डीएनए हिंदी: दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली परिवहन निगम (DTC) से पूछा है कि उसने कैसे एक कलर ब्लाइंड व्यक्ति को ड्राइवर नियुक्त किया और उसे तीन साल तक बस चलाने की अनुमति दी. जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने कहा कि मामला बेहद गंभीर है क्योंकि इसमें जन सुरक्षा शामिल है और डीटीसी की ओर से हुई लापरवाही बहुत निराशाजनक है. कलर ब्लाइंड लोग विशेषकर हरे और लाल रंग के बीच अंतर नहीं करने में असमर्थ रहते हैं.
जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने मामलों की खेदजनक स्थिति पर अफसोस जताते हुए डीटीसी अध्यक्ष से उचित जांच के बाद एक व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने और 2008 में की गई भर्ती के लिए जिम्मेदार अधिकारी का ब्योरा मांगा है. अदालत ने एक कलर ब्लाइंड ड्राइवर की सेवाओं से संबंधित डीटीसी की याचिका पर यह आदेश पारित किया, जिसे जनवरी 2011 में एक दुर्घटना के कारण बर्खास्त कर दिया गया था.
कलर ब्लाइंड व्यक्ति की कैसे हुई भर्ती?
कोर्ट ने हालिया आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता प्राधिकार को यह सुनिश्चित करने में उपयुक्त सावधानी और सतर्कता बरतनी चाहिए थी कि उसका चालक उक्त पद पर नियुक्त होने के लिए सभी मानकों के अनुरूप है या नहीं. इसलिए यह न्यायालय अब इस तथ्य से अवगत होना चाहता है कि याचिकाकर्ता विभाग ने जन सुरक्षा पर विचार किए बिना प्रतिवादी को क्यों और किन परिस्थितियों में नियुक्त किया था? क्योंकि इस तरह की लापरवाही से सार्वजनिक सुरक्षा में गंभीर प्रभाव पड़ सकता है.
हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि यह बहुत भयावह स्थिति है कि कलर ब्लाइंड शख्स को डीटीसी विभाग में चालक के रूप में नियुक्त किया गया और 2008 में उसकी नियुक्ति किए जाने के बाद से 2011 तक यानी तीन साल तक विभाग की बसें चलाने की अनुमति दी गई.
100 से ज्यादा कलर ब्लाइंड लोगों की हुई थी भर्ती
यह पूछे जाने पर कि भर्ती के समय वर्णांधता से पीड़ित एक व्यक्ति को ड्राइर कैसे नियुक्त किया गया तो अदालत को बताया गया कि यह गुरु नानक अस्पताल द्वारा जारी चिकित्सा प्रमाणपत्र के आधार पर किया गया था. विभाग की ओर से यह भी कहा गया कि वर्णांधता से पीड़ित 100 से अधिक लोगों को नियुक्त किया गया था, जिसके चलते 2013 में एक स्वतंत्र मेडिकल बोर्ड का गठन करना पड़ा था. (PTI इनपुट के साथ)
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3 साल तक DTC बस चलाता रहा कलर ब्लाइंड ड्राइवर, पोल खुली तो हाईकोर्ट ने मांग लिया जवाब