करीब दो साल बाद एक बार फिर किसानों ने दिल्ली की घेराबंदी शुरू की है. इस बार पंजाब के किसान, किसान मजदूर मोर्चा के बैनर तले प्रदर्शन के लिए दिल्ली पहुंचे हैं. इस किसान मजदूर मोर्चा में करीब 250 अलग-अलग संगठन शामिल हैं. दो साल पहले वर्ष 2020 में जब संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर पर पहली बार किसानों ने सरकार के खिलाफ, दिल्ली की घेराबंदी की थी, तब करीब 500 संगठन एक साथ आए थे. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हैं. इसमें किसानों और मजदूरों के संगठन शामिल थे. इस बार की अहम मांग MSP को लेकर है. ऐसे में आज के DNA टीवी शो में इसी के बारे में विस्तार से यह समझाया गया कि आखिर सरकार क्यों MSP को लेकर हिचक रही है.
इस बार का किसान आंदोलन पंजाब से शुरू हुआ है इसीलिए ज्यादातर किसान संगठन पंजाब के ही हैं. बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी किसानों ने आज दिल्ली में घुसने की कोशिश की लेकिन पिछली बार जो कामयाबी उन्हें मिली थी, इस बार वह कामयाबी नहीं मिल पाई. यही वजह थी कि दिल्ली से लगती सीमाओं पर पुलिस और किसानों की उग्र झड़प भी हुई. प्रदर्शनकारी किसान टैक्टर के सहारे, बैरिकेडिंग तोड़ने की कोशिश करते रहे, और पुलिस ने भी उन्हें रोकने के इंतज़ाम, पहले से बेहतर किए हुए थे. प्रदर्शनकारी किसानों को पिछली बार पुलिस के विरोध का इतना सामना नहीं करना पड़ा था लेकिन इस बार स्थिति कुछ अलग थी. यही वजह रही कि आज शाम 3 बजे से हालात कई जगहों पर बिगड़ते भी नजर आए.
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कहां हुआ हंगामा?
पिछली बार जब किसान आंदोलन हुआ था, तो दिल्ली की सीमाओं से किसान आंदोलनकारी दिल्ली में घुसे थे. खासकर सिंघू, टीकरी, जौंती और गाजीपुर सीमा पर किसानों ने लंबे समय तक धरना दिया था. लेकिन इस बार इन सीमाओं पर पुलिस ने विशेष तैयारियां की हैं. अब सवाल ये है कि फिलहाल किसानों का हंगामा कहां चल रहा है? फिलहाल जो हंगामा आप देख रहे हैं, वो दिल्ली से करीब 200 किलोमीटर दूर हरियाणा के अंबाला शहर से कुछ आगे शंभू बॉर्डर पर हो रहा है.
#WATCH | Heavy traffic snarl seen near Singhu border in Delhi amid strict security measures in view of farmers' protest.
— ANI (@ANI) February 13, 2024
(Drone visuals) pic.twitter.com/RRLtqxWKM9
पुलिस की कोशिश यही है कि पंजाब से आने वाले जितने भी किसान संगठन हैं, जो दिल्ली की घेराबंदी के लिए दिल्ली की सीमाओं पर आने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें वहीं रोक दिया जाए.
हरियाणा-पंजाब के शंभू बॉर्डर पर ही सबसे ज्यादा बवाल हो रहा है क्योंकि पुलिस ने किसानों को वहीं पर रोकने के लिए हर मुमकिन इंतजाम किए हैं. किसानों को रोकने के लिए सीमेंटेड बैरिकेड का इस्तेमाल किया गया है. हरियाणा पुलिस आंसू गैस के गोले भी दाग रही है, ताकि किसान इस सीमा को पार ना करें. यही नहीं पानी की बौछारों के जरिए भी हंगाम कर रहे किसान प्रदर्शनकारियों को रोकने की कोशिश की जा रही हैं.
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सूत्रों से कुछ जानकारियां हमें मिली हैं, जिसके मुताबिक किसानों ने अपनी मांगों की जो लिस्ट बनाई है. उनमें से कई मांगों पर सरकार राज़ी हो गई है. किसानों की 13 मांगों में से 10 मांगों को सरकार ने मान लिया है और 3 मांगों पर विचार करने की बात कही है. केंद्र सरकार पिछले किसान आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज किए गए केस वापस ले रही है. लखीमपुर खीरी कांड में घायल किसानों को मुआवजा देने की बात कही है, ये भी कहा गया है कि कई किसानों को मुआवज़ा दिया भी गया है. लेकिन वो 3 मांगें जिस पर सरकार विचार करने की बात कह रही है.
पहली- MSP की गारंटी
सरकार का कहना है कि MSP गारंटी कानून पर अकेले केंद्र सरकार फैसला नहीं सकती है, इसके लिए राज्य सरकारों को भी तैयार करना होगा. यही नहीं खेती से जुड़े अन्य लोगों को भी इसके लिए तैयार करना होगा. इस प्रक्रिया में समय लगेगा.
दूसरी- कर्ज माफी
सरकार का कहना है कि वह पहले से ही किसान सम्मान निधि को लेकर हर वर्ष 75 हजार करोड़ रुपये देश के किसानों को दे रही है. हर साल 6 हजार रुपये किसानों के बैंक खाते में जा रहे हैं. पिछले 5 वर्षों में साढ़े 3 लाख करोड़ रुपये दिए जा चुके हैं. यही नहीं, सरकार सस्ते दर पर कर्ज मुहैया करवा रही है. खेती से संबंधित मशीनों की खरीद पर सब्सिडी दी जाती है. सरकार का मानना है कि कर्ज माफी से बैकों पर बुरा असर पड़ता है, जिसका असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है.
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तीसरी- किसानों को पेंशन
सरकार का तर्क है कि पेंशन का बोझ देश के करदाताओं पर डालना गलत होगा. सरकार के मुताबिक देश में 6 करोड़ लोग टैक्स देते हैं, ऐसे में 50 करोड़ किसानों की पेंशन का बोझ उनपर नहीं डाला जा सकता है। सरकार का कहना है कि किसानों पर वैसे भी किसी तरह का टैक्स नहीं लगाया जाता है.
MSP की गारंटी क्यों नहीं देती सरकार?
अब सवाल ये है कि आखिर केंद्र सरकार MSP क़ानून क्यों नहीं ला रही है? बहुत से लोगों के मन में यह सवाल होगा कि आखिर सरकार किसानों की MSP वाली मांग को स्वीकार क्यों नहीं कर लेती. इसके लिए आपको भारत सरकार की क्षमताओं को समझना पड़ेगा. किसी भी सरकार की तरह भारत सरकार के पास भी आमदनी के कुछ स्रोत हैं और कुछ खर्चे हैं. हर जिम्मेदार सरकार को इन दोनों के बीच सामंजस्य बनाना होता है. अगर खर्चे बढ़ते गए और आमदनी कम होती गई तो देश दिवालिया होने की स्थिति में आ जाता है.
आर्थिक मामलों के जानकारों के मुताबिक अगर भारत सरकार किसानों की MSP कानून की मांग स्वीकार कर लेती है और हर फसल को MSP पर खरीदती है, तो इससे भारत सरकार पर अतिरिक्त 10 लाख करोड़ रुपए का बोझ बढ़ जाएगा. भारत के लिए 10 लाख करोड़ रुपए की अहमियत क्या है, ये भी आपको जानना जरूरी है.
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लगभग इतनी ही रकम भारत सरकार हर साल पूरे देश के इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च करती है. यानी भारत सरकार अगर सड़कों, रेलवे, अस्पतालों और स्कूलों पर होने वाले सारे खर्च बंद कर दे, तब जाकर वो किसानों की हर फसल पर MSP गारंटी दे सकती है.
बजट से समझें गणित
अगर आप इसी महीने पेश हुए देश के बजट को देखें तो आपको पता चलेगा, कि इस वर्ष भारत सरकार के पूरे खर्च का बजट, लगभग 45 लाख करोड़ रुपए ही है. इस खर्च में सभी सरकारी कर्मचारियों को दिए जाने वाले वेतन, पेंशन, रक्षा बजट, इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसी हर चीज़ शामिल है.
तो सोचिये अगर किसी सरकार का कुल खर्च का बजट 45 रुपए है, तो क्या वो इसमें 10 रुपए सिर्फ MSP कानून को लागू करने के लिए खर्च कर सकती है? आप भी सरकार की मुश्किल समझ गए होंगे.
हर फसल पर MSP गारंटी देना, व्यवहारिक तौर पर मुमकिन नहीं है. इसको हम आपको उदाहरण के जरिए समझाते हैं. मान लीजिए सरकार MSP कानून बना देती है, तो जाहिर है कि किसान वही फसलें पैदा करेंगे जो MSP में शामिल होंगी. जैसे पंजाब में किसान गेंहू या चावल की फसल पर बहुत ज़ोर देते हैं, वजह ये है कि पंजाब में सरकार इन फसलों पर अच्छी कीमत देती है.
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क्या होगा असर?
अगर हम मान लें कि मूंग की दाल की फसल पर सरकार अच्छी कीमत नहीं देती है, तो किसान मूंग की दाल की फसल पर ध्यान ही नहीं देंगे. वो उसी फसल की बुआई करेंगे, जिससे ज्यादा कमाई हो. ऐसे में कुछ फसलों की सप्लाई ज्यादा होगी और कुछ फसलों की बिल्कुल कम हो जाएगी. इसके अलावा भारत सरकार के पास सारी फसलों को खरीदने या उन्हें स्टोर करने की क्षमता नहीं है. अगर हर फसल पहले से तय MSP पर खरीदी जाती रही तो इसका असर देश की महंगाई दर पर भी पड़ेगा. और खाद्य पदार्थों की खुदरा कीमतें भी बढ़ेंगी.
यही वो कारण है कि जिसकी वजह से अर्थशास्त्रियों का मनना है कि MSP के बजाय किसानों को इनकम सपोर्ट देना चाहिए. मोदी सरकार इसी वजह से किसान सम्मान निधि के जरिए, इस दिशा में काम कर रही है.
तो फिलहाल आपको इतना तो समझ में आ गया होगा कि किसानों की मुख्य मांग MSP है, जिस पर सरकार का राज़ी होना मुश्किल है. यही वजह है कि किसानों का ये आंदोलन, आने वाले कुछ समय में बढ़ेगा. अब सवाल ये है कि दिल्ली के लोगों का क्या? उनके बारे में कोई क्यों नहीं सोचता. अपनी मांगों को लेकर हजारों की संख्या में दिल्ली की सीमा पर किसानों का जमावड़ा, आम लोगों की परेशानी का सबब बनता है. पिछली बार भी किसान आंदोलन के समय, आम लोगों बहुत परेशानियां हुई थीं. ऐसे में दिल्ली और उसके आसपास के लोग ये जानना चाहते होंगे कि इस बार क्या हालात बनने वाले हैं तो फिलहाल दिल्ली की सीमाओं पर क्या हाल है, पुलिस ने किस तरह की तैयारियां की हैं, ये हम आपको अपनी एक रिपोर्ट के जरिए बताते हैं.
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