डीएनए हिंदी:  इस बात में कोई दो राय नहीं हैं कि कामकाजी महिलाओं की जिंदगी में जिम्मेदारियां ज्यादा होती हैं. उन्हें अपने घर का काम भी करना होता है और फिर घर से बाहर जाकर भी वह काम करती हैं. इसे लेकर लोग अलग-अलग तरीके से अपनी राय रखते रहते हैं, मगर अब इस मामले में कोर्ट ने भी अहम टिप्प्णी की है. कोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा, 'अपने घर का काम करने के लिए सुबह 4 बजे उठना, फिर नौकरी पर जाना और शाम को लौटकर फिर से घर का काम करना, क्रूरता नहीं है बल्कि जिम्मेदारियों का हिस्सा है.' जानिए क्या है पूरा मामला-

क्यों की मुंबई कोर्ट ने यह टिप्पणी
यह टिप्पणी मुंबई की एक सत्र अदालत ने एक 30 वर्षीय व्यक्ति प्रशांत शेलार और उसकी मां वनिता को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में बरी करते हुए की. व्यक्ति पर अपनी पत्नी प्रियंका को 2015 में आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप था और इस मामले में उसकी मां को भी आरोपी बनाया गया था.

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क्या था पूरा मामला
प्रियंका एक घरेलू सहायिका के तौर पर काम करती थी. जहां वह काम करने जाती थी उसने उसी घर में आत्महत्या कर ली. इसी मामले में कोर्ट ने उसके पति और सास के पक्ष में फैसला सुनाते हुए टिप्पणी की कि घर का काम करना और पैसा कमाने के लिए घरेलू सहायिका के रूप में किसी के यहां काम करना प्रियंका की सामान्य जिम्मेदारी थी. इसलिए, प्रियंका को अपने घर के अलावा अन्य काम करने के लिए कहना क्रूरता नहीं मानी जाएगी. यह पारिवारिक संस्थाओं में एक सामान्य बात है. इससे सीधे तौर पर यह साबित नहीं होता कि इसी वजह से प्रियंका ने आत्महत्या की.

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2014 में हुई थी शादी
प्रशांत और प्रियंका की 2014 में शादी हुई थी. प्रशांत और उसकी मां पर प्रियंका के घरवालों ने कई आरोप लगाए थे. इसमें कि उन्होंने उनकी बेटी के रंग को लेकर ताना मारा, उसके चरित्र पर संदेह किया, उसे अपने परिवार से बात करने की अनुमति नहीं दी और उसे रोजाना 6 किलोमीटर से अधिक चलने के लिए मजबूर किया.

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'घर के काम के साथ नौकरी के लिए कहना, क्रूरता नहीं है', महिला की मौत मामले में को
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'घर में काम करने के साथ जॉब के लिए कहना, क्रूरता नहीं है', महिला की मौत मामले में कोर्ट की अहम टिप्‍पणी