मध्य प्रदेश के धार में स्थित ऐतिहासिक भोजशाला बसंत पंचमी के अवसर पर चार दिवसीय उत्सव की शुरुआत हो गई है. 3 फरवरी से शुरू हुए इस आयोजन के लिए सुरक्षा के तगड़े इंतजाम किए गए हैं. 700 से ज्यादा पुलिसकर्मी और 40 से अधिक अधिकारियों को सुरक्षा के लिए तैनात किया गया है. 70 सीसीटीवी कैमरों की मदद से आयोजन स्थल के चप्पे-चप्पे पर नजर रखी जा रही है. सोमवार सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ भोजशाला में उमड़ रही है. आयोजन स्थल पर सुरक्षा के ऐसे बंदोबस्त किए गए हैं क्योंकि धार की भोजशाला बसंत पंचमी के आते ही विवादों में आ जाती है. करीब 800 साल पुरानी इस भोजशाला को लेकर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच मतभेद हैं. हिंदू इसे मां सरस्वती का मंदिर मानते हैं जबकि मुसलमान पुरानी इबादतगाह होने का दावा करते हैं. हिंदू समुदाय मंगलवार को यहां दर्शन-पूजन और हनुमान चालीसा का पाठ करता है जबकि शुक्रवार को मुसलमान यहां नमाज अदा करने आते हैं.
राजा भोज ने की स्थापना
धार की ऐतिहासिक भोजशाला के बारे में हिंदुओं का दावा है कि यह राजा भोज द्वारा स्थापित सरस्वती सदन है. परमार वंश के राजा भोज ने 1010 से 1055 ईस्वी तक शासन किया था. 1034 में उन्होंने सरस्वती सदन की स्थापना की थी. उनके शासनकाल में ही यहां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित की गई थी. सरस्वती सदन एक कला महाविद्यालय की तरह था जो बाद में भोजशाला के नाम से मशहूर हुआ. 1875 में खुदाई के दौरान सरस्वती की वही प्रतिमा मिली थी. अंग्रेजों का पॉलिटिकल एजेंट मेजर किनकेड साल 1880 में इसे लेकर इंग्लैंड चला गया. यह प्रतिमा अभी भी लंदन के एक म्यूजियम में सुरक्षित है.
1902 में विवाद की शुरुआत
1456 में महमूद खिलजी ने यहां पर मौलाना कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण कराया. उस समय तक भोजशाला को लेकर कोई विवाद नहीं था. विवाद की शुरुआत साल 1902 में हुई जब काशीराम लेले धार के शिक्षा अधीक्षक थे. लेले ने मस्जिद के फर्श पर संस्कृत के श्लोक खुदे देखे. इस आधार पर उन्होंने इसे भोजशाला बताया था. 1909 में धार रियासत ने भोजशाला को संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया. इसके बाद यह पुरातत्व विभाग के मातहत आ गया.
1935 में नमाज की इजाजत
भोजशाला को लेकर विवाद का दूसरा पड़ाव 1935 में आया, जब धार के महाराज ने इमारत के बाहर तख्ती टंगवाई. तख्ती पर भोजशाला लिखा था. साथ ही, कमाल मौलाना का मस्जिद भी लिखा था. धार स्टेट ने 1935 में ही भोजशाला परिसर में नमाज पढ़ने की अनुमति दी थी. धार राजवंश के दीवान रहे नाडकर ने भोजशाला को कमाल मौलाना की मस्जिद बताते हुए शुक्रवार को नमाज की अनुमति का आदेश जारी किया था. यही आदेश आगे चलकर विवाद का कारण बना.
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आजादी के बाद गहरा हुआ विवाद
आजादी के बाद हिंदू और मुसलमान, दोनों समुदायों ने भोजशाला पर अपना-अपना दावा ठोका और ये मुद्दा सियासी रंग में रंग गया. मंदिर में प्रवेश को लेकर हिंदुओं ने आंदोलन किया. फिलहाल यह मामला कोर्ट में है.
बसंत पंचमी पर खास इंतजाम
बहरहाल, अभी इस जगह पर पूजा और नमाज दोनों की अनुमति होने के चलते कई बार यहां सांप्रदायिक तनाव के हालात बन जाते हैं. प्रशासन के लिए ज्यादा समस्या तब होती है जब बसंत पंचमी शुक्रवार को पड़ जाता है। बसंत पंचमी के मौके पर हिंदुओं को पूरे दिन पूजा-पाठ की अनुमति होती है. उधर, मुसलमान भी नमाज के लिए आते हैं. प्रशासन को इस बात का खास ध्यान रखना होता है कि दोनों समुदाय आमने-सामने न आ जाएं.
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बसंत पंचमी पर क्यों चर्चा में आ जाती है धार की भोजशाला, क्या है इसको लेकर विवाद, जानिए सब कुछ