डीएनए हिंदीः WHO ने एक ऐसी रिपोर्ट पेश की है जिसके मुताबिक दुनिया के आधे से ज्यादा लोग कम से कम कसरत में भी यकीन नहीं रखते और वो कुछ ना करने की वजह से बीमार होते जा रहे हैं. ज्यादातर लोग लाइफस्टाइल जनित बीमारियों के शिकार हैं.
2020 से 2030 के बीच में यानी केवल 10 सालों में 50 करोड़ नए बीमार हो चुके होंगे और ये लोग इसलिए बीमारों की संख्या में शुमार हो जाएंगे क्योंकि वो कुछ नहीं करते यानी वो आलसी हैं या उनकी फिजिकल एक्टिविटी कुछ नहीं है. इन लोगों के इलाज में 2700 करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च हो रहा होगा. ये 50 करोड़ लोग जो फ्यूचर में बीमार होंगे इनमें से आधे लोग दो बीमारियों की चपेट में आकर बाकी बीमारियों के शिकार होंगे. WHO के अनुमान के मुताबिक इन 50 करोड़ में से 47% को हाईपरटेंशन यानी हाई बीपी हो जाएगा, और 43% को डिप्रेशन हो चुका होगा.
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अमीर देशों में स्वास्थ्य पर खर्च होने वाला कुल खर्च में से 70% लाइफस्टाइल वाली बीमारियों के इलाज में खर्च होगा. 174 देशों पर तैयार की गई ये पहली ग्लोबल रिपोर्ट है जो दुनिया के आलसी होने का पता दे रही है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे कई देश अपने लोगों के लिए ऐसे नियम ही नहीं ला सके जो उन्हें फिट रहने के लिए प्रेरित करते.
केवल 42% देशों में पैदल चलने और साइकिल चलाने वालों के लिए पॉलिसी और प्रावधान हैं. वहीं, 26% देश ही ड्रंकन ड्राइविंग पर लगाम लगाने की कड़ी पॉलिसी ला सके हैं और केवल 26% देशों मे ही स्पीड लिमिट के नियम सख्ती से लागू करने की व्यवस्था है.
क्या है न्यूनतम एक्टिविटी जो हर किसी को करनी चाहिए.
WHO के मुताबिक - जो लोग हफ्ते में 150 मिनट की साधारण एक्सरसाइज भी नहीं करते या हफ्ते में 75 मिनट तक जमकर कसरत नहीं करते, उन्हें आलसी माना जाता है.अगर लोग इतना भी करने लगें तो वो समय से पहले कुछ ना करने की वजह से मरने के खतरे को 20 से 30% तक टाल सकते हैं. दिल की बीमारी और डिप्रेशन के केस 7 -8% तक कम हो सकते हैं. डायबिटीज़ के मरीजों की संख्या में ग्लोबल स्तर पर 5% की कमी आ सकती है.
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जानें, संपन्नता का आलसीपन से रिश्ता
दुनिया में अमीर देशों में 36% लोग आलसी हैं, जबकि गरीब देशों में 16% लोग ऐसे हैं जिनकी शारीरिक कसरत ना के बराबर है.
लोग इतने आलसी क्यों हैं – सड़कें भी हैं वजहें
174 में से लगभग आधे देशों में पैदल चलने और साइकिल चलाने के हिसाब से रोड डिजाइन ही नहीं है. केवल 73 देश ऐसे हैं जो छोटे सफर के लिए पैदल चलने और साइकलिंग को बढ़ावा देते हैं और उसके हिसाब से सड़कें तैयार करते हैं.ज्यादातर देश मोटर व्हीकल्स के हिसाब से सड़कें बनाने में लगे हैं.
क्यों नहीं पैदल चल पाते लोग
स्पीड लिमिट भी लोगों को पैदल चलने से रोक रही है.रिपोर्ट के मुताबिक अगर कोई गाड़ी 50 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार की जगह 65 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से चल रही है तो पैदल व्यक्ति के एक्सीडेंट होने का खतरा 4 गुना बढ़ जाता है. सड़क हादसों में होने वाली कुल मौतों में से 35% के पीछे शराब भी एक बड़ी वजह देखी गई है. इसी तरह मोबाइल का इस्तेमाल करने से एक्सीडेंट होने का खतरा चार गुना बढ़ जाता है अगर आप मैसेज टाइप कर रहे हैं तो ये खतरा 23% तक बढ़ जाता है. मोबाइल इस्तेमाल करने से ड्राइवर का रिएक्शन टाइम 50% तक कम हो जाता है. WHO की सलाह है कि गाड़ियों की स्पीड लिमिट 50 किमी/घंटा होनी चाहिए.
अभी क्या हैं हालात - कहां खड़ा है अनफिट देशों की लिस्ट में भारत
दुनिया भर में होने वाली कुल मौतों में से 74% लाइफस्टाइल वाली बीमारियों से होती हैं. भारत में 66% लोग लाइफस्टाइल वाली बीमारियों के शिकार होकर मारे जा रहे हैं. दुनिया की तीन चौथाई मौतों की वजह लाइफस्टाइल वाली बीमारियां हैं. हर 2 सेकेंड में एक व्यक्ति लाइफ स्टाइल वाली बीमारी से मारा जा रहा है.
70 वर्ष से कम उम्र के 1 करोड़ 70 लाख लोग हर साल नॉन कम्युनिकेबल यानी लाइफस्टाइल वाली बीमारियों से मारे जा रहे हैं यानी हर 2 सेकेंड में एक मौत खराब लाइफस्टाइल से हो रही है. 1 करोड़ 70 लाख मौतों में से 86% लोग मिडिल इंकम देशों के हैं जो इन बीमारियों के शिकार हो रहे हैं.भारत उन देशों में शामिल है.
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लाइफस्टाइल वाली चार बीमारियों
दिल की बीमारी, सांस की बीमारी, कैंसर और डायबिटीज की वजह से 2011 से 2030 यानी 20 वर्षों में दुनिया को 30 लाख करोड़ का नुकसान होने का अनुमान लगाया गया है. WHO के मुताबिक अगर गरीब देश हर वर्ष इन बीमारियों को रोकने के लिए 1 हज़ार 800 करोड़ खर्च कर ले, तो कम मौतें होंगी और कई करोड़ का आर्थिक नुकसान भी बचाया जा सकेगा.
भारत के आंकड़े बेहद खराब
भारत में होने वाली कुल मौतों में से 66% की वजह लाइफ-स्टाइल से होने वाली बीमारियां हैं. भारत में हर साल 60 लाख 46 हज़ार 960 लोग खराब लाइफ स्टाइल से गंभीर बीमारियों के शिकार होकर मारे जा रहे हैं. भारत में इस तरह जान गंवाने वाले 54% लोगों की उम्र 70 वर्ष से कम है. भारत में हर वर्ष 28% लोग दिल की बीमारी से मारे जा रहे हैं. 12% लोग सांस की बीमारियों से, 10% लोग कैेंसर से, 4% लोग डायबिटीज़ से और बाकी 12% दूसरी लाइफस्टाइल वाली बीमारियों से मारे जा रहे हैं.
इसलिए बीमार पड रहे भारत में लोग
भारत में लोग इन बीमारियों के शिकार क्यों हो रहे हैं, भारत में 15 वर्ष से उपर का एक व्यक्ति औसतन 5.6 लीटर शराब हर साल पी जाता है.औसतन पुरुष 9 लीटर, और महिलाएं 2 लीटर शराब पी जाती हैं. 15 वर्ष से उपर के 28% लोग तंबाकू के शिकार हैं.
आलसीपन (Physical Inactivity)
भारत में 18 वर्ष से ऊपर के 34% लोग आलसी हैं और फिजीकल इनएक्टिविटी के शिकार हैं.इससे भी बड़ी बात ये है कि 11 से 17 साल के 74% बच्चे आलसी हैं और जरुरी फिजीकल एक्टिविटी से कोसों दूर हैं. हर वर्ष दुनिया के 8 लाख 30 हज़ार लोग इसलिए मारे जाते हैं क्योंकि वो आलसी हैं और कुछ नहीं करते. लाइफस्टाइल से होने वाली कुल मौतों में से 2 फीसदी लोग इसलिए मारे जा रहे हैं क्योंकि वो आलसी हैं. भारत में 31% लोगों को हाई ब्लड प्रेशर है.WHO की रिपोर्ट के मुताबिक आधे लोगों को ये नहीं पता है कि उन्हें हाईबीपी हो चुका है.
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दुनिया भर में किस कारण से होती हैं कितनी मौतें
- हर तीन में से एक मौत की वजह दिल की बीमारी बनती है.यानि 1 करोड़ 70 लाख लोग हर साल इस बीमारी से मर रहे हैं. दिल की बीमारी के शिकार दो तिहाई लोग गरीब देशों में रहते हैं.
- हाईबीपी के शिकार आधे लोगों को पता ही नहीं है कि उन्हें हाई ब्लड प्रेशर है. दुनिया में 30 से 79 वर्ष के 130 करोड़ लोग हाई ब्लड प्रेशर के शिकार हैं.और आधे इस बात से अंजान हैं.
- हर 6 में से 1 मौत की वजह कैंसर है.दुनिया भर में 90 लाख से ज्यादा लोग कैंसर से मारे जा रहे हैं. इनमें से 44% जानें बचाई जा सकती हैं.
- दुनिया भर में होने वाली 13 मौतों में से 1 सांस की बीमारियों से हो रही हैं.दुनिया भर में 40 लाख लोग केवल सांस की बीमारी होने की वजह से मर रहे हैं. भारत जैसे कई देशों में इन बीमारियों से होने वाली मौतों के बढ़ने की बड़ी वजह वायु प्रदूषण है.इनमें से 70% लोग बचाए जा सकते हैं अगर देश केवल पर्यावरण पर काम कर लें तो .
- हर 28 में से एक व्यक्ति की जान डायबिटीज़ ले रही है.
- 80 लाख लोगों की जान तंबाकू ले रहा है.इनमें से 10 लाख लोग पैसिव स्मोकिंग से मारे जा रहे हैं.यानी ये 10 लाख लोग किसी दूसरे की सिगरेट के धुंए के शिकार होकर मारे जा रहे हैं.
- 80 लाख लोग हर साल खराब खाने, कम खाने या ज्यादा खाने की वजह से मारे जा रहे हैं.
हम चाहें तो लंच ब्रेक में वॉक कर सकते हैं. सीढिया ले सकते हैं. लेकिन वॉक करते वक्त अगर आप आराम से बात कर पा रहे हैं तो आप बहुत धीरे हैं.. अगर बात नहीं कर पा रहे तो ये बहुत तेज है. कसरत नहीं करते तो मोटोपा और हाई बीपी आता है जबकि कसरत करते हैं तो हार्ट डीजीज का खतरा 25% कम हो जाता है. (वॉकिंग, स्विमिंग और साइकिल हार्ट की एक्सरसाइज हैं. जबकि जिम में वेट लिफ्ट और हेवी मशीन वाली कसरत बॉडी बिल्डिंग हैं. ये करने से पहले अपनी फिटनेस चेक करवानी चाहिए.)
डॉ अशोक सेठ
चेयरमैन, फोर्टस एस्कॉर्ट्स अस्पताल नोएडा
उम्र के हिसाब से कसरत करें लेकिन 85 साल के इंसान के भी अपने कमरे में चलना जरुरी है. और बच्चों को भी. ताजा खाएं, तनाव ना लें और थोड़ी कसरत करें . सुरु में शरीर कंडीशन नहीं होता लेकिन फिर आदत हो जाती है.
डॉ पीयूष जैन
प्रिवेंटिव हेल्थ एक्सपर्ट
रोज एक घंटा करती हैं कसरत. पहले नहीं कर रही थी लेकिन बीमारी लग गई. अब बेहतर फील करती हैं.
मंजू शर्मा, वॉक्स पॉप - केस स्टडी
कसरत करके अच्छा लगता है
-पुष्पा
कसरत करते हैं रिटायर होने के बाद. जैसे भगवान मुसीबत में याद आते हैं, ऐसे ही बीमार होने पर फिटनेस याद आती है.
-सुरेश
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