा से ही अच्छे रिश्ते रहे हैं. माना जाता है कि फिलिस्तीन को अरब देशों का पूरा सहयोग मिलता है, अब देखने वाली बात यह होगी कि इस हमले के बाद भारत और फिलिस्तीन के रिश्ते क्या मोड़ लेते हैं? 

अरब देशों ने कश्मीर मुद्दे पर नहीं दिया साथ
कश्मीर के मुद्दे पर भारत को कभी भी अरब देशों का कोई सहयोग नहीं मिला. शायद यही कारण रहा कि भारत ने पिछले कुछ सालों से इजरायल से रिश्ते और सुदृढ़ करने की कोशिश की है. भारत ने हमेशा से ही इजरायल और फिलिस्तीन के बीच एक बैलेंस बनाने की कोशिश की, शायद इसीलिए जब वर्ष 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इजरायल दौरे पर गए तो वह फिलिस्तीन वाले क्षेत्र में नहीं गए. हालांकि, 2018 में प्रधानमंत्री मोदी अलग से फिलिस्तीन दौरे पर गए. कहा जाता है कि भारत को अमेरिका के करीब लाने में इजरायल का सबसे बड़ा हाथ है.

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उधर, भारत में फिलिस्तीन के राजदूत ने इजरायल के गाज़ा पर लगातार हमलों को लेकर भारत से मदद मांगी है. उन्होंने कहा कि भारत के दोनों देशों के साथ दोस्ताना संबंध हैं इसलिए भारत फिलिस्तीन और इजरायल के बीच इस विवाद को सुलझा सकता है. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में बदलती वैश्विक परिस्थितियों में भारत, इजरायल और फिलिस्तीन के बीच रिश्तों में तालमेल बिठा पाएगा या फिर धीरे-धीरे फिलिस्तीन के साथ रिश्ते धुंधले पड़ जाएंगे.


नोट: यह लेख वरिष्ठ पत्रकार आकाश ने लिखा है. लेख में व्यक्त बातें उनका निजी विचार हैं.
 

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OPINION: इजरायल और हमास के विवाद में क्या होगा भारत का रुख़
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