Cyber Crime News: भारत में लगातार साइबर अपराध की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं और अब इस कड़ी में बैंक अधिकारी भी अपराधियों के सहयोगी बनते दिखाई दे रहे हैं. साइबर सिटि से मशहूर गुरुग्राम में साइबर अपराध से जुड़े मामलों में अब तक 21 बैंक अधिकारियों की गिरफ्तारी हो चुकी है. जिनमें सरकारी और प्राइवेट बैंकों के अधिकारी शामिल हैं. इन अधिकारियों पर फर्जी खातों के जरिये करोड़ों रुपये की धोखाधड़ी करने का आरोप है. पुलिस के मुताबिक, इन मामलों में अब तक ₹300 करोड़ से भी ज्यादा की धोखाधड़ी की जा चुकी है.
पूर्व सैनिक से ₹1.2 करोड़ की ठगी
गुरुग्राम पुलिस ने शुक्रवार को एक पूर्व सैनिक से ₹1.2 करोड़ की ठगी के मामले में दो व्यक्तियों को गिरफ्तार किया. जिनमें से एक उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में स्थित सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक का डिप्टी मैनेजर भी शामिल था. आरोपी विश्वास कुमार ने नोएडा सेक्टर 45 में सितंबर 2023 में एक फर्जी कंपनी के नाम से चालू खाता खोला था. पुलिस के अनुसार, इस खाते का इस्तेमाल साइबर अपराधियों ने देशभर में ₹7 करोड़ की धोखाधड़ी करने के लिए किया.
कमीशन लेकर खोले गए 7 फर्जी बैंक खाते
साइबर अपराधियों के नेटवर्क का हिस्सा बने बैंक अधिकारियों की गिरफ्तारी का सिलसिला यहां नहीं थमा. अगले ही दिन, जयपुर स्थित एक और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के डिप्टी मैनेजर राम अवतार को गिरफ्तार किया गया. राम अवतार ने साइबर अपराधियों के लिए 7 फर्जी बैंक खाते खोले और सभी खाते के लिए ₹7,000 का कमीशन लिया. पुलिस ने बताया कि इनमें से एक खाते का इस्तेमाल गुरुग्राम के एक निवासी से ₹24.6 लाख की धोखाधड़ी के लिए किया गया था.
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बैंक अधिकारी बने साइबर अपराधियों के सहयोगी
गुरुग्राम साइबर क्राइम विभाग के डिप्टी कमिश्नर सिद्धांत जैन ने बताया, गिरफ्तार किए गए बैंक अधिकारियों को इसकी जानकारी थी कि जिन खातों को वे खोल रहे हैं, उनका इस्तेमाल धोखाधड़ी के लिए किया जाएगा. अधिकारियों ने जाली दस्तावेजों के आधार पर चालू खाते खोले, जो बाद में साइबर अपराधियों को सौंप दिए गए. इन अधिकारियों को खाते खुलाने के बाद उन्हें कमीशन के रूप में पैसे भी मिलते थे.जैन ने बताया कि ज्यदातर खाते साइबर अपराधियों की योजना के तहत खोले गए थे.
RBI से सुधार की मांग
गुरुग्राम पुलिस ने भारतीय रिजर्व बैंक समेत कई प्रमुख बैंकों को खाता खोलने की प्रक्रिया में सुधार करने के लिए पत्र भेजे हैं. लेटर के मुताबिक बैंकों द्वारा खुलने वाले खातों से जुड़े मोबाइल नंबर को कम से कम तीन महीने तक नहीं बदला जाए, क्योंकि अपराधी खाता खुलते ही मोबाइल नंबर बदल देते हैं. इससे जांच प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है और पीड़ितों के पैसे वापस मिलने में दिक्कतें आती हैं. जैन के अनुसार, अधिकांश बैंक साइबर अपराधियों द्वारा संचालित खातों को फ्रीज करने में सहयोग करते हैं, लेकिन कुछ बैंक समय पर जानकारी साझा नहीं करते, जिससे अपराधियों को फायदा हो जाता है. साइबर अपराध के बढ़ते मामलों को देखते हुए इस दिशा में ठोस कदम उठाने की मांग की जा रही है.
चुनौती बनती जा रही है अधिकारियों की मिलीभगत
भारत में साइबर अपराध का बढ़ता जाल समाज और अर्थव्यवस्था के लिए एक गंभीर चुनौती बनता जा रहा है. बैंक अधिकारी ही अगर खुद इन अपराधों में शामिल हो रहे हैं, जो कि एक चिंताजनक बात है. पुलिस और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को इस समस्या से निपटने के लिए सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि लोगों का विश्वास वित्तीय संस्थाओं में बहाल हो सके.
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Cyber Crime: क्या साइबर अपराधियों को मिल रहा बैंक कर्मचारियों का साथ? पुलिस के हत्थे चढ़े 21 अधिकारी