डीएनए हिंदी: आंध्र प्रदेश में तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के एक पूर्व विधायक मुर्गों की लड़ाई (Cock Fight) करवा रहे थे. अचानक तेलंगाना पुलिस ने छापेमारी कर दी. पुलिस आने की खबर मिलते ही पूर्व विधायक चिंतामनेनी प्रभाकर वहां से भाग खड़े हुए. हालांकि, पुलिस ने इस छापेमारी में कुल 21 लोगों को गिरफ्तार किया है. इन लोगों के पास से 31 मुर्गे, 13 लाख से ज्यादा रुपये, 26 गाड़ियां और 27 मोबाइल फोन बरामद किए गए हैं.
टीडीपी के पूर्व विधायक चिंतामनेनी प्रभाकर ने कथित तौर पर एक आम के बाग में मुर्गो की लड़ाई का आयोजन किया था. पुलिस ने गुप्त सूचना पर बुधवार रात छापेमारी करके 21 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. हालांकि, सी. प्रभाकर समेत 50 अन्य भागने में सफल रहे. पुलिस ने जब छापेमारी की तो सैकड़ों लोग मुर्गे की लड़ाई करवाने और देखने में व्यस्त थे. पाटनचेरु के पुलिस उपाधीक्षक भीम रेड्डी ने कहा कि प्रभाकर के मुर्गों की लड़ाई की सूचना मिलने के बाद उन्होंने छापेमारी की. पुलिस टीम को वहां करीब 70 लोग मिले लेकिन प्रभाकर समेत ज्यादातर लोग अंधेरे का फायदा उठाकर भागने में सफल रहे.
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लाखों रुपये बरामद, दर्जनों गाड़ियां भी पकड़ीं
पुलिस ने इन लोगों के पास से 31 मुर्गे, 13.12 लाख रुपये नकद, 26 वाहन और 27 मोबाइल फोन जब्त किए हैं. पुलिस ने कहा कि आंध्र प्रदेश के एलुरु जिले के डेंडुलुरु के पूर्व विधायक प्रभाकर मुर्गो की लड़ाई को अंजाम दे रहे थे. अन्य मुख्य आयोजकों की पहचान अक्किनेनी सतीश, कृष्णम राजू, बारला राजू के रूप में की गई. प्रतिबंध के बावजूद संक्रांति समारोह के दौरान तटीय आंध्र प्रदेश के कई हिस्सों में मुर्गो की लड़ाई आम है. पड़ोसी राज्य के कई जिलों के कस्बों और गांवों में मुर्गो की लड़ाई के आयोजन के रूप में करोड़ों रुपये हाथ बदलते हैं.
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आयोजकों ने विशेष रूप के नस्ल के मुर्गे को अपने पैरों से बंधे छोटे चाकू या ब्लेड से लड़ाया. ऐसी लड़ाइयां अक्सर दो पक्षियों में से एक की मौत के साथ खत्म होती हैं. शक्तिशाली राजनेताओं और व्यापारियों द्वारा समर्थित आयोजक सट्टेबाजी में भाग लेने वालों और दर्शकों के लिए बैठने की विशेष व्यवस्था करते हैं. सट्टेबाजी में न केवल पड़ोसी गांवों और जिलों बल्कि तेलंगाना और अन्य राज्यों के पंटर भी भाग लेते हैं.
कुछ आयोजक हैदराबाद के बाहरी इलाके में मुर्गो की लड़ाई भी आयोजित करते हैं. ताजा घटना से पता चलता है कि मुर्गो की लड़ाई केवल संक्रांति समारोह तक ही सीमित नहीं है. साल 2016 में हाई कोर्ट ने मुर्गों की लड़ाई पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था. पशु अधिकार कार्यकर्ता बताते हैं कि पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 और आंध्र प्रदेश गेमिंग अधिनियम, 1974 के अनुसार मुर्गो की लड़ाई अवैध है. वे कहते हैं कि अदालत के आदेशों के बावजूद मुर्गो की लड़ाई बेरोकटोक जारी है. ऐसा कथित तौर पर निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के संरक्षण में यह हो रहा है.
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Andhra Pradesh में मुर्गों की लड़ाई करवा रहे थे टीडीपी के पूर्व विधायक, छापेमारी के बाद हो गए फरार