देश में कही भी चुनाव हो फ्रीबीज एक बड़ा सियासी मुद्दा बन चुका है. राजनीतिक पार्टियों की तरफ से इसे बार-बार भुनाया जाता है. चुनाव के समय पार्टियां सत्ता बचाने और सत्ता में आने की होड़ में इसका खूब इस्तेमाल करती है. वहीं लोकतंत्र में गरीब तबके के लिए सब्सिडी और कल्याणकारी योजना भी बेहद जरूरी है. ताकि देश में आखिरी पायदान पर खड़ा तबका विकास और समृद्धि की राह में पीछे न रह जाए. कई बार इन्हीं योजनाओं को फ्रीबीज या मुफ्त की रेवड़ी के तौर पर देखा जाता है, और इसको लेकर सरकार पर सवाल उठाए जाते हैं. वहीं, कई बार सियासी पार्टियां अपना चुनावी गणित सही करने के चक्कर में इसका गलत इस्तेमाल भी करती है. ये मुद्दा इतना प्रासंगिक है कि इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में चर्चा हो चुकी है. बड़ा सवाल ये है कि आम जनता इसको लेकर क्या सोचती है? साथ ही इसको लेकर जानकारों और पत्रकारों की क्या राय है? इस मुद्दे पर हमने डीएनए और डीएनए हिंदी में एक डिबेट की पेशकश की है. इस पैनल डिबेट में कई सारे अहम राय निकलकर सामने आए हैं.
डीएनए के अलग-अलग पत्रकारों ने रखा अपना पक्ष
इस डिबेट शो का मूल मुद्दा है कि अगर आप भारत में करदाता हैं, तो हममें से कई लोगों की तरह, आप भी इस बात से चिंतित होंगे कि आपकी मेहनत की कमाई सरकार कैसे खर्च करती है. खासकर मुफ्त बांटने की राजनीति के दौर में ये सवाल बेहद प्रासंगिक है. खैर, मुफ्त बिजली, लैपटॉप और नकद हस्तांतरण कल्याण योजना कहें या मुफ्तखोरी की राजनीति वोट लेने के लिए कोई योजना चलाती है. लेकिन, चाहे आप इसे कितना भी छोटा क्यों न कर लें, हमेशा दो पक्ष रहेंगे और आज DNA आपके लिए देश में ज्वलंत सवाल पर चर्चा करने के लिए एक विशेष बहस शो लेकर आ रहा है, क्या मेरा कर मुफ्त वितरण के लिए है? इस शो को डीएनए के रिपोर्टर विकास मावी होस्ट कर रहे थे.
पत्रकारों ने रखी अपनी बात
डिबेट में डीएनए के पत्रकार अभिमन्यु माथुर ने फ्रीबीज की पॉलिसी के पक्ष में अपना तर्क रखा. उन्होंने कहा कि 'तत्काल राहत क्यों महत्वपूर्ण है, रियायतों के मामले में अल्पकालिक लाभ समाज के सबसे हाशिए पर पड़े वर्गों की मदद करते हैं, जो दिन में दो बार भोजन भी नहीं कर सकते हैं, वे उन्हें गरीबी में और गिरने से रोकते हैं और उन्हें साहूकारों से बचने में सक्षम बनाते हैं. वहीं आदित्य प्रकाश ने कहा कि फ्रीबीज की पॉलिसी का फायदा केवल जरुरतमंद लोगों को ही मिलनी चाहिए. साथ ही आदित्य ने कहा कि इसको लेकर राजनीति नहीं होनी चाहिए. आदित्य ने आगे कहा कि 'कई बार समर्थवान लोग भी इस तरह की सुविधाओं का फायदा उठा लेते हैं, जे कि गलत है.' पत्रकार रिया शर्मा ने कहा कि 'खराब आर्थिक संरचना यदि तत्काल अल्पकालिक लाभ के लिए किया जाता है, तो मुफ्त वितरण योजनाएं, एक खराब संरचना बना सकती हैं जिससे गलत निर्णय लिए जा सकते हैं. प्रव्रज्या सुरुचि ने कहा कि आर्थिक गतिविधि में समावेश के लिए मुफ्त उपहार आवश्यक हैं. मुफ़्त बिजली, मुफ़्त रसोई गैस जैसे संसाधनों के बिना, कई व्यक्तियों और परिवारों के पास आर्थिक गतिविधियों में भाग लेने और आर्थिक गतिशीलता को बढ़ाने के लिए कोई मंच नहीं होगा. इससे अमीर और गरीब के बीच की खाई और भी चौड़ी हो जाएगी.
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