डीएनए हिंदी: रूस 11 अगस्त को मून मिशन शुरू करने और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर रोवर उतारने वाला पहला देश बनने की दौड़ में शामिल होने की योजना बना रहा है. चंद्रमा के साउथ पोल पर पानी का एक संभावित स्रोत पाए जाने की उम्मीद लंबे समय से वैज्ञानिकों को है. जो वहां भविष्य में मानव के रहने के लिए जरूरी है. इस दिशा में खोज के लिए भारत अपने चंद्रयान-3 (chandrayaan-3) के साथ आगे बढ़ चुका है, जिसे 14 जुलाई को लॉन्च किया गया था. हमारे खास शो डीएनए में सौरभ जैन से जानिए कि चंद्रमा पर उतरने की लगी रेस में कौन आगे है?
रूस करीब 47 वर्ष बाद चांद पर जा रहा है. रूस ने अपने इस मिशन मून को लूना-25 (Luna-25) नाम दिया है. रूस की अंतरिक्ष एजेंसी Roscosmos के मुताबिक, luna-25 की लॉन्चिंग रूस के वोस्तोचन कोस्मोड्रोम से होगी, जो मास्को से 5,550 किलोमीटर की दूरी पर है. रूस अपने इस मिशन में सोयूज-2.1बी/फ्रिगेट (Soyuz-2.1b-Fregat) रॉकेट का इस्तेमाल कर रहा है. जो चंद्रयान - 3 से कई गुना ताकतवर है. अब आपके मन में ये सवाल आ रहा होगा कि, भारत ने तो चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को ही लांच कर दिया था तो फिर रूस का luna-25 कैसे भारत के से पहले ही चांद पर लैंड कर जाएगा.
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चंद्रयान-3 से पहले कैसे लूना-25 चांद पर लैंड करेगा?
रूस की स्पेस एजेंसी Roscosmos के पास शक्तिशाली रॉकेट है. ये रॉकेट इतने ताकतवर हैं कि वो सीधे luna-25 को सीधे चंद्रमा की कक्षा में पहुंचा सकते हैं. इसका मतलब ये हुआ कि luna-25 को पृथ्वी के चक्कर लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. Luna-25 अपने शक्तिशाली रॉकेट और इंजन की वजह से 5 दिन में ही चांद की कक्षा में पहुंच जाएगा. इसके बाद ये 5 से 7 दिन तक चांद के चारों तरफ चक्कर लगाएगा. उसके बाद चांद पर लैंड करेगा. भारत का चंद्रयान-3 23 अगस्त को चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा लेकिन रूस का Luna-25 भी इसी तारीख के आसपास चांद के साउथ पोल के करीब लैंड करेगा. ऐसा नहीं है कि ISRO सीधे अपने यान को चंद्रमा तक नहीं भेज सकता. लेकिन NASA की तुलना में ISRO के प्रोजेक्ट किफायती होते हैं. ISRO के पास NASA की तरह बड़े और ताकतवर रॉकेट नहीं हैं. जो चंद्रयान को सीधे चंद्रमा की कक्षा में पहुंचा सकें. ऐसे रॉकेट बनाने के लिए हजारों करोड़ रुपए लगेंगे. इसलिए हमारा चंद्रयान-3 धीरे-धीरे अपने मिशन की तरफ बढ़ रहा है.
कैसे चांद की ओर बढ़ रहा है चंद्रयान-3?
चंद्रयान-3 पृथ्वी के चक्कर लगाता हुआ आगे बढ़ा है. चंद्रयान-3 ने पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का भी इस्तेमाल किया है. लॉन्च होने के बाद चंद्रयान-3 ने सबसे पहले पृथ्वी के छोटे चक्कर लगाए, फिर हर चक्कर के साथ इसकी दूरी बढ़ी है. पांचवें चक्कर मेंप्रोपल्शन मॉड्यूल की मदद से चंद्रयान-3, चंद्रमा की कक्षा में पहुंचा है. यहां फिर से वो चंद्रमा के चक्कर लगा रहा है. अब ये चक्कर बड़े से छोटे हो रहे है. यहां से चंद्रयान-3 लैंडर अपने अगले कदम यानी चंद्रमा की सतह पर लैंडिंग की तरफ बढ़ रहा है. रूस के पास शक्तिशाली रॉकेट होने से उसे चांद पर पहुंचने में कम समय लगेगा लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि भारत का चंद्रयान-3 किसी भी मामले में कम है. चंद्रयान-2 की असफलता के बाद भारत एक-एक कदम बहुत संभलकर रख रहा है. पूरा भारत अब 23 अगस्त का इंतजार कर रहा है, जब चंद्रयान-3 चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग कर इतिहास रचेगा.
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भारत के लिए ये है अच्छी खबर
ISRO ने आज दूसरी बार चंद्रयान-3 की ऑर्बिट घटाई है. जो भारत के लिए अच्छी खबर है यानि हम सफलता की तरफ एक कदम और आगे बढ़ गए है.
चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव हमेशा से ही विशेष रुचि का विषय रहा है.ये ऐसी जगह है, जहां कुछ हिस्सों में हमेशा छाया रहती है, जबकि कुछ में अंधेरा रहता है.छाया वाले इलाके को लेकर कहा जाता है कि यहां पर बर्फ हो सकती है. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA का दावा है कि अरबों सालों से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के कुछ गड्ढों पर सूरज की रोशनी नहीं पहुंची है.
रूस का luna-25 और भारत का चंद्रयान-3 चांद की सतह पर उतरकर क्या करेंगे?
चंद्रयान-3 चंद्रमा की सतह पर सिर्फ दो हफ्ते काम करेगा. जबकि लूना-25, साल भर काम करेगा. रूस का luna-25 चंद्रमा की सतह पर ऑक्सीजन की खोज करेगा. इसके साथ ही luna-25, चंद्रमा की आंतरिक संरचना पर भी रिसर्च करेगा. लूना में एक खास यंत्र लगा है, जो सतह की 6 इंच खुदाई करके, पत्थर और मिट्टी का सैंपल जमा करेगा. ताकि जमे हुए पानी की खोज की जा सके. भारत का चंद्रयान-3 चांद की सतह की तस्वीरें भेजेगा, वहां के वातावरण, खनिज, मिट्टी से जुड़ी तमाम जानकारियों को जुटाएगा. इसका एक लक्ष्य चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग करना भी है. भारत का चंद्रयान-3 और रूस का Luna-25, चंद्रमा के साउथ पोल पर उतरने की कोशिश करेंगे. अंदाजा है कि दोनों की लैंडिंग भी एक ही दिन होगी. जो भी पहले उतरने में कामयाब होगा, वो देश चंद्रमा के साउथ पोल पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा. चंद्रमा का साउथ पोल, इस लिहाज से अहम है क्योंकि यहां बड़ी मात्रा में पानी होने की संभावना है. इस पानी से भविष्य में ऑक्सीजन भी बनाई जा सकती है. इसलिए चंद्रमा पर इंसानों की बस्ती के लिए दक्षिणी ध्रुव यानि साउथ पोल बेहद अहम है.
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चन्द्रमा के हाईवे पर बढ़ने वाला है ट्रैफिक
चंद्रमा पर कदम रखने को लेकर जिस तरह से अलग-अलग देशों में होड़ लगी है. उसे देखकर अब ये लगने लगा है कि धरती से चंद्रमा के पर ट्रैफिक बढ़ने वाला है. 23 अगस्त को भारत का चंद्रयान-3 चांद की सतह पर उतरेगा. लगभग इसी समय पर रूस का लूना-25 भी चंद्रमा की सतह को छूएगा. कुछ घंटे बाद यानि 26 अगस्त को जापान का mission Slim चंद्रमा के लिए अपनी उड़ान भरेगा. ऐसा करीब 50 वर्षों बाद होगा, जब तीन अलग-अलग देश चांद की सतह पर दस्तक देंगे. ये सिर्फ एक शुरूआत है. वर्ष 2023 में ही 2 और वर्ष 2025 तक 5 नए चंद्रमा मिशन लॉन्च होंगे. इसके अलावा कम से कम दो manned mission होंगे, यानि इस मिशन में चांद पर इंसान भी कदम रखेगा और ये दो manned mission अमेरिका और चीन लॉन्च करेंगे. वर्ष 1969 से 1972 तक सिर्फ 3 सालों में 12 इंसान चंद्रमा की सतह तक पहुंचे थे. आपको बता दें कि चंद्रमा पर इंसान ने आखिरी बार कदम वर्ष 1972 में रखा था. पिछले 50 वर्षों से किसी भी देश ने चंद्रमा पर manned mission लॉन्च नहीं किया है.
आपको जानकर हैरानी होगी कि 1960 के दशक में 55 चंद्रमा मिशन लॉन्च किए गए थे. जबकि 1980 के दशक में किसी भी देश ने चंद्रमा मिशन लॉन्च नहीं किया था. रूस का आखिरी चंद्रमा मिशन Luna-24, 1976 में लॉन्च हुआ था. करीब सैंतालिस वर्ष बाद अब रूस अपने मिशन को फिर से लांच कर रहा है. ये आंकड़े इस बात का सबूत है कि करीब 50 वर्ष बाद चंद्रमा की दौड़ फिर से तेज़ हो गई है. हालाकि उस समय और आज के चंद्र मिशन का लक्ष्य एकदम अलग है.
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