लोकसभा चुनावों में अब कुछ दिन ही बाकी है, ऐसे में सभी दल चुनावी मैदान में पूरी से तरह से लगे हुए हैं. एक तरफ मोदी सरकार तीसरी बार सत्ता में आने की तैयारी कर रही है और वहीं, दूसरी तरफ गठबंधन दल भी जीत की रणनीति बना रहे हैं. कई राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियां भी अपने उम्मीदवारों के साथ चुनावी रण में मेहनत करती नजर आ रही हैं. BJP इस चुनाव में लगातार अबकी बार 400 के पार का नारा लगा रही है और पीएम मोदी ने 370 सीट पर जीत का दावा कर दिया है. बीजेपी अबकी बार 400 के पार के नारे के साथ कैंपेन कर रही है. पीएम मोदी से लेकर केंद्रीय मंत्री तक चुनावी रैलियों को संबोधित कर रहे हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि 2024 लोकसभा चुनाव में 400 के पार का नारा लगाने वाली बीजेपी ने 2 सीटों से लेकर यहां तक का सफर कैसे तय किया है. इस पार्टी के शून्य से शिखर तक पहुंचने की उसकी यात्रा लंबे संघर्ष और उतार-चढ़ाव से भरी रही है.
आप इस किस्से से वाकिफ होंगे कि 1980 से पहले बीजेपी भारतीय जनसंघ के नाम से जानी जाती थी, जिसकी स्थापना वर्ष 1951 में हुई थी. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, प्रोफेसर बलराज मधोक और दीनदयाल उपाध्याय ने इसकी स्थापना की. इस पार्टी का चुनाव चिह्न दीपक था. इसने 1952 के संसदीय चुनाव में 3 सीटें प्राप्त की थी, जिसमें मुखर्जी ने भी जीत दर्ज की थी. जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल लागू किया तो जनसंघ समेत कई सियासी दलों ने 1977 के चुनावों से पहले एक दल जनता पार्टी का गठन किया था. हालांकि बाद में जनता पार्टी जनसंघ के आए नेताओं के दोहरे सदस्यता और विश्वास के मुद्दे पर टूट गई. इस बीच भारतीय जनसंघ के एक गुट ने अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया.
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कैसे हुआ बीजेपी का उदय
6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की स्थापना हुई थी. जो आज दुनिया की सबसे ताकतवर और प्रभावशाली सियासी पार्टी बन चुकी है. इस पार्टी का किस्सा करीब 45 साल पहले शुरु हुआ था. देशभर के प्रमुख जनसंघ नेताओं की बैठक हुई, और नई भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई थी. चुनाव चिह्न कमल घोषित किया गया. बीजेपी की पहली बैठक मुंबई में हुई, जहां सर्वसम्मति से जनसंघ के तीन बार अध्यक्ष रहे अटल बिहारी वाजपेई को राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित किया गया. 1980 में बीजेपी के गठन के बाद पार्टी ने पहला आम चुनाव 1984 में लड़ा. तब बीजेपी को केवल दो सीटों पर ही कामयाबी मिली थी.
ऐसे बढ़ा बीजेपी का सफर
1989 के लोकसभा चुनाव में बोफोर्स घोटाला, पंजाब में बढ़ता आतंकवाद, LTTE और श्री लंका सरकार के बीच बढ़ते तनाव के बीच राजीव गांधी की छवि को झटका लगा. राजीव सरकार की कैबिनेट में रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह ही उनके सबसे बड़े आलोचक बन गए. अब तक बीजेपी की स्थिति भी मजबूत हो गई थी. इस चुनाव में बीजेपी 89 सीट पर पहुंच चुकी थी और जनता दल को भी 143 सीटों पर जीत मिली थी. इस चुनाव में कांग्रेस के ख़िलाफ़ सारी राजनीतिक पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा था. 1996 में हुए 11वीं लोकसभा चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई. पहली बार प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेई की सरकार मात्र 13 दिन में गिर गई.
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NDA का गठन
मई 1998 में बीजेपी की अगुवाई एनडीए यानी नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस का गठन हुआ. अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने मिलकर इसको बनाया था. इस गठबंधन को 294 सीटों पर जीत मिली. इसमें बीजेपी को 182 सीटें हासिल हुई थीं. एक बार फिर से अटल बिहारी वाजपेयी प्रधामंत्री बने और इस बार उन्होंने पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा किया. ये पहली बार था, जब गैर-कांग्रेसी गठबंधन सरकार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.
2014 में बीजेपी ने की दमदार वापसी
2014 के आम चुनाव से पहले बीजेपी की गोवा में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई, जिसमें नरेंद्र मोदी को चुनाव अभियान का प्रमुख बनाया गया. बीजेपी ने इन चुनावों में 282 सीटों के साथ सत्ता में धमाकेदार वापसी की. गुजरात के सीएम रहे मोदी ने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा और प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे. यहां से बीजेपी की दमदार वापसी हुई, जिसे मोदी-शाह युग के नाम से जाना जाता है. इस कार्यकाल बीजेपी मोदी सरकार ने कई बड़े फैसले लिये. 2014 में एनडीए के बैनर तले बीजेपी के साथ-साथ 28 पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा. बीजेपी ने 282 तो एनडीए ने कुल 336 सीटें जीतीं. हालांकि, एनडीए की सिर्फ पार्टियां ही सीट जीतने में कामयाब रही थीं. लोकसभा चुनाव 2019 में मोदी लहर का असर हर राज्य में दिखा. मध्य प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा जैसी राज्यों में पूरी की पूरी सीटें जीती. इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब बीजेपी ने 300 सीटों का आंकड़ा पार किया है. जबकि एनडीए ने 350 से ज्यादा सीटें जीतीं.
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