देश में अगर कोई सरकारी कर्मचारी रिश्वत लेते पकड़ा जाता है तो उसके खिलाफ केस दर्ज होता है. दोषी पाए गए पर जेल की सजा भी होती है. लेकिन क्या आपको पता है कि अगर कोई सांसद या विधायक रिश्वत लेकर संसद या विधानसभा में सवाल पूछते पकड़ा जाए या वोट देते पकड़ा जाए तो उस पर ना FIR होती है और ना केस चलता है. इसके पीछे क्या कारण है आइये समझते हैं.
आपको 2008 का Cash For Vote कांड याद होगा. जब मनमोहन सरकार के खिलाफ संसद में विश्वास प्रस्ताव लाया गया था. जिसे मनमोहन सरकार जीत गई थी. लेकिन उसी दिन संसद में बीजेपी के तीन सांसदो ने नोटों की गड्डियां लहराते हुए आरोप लगाया था कि उन्हें मनमोहन सरकार बचाने के लिए वोट देने के लिए रिश्वत की पेशकश की गई थी. लेकिन क्या आपको पता है कि जिन सांसदों पर कैश फॉर वोट का आरोप लगा था. उनके खिलाफ रिश्वतखोरी का कोई केस दर्ज नहीं हुआ था. क्योंकि अब तक हमारे देश के माननीयों के लिए संसद या विधानसभा में पैसे लेकर वोट देना या भाषण देना उनका विशेषाधिकार होता था.
साल 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि पैसे लेकर संसद या विधानसभा में सवाल पूछने या वोट देने के मामलों में जनप्रतिनिधियों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है. लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने अपने ही 26 साल पुराने फैसले को पलट दिया और कह दिया कि सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या वोट के लिए रिश्वत लेने पर मुकदमे से छूट नहीं दी जा सकती.
इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही पुराने फैसले को पलटकर ऐतिहासिक फैसला सुनाया. कोर्ट पैसे लेकर सदन में सवाल पूछने और वोट देने वाले सांसदों को मिलने वाले Legal Immunity को खत्म कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले का क्या मतलब है और इससे क्या बदलेगा? आज हम आपको इन सारे सवालों के जवाब आसान भाषा में समझा देते हैं. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को समझने के लिए आपको ये पता होना चाहिए कि हमारे देश के सांसदों और विधायकों को कौन से विशेषाधिकार प्राप्त हैं.
इन विशेषाधिकारों को भारतीय संविधान के आर्टिकल 105 और 194 में परिभाषित किया गया है..
संविधान में सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने की स्वतंत्रता दी गई है.
सदन में दिए गए भाषण और वोटों की न्यायिक जांच से भी छूट दी गई है.
लेकिन हमारे देश के माननीयों ने इसकी अलग ही व्याख्या कर दी थी. जिसके मुताबिक संविधान ने सांसदों को रिश्वत लेकर सदन में भाषण देने और वोट देने की भी स्वतंत्रता दी है जिसके खिलाफ कोई न्यायिक जांच नहीं हो सकती. वर्ष 1998 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी इसी बात की पुष्टि करता है. जिसे आज सुप्रीम कोर्ट ने ही गलत ठहरा दिया है.
अब बच नहीं सकेंगे विधायक-सांसद
सुप्रीम कोर्ट के आदेश को आम बोल-चाल की भाषा में समझाएं तो सदन में वोट देना और स्पीच देना. सांसदों और विधायकों का विशेषाधिकार है. ना कि रिश्वत लेकर वोट देना या स्पीच देना. अब हम आपको इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के तर्क और विचार सुनवाना चाहते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कह दिया है कि संसद या विधानसभा में वोट देने या किसी को फायदा पहुंचाने वाली स्पीच देने के लिए रिश्वत लेने वाले माननीय विशेषाधिकार की आड़ लेकर बच नहीं पाएंगे. उनके खिलाफ केस भी चलेगा और दोष साबित हुआ तो सजा भी मिलेगी. यानी अब अगर कोई सांसद या विधायक पैसे लेकर सदन में सवाल पूछेगा या वोट देगा तो उसे लेने के देने पड़ जाएंगे.
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