डीएनए हिंदी: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक 12 वर्षीय मूक - बधिर दुष्कर्म पीड़िता द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई की. जिसमें हाईकोर्ट ने कहा कि यौन शोषण की शिकार महिला को उस बच्चे को जन्म देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. अदालत ने कहा कि अगर ऐसा किया जाता है तो यह ऐसा दुख होगा, जिसे शब्दों में बयां नहीं किया.
न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की पीठ 12 वर्षीय मूक - बधिर दुष्कर्म पीड़िता के मामले में आदेश पारित किया. दरअसल, दुष्कर्म पीड़िता द्वारा दायर रिट याचिका में किशोरी ने 25 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति मांगी थी. पीड़िता के वकील ने अदालत में दलील दी कि लड़की की पड़ोसी ने उसका कई बार यौन शोषण किया लेकिन बोलने और सुनने में असमर्थ होने की वजह से वह किसी को नहीं बता पा रही.
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सांकेतिक भाषा में पीड़िता ने मां को बताई थी आपबीती
वकील ने बताया कि लड़की ने अपनी मां द्वारा पूछे जाने पर सांकेतिक भाषा में इस मामले का खुलासा किया था. लड़की ने बताया कि उसके साथ कई बार दुष्कर्म किया गया जिसके बाद पीड़िता की मां ने यौन अपराधों से बाल संरक्षण (पॉक्सो) कानून के तहत दुष्कर्म और अपराधों के लिए आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई. 16 जून, 2023 को यह चिकित्सा परीक्षण में पाया गया कि लड़की 23 सप्ताह की गर्भवती है. जिसके बाद इस मामले को मेडिकल बोर्ड के सामने रखा गया तो बोर्ड ने कहा कि गर्भधारण 24 सप्ताह से ज्यादा का है. गर्भपात कराने से पहले अदालत की अनुमति लेना आवश्यक है. इसके बाद पीड़िता ने यह याचिका दायर की.
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अदालत ने दिए ऐसे निर्देश
इस मामले में आपात स्थिति पर विचार करते हुए और मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए अदालत ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति से अलीगढ़ स्थित जवाहरलाल मेडिकल कॉलेज को प्रसूति विभाग, एनेस्थीसिया विभाग और रेडियो डायग्नोसिस विभाग की अध्यक्षता में एक पांच सदस्यीय टीम गठित कर 11 जुलाई को याचिकाकर्ता की जांच करने और 12 जुलाई को अदालत के समक्ष अपनी रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया.
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यौन शोषण मामलों में महिला गर्भपात की हकदार, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले पर की टिप्पणी