साल 2019 में रामायण से जुड़ी अयोध्या नगरी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था. इसी फैसले के बाद राम मंदिर बना जिसका उद्घाटन 22 जनवरी को हुआ. हाल ही में वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने में पूजा की अनुमति दी गई. अब महाभारत काल से जुड़े लाक्षागृह के बारे में अदालत का फैसला आया है. 53 साल बाद आए इस फैसले में पांडवों के लाक्षागृह का मालिकाना हक हिंदू पक्ष को दिया गया है. लाक्षागृह उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में स्थित है.
रिपोर्ट के मुताबिक, बागपत के बरनावा में बने लाक्षागृह को लेकर पिछले 53 सालों से विवाद चल रहा है. लंबे समय से हिंदू और मुस्लिम पक्ष की मुकदमेबाजी जारी थी. साल 1970 में मेरठ की अदालत में दायर इस केस की सुनवाई अब बागपत जिला अदालत में हो रही थी.
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53 साल बाद आया फैसला
1970 में शुरू हुए इस मुकदमें में बागपत के सिविल जज शिवम द्विवेदी ने फैसला सुना दिया है. बरनावा के निवासी मुकीम खान ने वक्फ बोर्ड के पदाधिकारी की हैसियत से मुकदमा दर्ज कराया था. इस मुकदमे में दूसरा पक्ष लाक्षागृह के गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज थे. मुकीम खान ने लाक्षागह पर दावा ठोका था कि इस पर वक्फ बोर्ड का मालिकाना हक है. उनका दावा था कि इस टील पर शेख बदरुद्दीन की मजार और बड़े कब्रिस्तान की जमीन थी.
मुस्लिम पक्ष ने कृष्णराज महाराज को बाहरी बताते हुए कहा था कि वह कब्रिस्तान को खत्म करना चाहते थे और इसे हिंदुओं का तीर्थ बनना चाहते थे. बता दें कि मुकीम खान और कृष्णदत्त महाराज दोनों ही अब इस दुनिया में नहीं हैं. कोर्ट में पैरवी करने वाले मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यहां शेख बदरुद्दीन की मजार थी जिसे हटा दिया गया है. अब 108 बीघे की इस जीन पर फैसला देते हुए कोर्ट ने इसे हिंदू पक्ष को दिया है.
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क्यों चर्चित है लाक्षागृह?
माना जाता है कि महाभारत काल में कौरवों ने पांडवों को जलाकर मार डालने के लिए एक योजना बनाई थी. हालांकि, पांडवों को इस योजना का पता चल गया था और यहां से वे बचकर निकल गए थे. कहा जाता है कि पांडवों ने यहां से निकल भागने के लिए सुरंग का इस्तेमाल किया. यहां से हजारों साल पुराने ऐतिहासिक साक्ष्य भी बरामद होते रहे हैं.
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रामायण के बाद महाभारत की बारी, 53 साल बाद हिंदुओं को मिला लाक्षागृह का मालिकाना हक