डीएनए हिंदी: संसद के विशेष सत्र के दूसरे दिन लोकसभा में महिला आरक्षण विधेयक पेश किया गया. इस विधेयक में प्रावधान है कि लोकसभा दिल्ली विधानसभा और सभी राज्यों के विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण मिलेगी. यानी कि महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित होंगी. इसे 128वें संविधान संशोधन विधेयक के तहत पेश किया गया है. इस संशोधन के बाद लोकसभा में एक तिहाई भागीदारी महिलाओं की होगी. इस विधेयक से महिला सशक्तिकरण को मजबूती मिलने के साथ ही आधी आबादी के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा मिलेगा. आइए आज डीएनए टीवी शो में जानते हैं कि महिला आरक्षण बिल 2024 के लोकसभा चुनाव में क्यों नहीं लागू होगा.
महिलाओं के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में 33 फीसदी सीटें आरक्षित होंगी. SC-ST के लिए आरक्षित सीटों में से 33 फीसदी पर उसी समुदाय की महिलाओं को आरक्षण का लाभ मिलेगा. इस बिल में प्रस्ताव है कि हर परिसीमन की प्रक्रिया के बाद महिला आरक्षित सीटों को बदला जाएगा यानी महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें बदल दी जाएंगी. आपको बता दें कि परिसीमन के जरिये लोकसभा और विधानसभा सीटों का दोबारा से निर्धारण किया जाता है. इस बिल के मुताबिक महिला आरक्षण कानून की समय सीमा 15 वर्ष होगी यानी 15 वर्ष बाद ये आरक्षण खत्म हो जाएगा. हालांकि उसके बाद संसद में संशोधन के जरिए इस आरक्षण को बढ़ाया जा सकेगा. अगर ये बिल पास होकर कानून बन जाता है तो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में हर तीसरी सदस्य, महिला होगी लेकिन समझने वाली बात ये है कि अगर ये बिल पास हो भी जाता है, तब भी 2024 के लोकसभा चुनाव में लागू नहीं होगा.
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महिला आरक्षण बिल 2024 के लोकसभा चुनाव में नहीं होगा लाग
महिला आरक्षण परिसीमन के बाद ही लागू होगा. अगला परिसीमन, तब होगा जब नई जनगणना हो जाएगी. लगभग तय है कि जनगणना और परिसीमन, आम चुनाव के बाद ही होगा. अगर अभी महिला आरक्षण बिल पास होकर कानून बन भी जाता है तो इस बार के लोकसभा चुनाव में लागू नहीं हो पाएगा. आपको जानकर हैरानी होगी कि महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने वाला ये बिल नया नहीं है क्योंकि सबसे पहले ये बिल वर्ष 1996 में लाया गया था. आज कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष, मोदी सरकार द्वारा लाए गए इस महिला आरक्षण विधेयक को समर्थन दे रहा है लेकिन सच तो ये है कि 27 साल में कई बार संसद में पेश होने के बावजूद, महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने वाला ये बिल आजतक कानून नहीं बन पाया.
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पहली बार कब पेश हुआ था बिल ?
पहली बार महिला आरक्षण बिल को एचडी देवेगौड़ा की सरकार ने 12 सितंबर 1996 को पेश किया था. तब सरकार को समर्थन दे रहे मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव, महिला आरक्षण बिल के विरोध में थे. बिल पास होने से पहले ही देवेगौड़ा सरकार अल्पमत में आ गई थी. इसके बाद जून 1997 में गुजराल सरकार के कार्यकाल में फिर एक बार इस बिल को पास करवाने की कोशिश हुई. वर्ष 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की NDA सरकार में भी महिला आरक्षण बिल को पेश करने की कोशिश हुई. इसके बाद 1999 में भी दोबारा इस बिल को संसद में पेश करने की कोशिश हुई. वाजपेयी सरकार ने ही वर्ष 2003 में एक बार फिर महिला आरक्षण बिल पेश करने की कोशिश हुई. लेकिन ये बिल कभी पास ही नहीं हो पाया क्योंकि जो नेता, संसद के बाहर महिला सशक्तिकरण पर बड़े बड़े भाषण देते थे, वो ही संसद में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने के खिलाफ खड़े हो गए थे. वाजपेयी सरकार ने संसद में महिला आरक्षण बिल छह बार पेश किया. आज जो कांग्रेस महिला आरक्षण बिल का श्रेय लेने की कोशिश कर रही है, उसी कांग्रेस और उसके उसके सहयोगी दलों ने हर बार महिला आरक्षण बिल को कानून बनने से रोका.
मनमोहन सिंह की सरकार बनी तो महिला आरक्षण बिल का क्या हुआ?
राज्यसभा में 8 मार्च 2010 मनमोहन सरकार ने महिला आरक्षण बिल पेश हुआ तो UPA के ही सहयोगी दल समाजवादी पार्टी के सांसदों ने बिल की कॉपी फाड़ दी और बिल पर चर्चा को रोकने की कोशिश हुई. अगले दिन जब बिल पर वोटिंग हुई तो सरकार की सहयोगी BSP और TMC ने वोटिंग में हिस्सा ही नहीं लिया लेकिन फिर भी राज्यसभा में ये बिल पास हो गया क्योंकि बीजेपी ने तब इस बिल के समर्थन में वोट दिया था. लोकसभा में 262 सीटें होने के बावजूद मनमोहन सरकार इस बिल को पास नहीं करवा पाई क्योंकि उसके ही सहयोगी दलों ने इस बिल का विरोध कर दिया.
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DNA TV SHOW: महिला आरक्षण बिल 2024 के लोकसभा चुनाव में नहीं होगा लागू, जानें क्या है इस बारे में पूरी बात