समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश की बदायूं लोकसभा सीट को लेकर काफी कंफ्यूज थी. अब आपको लग रहा होगा कि ऐसा क्यों तो इसका जवाब ये है कि सपा ने इस सीट पर दो बार अपने उम्मीदवार बदले हैं. पहले सपा ने धर्मेंद्र यादव को चुनावी मैदान में उतारा था लेकिन उसके बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल यादव को लोकसभा चुनाव का टिकट पकड़ा दिया. कुछ दिन बाद ही फिर से इस सीट पर उम्मीदवार को बदल दिया गया. अब सपा ने शिवपाल के बेटे आदित्य को टिकट थमा दिया. इस सीट पर बीजेपी ने दुर्विजय सिंह शाक्य और बसपा ने पूर्व विधायक मुस्लिम खां को प्रत्याशी बनाया है. इस मुकाबले में कौन भारी पड़ेगा, ये तो 4 जून के नतीजों में ही पता चल पाएगा.
अखिलेश यादव ने इस सीट पर दो बार टिकट बदला है तो उन्होंने कुछ समझकर ही ऐसा फैसला किया होगा. उनका यह फैसला कितना उनके पक्ष में जाता है, ये तो आने वाला वक़्त बताएगा. वहीं, बीजेपी की बात करें तो इस सीट पर भाजपा ने सांसद डा.संघमित्रा मौर्य का टिकट काटकर दुर्विजय सिंह शाक्य को पार्टी ने मैदान में उतारा है. वह बदायूं के रहने वाले हैं. वह 1994 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने और 1995 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़कर जुड़ गए, इसी समय से वह राजनीतिक और सामाजिक जीवन में सक्रिय हैं. जिसके बाद वह बीजेपी से जुड़ गए और 2007 में भाजपा युवा मोर्चा के क्षेत्रीय अध्यक्ष बने. यहीं से उनका सफर आगे बढ़ता चला गया.
ये भी पढ़ें: Darbhanga Hot Seat: सिद्दीकी की जगह मैदान में ललित यादव, मिथिला के इस मजबूत किले पर कौन लहराएगा अपना परचम?
बसपा ने मुस्लिम खां पर जताया भरोसा
मुस्लिम खां पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. साल 2007 में पहली बार मुस्लिम का बसपा की टिकट से विधानसभा चुनाव मैदान में उतरे और विधायक बने. उन्होंने 2012 में शेखुपुर विधानसभा से पीस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन वह बहुत बुरी तरीके से चुनाव हारे और उनकी जमानत भी जब्त हो गई. इससे पहले वह समाजवादी पार्टी का हिस्सा रह चुके हैं. मुस्लिम खां को टिकट मिलने के बाद सपा की मुश्किल बढ़ती नजर आ रही हैं. इसके पीछे की वजह है कि मुस्लिम खां की मुस्लिम वोटों पर अच्छी पकड़ है, ऐसे में सपा के वोट में बंटवारा हो सकता है.
ये भी पढ़ें: Weather Update: चिलचिलाती धूप से नहीं मिलने वाली राहत, इन राज्यों में पड़ेगी लू की मार
समझिए इस सीट का सियासी समीकरण
1952 में कांग्रेस के बदन सिंह ने जीत दर्ज की थी. 1957 में कांग्रेस के रघुबीर सहाय, साल 1962 में भारतीय जनसंघ, 1967 में ओंकार सिंह, 1971 में कांग्रेस के करण सिंह यादव को जीत मिली थी. 1977 में जनता पार्टी के ओंकार सिंह ने जीत हासिल की लेकिन 1980 में कांग्रेस को जीत मिली. 1984 में कांग्रेस के सलीम इकबाल शेरवानी ने जीत दर्ज की.लेकिन साल 1989 में जनता दल के शरद यादव सांसद चुने गए. साल 1991 में बीजेपी से स्वामी चिन्मयानंद सांसद बने. 1996 में हुए चुनाव में समाजवादी पार्टी के सलीम इकबाल शेरवानी ने जीत हासिल की. इसके बाद साल 2004 तक लगातार 4 बार सलीम शेरवानी सांसद चुने गए. 2009 आम चुनाव में समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव को उम्मीदवार बनाया गया और उन्होंने जीत दर्ज की. साल 2014 के चुनाव में भी धर्मेंद्र यादव इस सीट से जीत दर्जकर दोबारा संसद पहुंचे.
बदायूं लोकसभा सीट को समाजवादी पार्टी के गढ़ के रुप में देखा जाता रहा है हालांकि इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने 2019 सेंध लगाई और यहां पर जीत दर्ज की. 2019 में बीजेपी ने स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य को मैदान में उतारा था. जबकि समाजवादी पार्टी ने मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेंद्र यादव को उम्मीदवार बनाया था. कांग्रेस ने 5 बार के सांसद सलीम इकबाल शेरवानी को टिकट दिया था. संघमित्रा मौर्य ने 18454 वोटों से जीत हासिल की थी.
कितनी है वोटरों की संख्या
इस सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या करीब 14 लाख है. 4 लाख यादव वोटर्स और मुस्लिम वोटर्स की संख्या 3.5 लाख है. वैश्य और ब्राह्मण समुदाय के मतदाताओं की संख्या 2.5 लाख है. दलित वोटर्स की संख्या पौने दो लाख हैं.
डीएनए हिंदी का मोबाइल एप्लिकेशन Google Play Store से डाउनलोड करें.
देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगल, फ़ेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर.
- Log in to post comments
बदायूं में सपा की नैया पार लगा पाएंगे शिवपाल के बेटे? जानिए बीजेपी का हाल