मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) की रिलायंस इंडस्ट्रीज (Reliance Industries) को बड़ा झटका लगा है. केंद्र सरकार ने रिलायंस कंपनी को 2.81 बिलियन डॉलर यानी 24,522 करोड़ रुपये का डिमांड नोटिस भेजा है. रिलायंस इंडस्ट्रीज को यह नोटिस मिनिस्ट्री ऑफ पेट्रोलियम एंड नेचुरल गैस की तरफ भेजा गया है. बताया जा रहा है कि यह ओनजीसी ब्लॉक (KG-D6) से जुड़ा मामला है.
रिलायंस इंडस्ट्रीज पर आरोप है कि उनसे ONGC ब्लॉक से गैस का माइग्रेशन किया था. यह मामला इंटरनेशनल कोर्ट तक पहुंचा था. साल 2018 में इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल ने रिलायंस लेड कंसोर्टियम के पक्ष में 1.55 बिलियन डॉलर यानी 13,528 करोड़ रुपये का फैसला सुनाया था.
हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने पलटा था फैसला
इस फैसले को भारत सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. मई 2023 में हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने मामले में सुनवाई करते हुए रिलायंस इंडस्ट्रीज के ही पक्ष में फैसला सुनाया. जिसके बाद सरकार की तरफ से दोबारा हाईकोर्ट की डिविजन बेंच के सामने चुनौती दी गई. डिवीजन बेंच ने इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल के फैसले को पलट दिया. जिसमें रिलायंस और बीपी को नजदीकी ब्लॉक से निकाली गई गैस के लिए किसी भी हर्जाने की देनदारी नहीं बताई गई थी.
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रिलायंस के पास कितनी थी हिस्सेदारी
रिलायंस ने शेयर बाजार को भेजी सूचना में इस मांग नोटिस की जानकारी दी. कंपनी ने कहा कि डिवीजन बेंच के फैसले के बाद पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड, बीपी एक्सप्लोरेशन (अल्फा) लिमिटेड और निको (एनईसीओ) लिमिटेड से 2.81 अरब डॉलर की मांग की है. मूल रूप से रिलायंस के पास कृष्णा गोदावरी बेसिन गहरे समुद्र वाले ब्लॉक में 60 प्रतिशत हिस्सेदारी थी, जबकि बीपी के पास 30 प्रतिशत और कनाडाई कंपनी निको के पास शेष 10 प्रतिशत हिस्सेदारी थी.
इसके बाद रिलायंस और BP ने उत्पादन साझाकरण अनुबंध (PCC) में निको की हिस्सेदारी ले ली और अब उनकी हिस्सेदारी बढ़कर क्रमशः 66.66 प्रतिशत और 33.33 प्रतिशत हो चुकी है. सरकार ने 2016 में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी ओएनजीसी के आसपास के क्षेत्रों से केजी-डी6 ब्लॉक में स्थानांतरित हुई गैस की मात्रा के लिए रिलायंस और उसके भागीदारों से 1.55 अरब डॉलर की मांग की थी.
इस दावे का रिलायंस इंडस्ट्रीज ने विरोध किया था और जुलाई, 2018 में मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने भी कहा कि वह मुआवजे का भुगतान करने के लिए बाध्य नहीं है. इस फैसले के खिलाफ दायर सरकार की अपील को दिल्ली उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने मई, 2023 में खारिज करते हुए मध्यस्थता निर्णय को बरकरार रखा था. हालांकि, पिछले महीने हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने रिलायंस और उसके भागीदारों के खिलाफ फैसला सुनाते हुए एकल न्यायाधीश के आदेश को खारिज कर दिया था. इसके बाद सरकार ने फ्रेश डिमांड नोटिसे भेजा था.
(With PTI inputs)
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Mukesh Ambani Reliance Industries
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