डीएनए हिंदी: मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में शुक्रवार को एक और चीते की मौत हो गई. जिस चीते ने इस बार दम तोड़ा है उसका नाम सूरज था जिसे साउथ अफ्रीका से कूनो लाया गया था. इससे तीन दिन पहले नर चीते तेजस की मौत हो गई थी. इस साल मार्च से श्योपुर जिले के पार्क में मरने वाले चीतों की संख्या 8 हो गई है. वन विभाग के अधिकारी ने बताया कि सूरज को शुक्रवार सुबह एक निगरानी टीम ने पालपुर पूर्वी वन रेंज के मसावनी बीट में पड़ा हुआ पाया. उन्होंने बताया कि जब वे उसके पास गए तो उन्होंने देखा कि कीड़े उसकी गर्दन पर मंडरा रहे थे लेकिन वह फिर उठकर भाग गया.
अधिकारी ने बताया कि पशु चिकित्सकों और वन अधिकारियों की एक टीम मौके पर पहुंची और सुबह करीब 9 बजे चीता मृत पाया गया. उन्होंने कहा, "यह पहली बार है कि मुक्त क्षेत्र में किसी चीते की मौत हुई है. सूरज की पीठ और गर्दन पर चोट के निशान थे. इसके साथ ही मार्च से अब तक केएनपी में नामीबियाई चीता ‘ज्वाला’ से पैदा हुए तीन शावकों सहित 8 चीतों की मौत हो चुकी है. इससे मोदी सरकार द्वारा पिछले साल सितंबर में बहुत जोर-शोर से चीतों को देश में फिर से बसाने की योजना के तहत शुरु किए गए ‘प्रोजेक्ट चीता’ को झटका लगा है.
3 दिन पहले भी एक चीते की हुई थी मौत
इससे पहले 11 जुलाई को नर चीते तेजस की मौत हो गई थी. प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ), वन्यजीव जेएस चौहान ने बताया कि केएनपी में लगभग 4 साल के तेजस की संभवत: आपसी लड़ाई के कारण मौत हो गई थी. अधिकारी ने कहा कि देश में चीतों को बसाने के लिए दक्षिण अफ्रीका से लाया गया चीता घटना के समय एक बाड़े में था. मंगलवार सुबह करीब 11 बजे बाड़ा संख्या-6 में तेजस की गर्दन पर कुछ चोट के निशान देखे जिसके बाद पशु चिकित्सकों को बुलाया गया. कहा गया है कि उचित मंजूरी मिलने के बाद पशु चिकित्सकों की एक टीम दोपहर करीब दो बजे मौके पर पहुंची, लेकिन चीता मृत पाया गया.
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मार्च में मादा ज्वाला ने 4 शावकों को दिया था जन्म
बता दें कि मादा ज्वाला ने इस साल मार्च में 4 शावकों को जन्म दिया था, लेकिन मई में निर्जलीकरण और कमजोरी के कारण उनमें से तीन की मौत हो गई. ज्वाला जिसका पूर्व नाम ‘सियाया’ था, उसे सितंबर 2022 में नामीबिया से लाया गया था. 1947 में छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में भारत के आखिरी चीते के शिकार के बाद देश में ज्वाला के चार चीता शावक पहली दफा भारत के जंगल में पैदा हुए थे. नामीबियाई चीतों में से एक साशा की 27 मार्च को किडनी से संबंधित बीमारी के कारण मृत्यु हो गई, जबकि दक्षिण अफ्रीका के एक अन्य चीते, उदय की 13 अप्रैल को मृत्यु हो गई. वहीं, दक्षिण अफ्रीका से लाई गई मादा चीता दक्षा की 9 मई को एक नर चीते के साथ हिंसक झड़प में चोट लगने से मृत्यु हो गई थी.
पिछले साल 17 सितंबर को एक भव्य कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में 5 मादा और 3 नर सहित आठ नामीबियाई चीतों को केएनपी के बाड़ों में छोड़ा गया था. इसके बाद इस साल फरवरी में दक्षिण अफ्रीका से 12 और चीते केएनपी पहुंचे थे. नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाए गए तथा केएनपी में हुए चार शावकों समेत कुल 24 चीतों में से राष्ट्रीय उद्यान में चीतों की संख्या अब घटकर 17 रह गई है. धरती पर सबसे तेज दौड़ने वाले इस वन्यजीव को 1952 में भारत में विलुप्त घोषित कर दिया गया था.
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कूनो नेशनल पार्क में एक और चीते की मौत, 4 महीने में 8 की गई जान