डीएनए हिंदीः स्ट्रोक जानलेवा है और अगर जान बच भी गई तो लकवा मार देने का अंदेशा बहुत होता है. स्ट्रोक कई बार साइलेंट भी होता है और इसके संकेतों पर नजर रखकर ही जान बचाई जा सकती है.
स्ट्रोक दो प्रकार का होता है. हेमोरेजिक स्ट्रोक और इस्केमिक स्ट्रोक. इस्केमिक स्ट्रोक तब होता है जब मस्तिष्क के हिस्से में ब्लड सर्कुलेशन अचानक से रूक जाता है या बेहद कम हो जाता है. इससे मस्तिष्क के ऊतकों को ऑक्सीजन और पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं. इससे दिमाग की कोशिकाएं कुछ ही मिनट में मरने लगती हैं. वहीं हेमोरेजिक स्ट्रोक को रक्तस्रावी स्ट्रोक भी कहा जाता है. मस्तिष्क में मौजूद किसी रक्त वाहिका के फटने या उसमें लीकेज होने की वजह से मस्तिष्क में खून रिसने की वजह से हेमोरेजिक स्ट्रोक होता है.
साइलेंट स्ट्रोक क्या है
साइलेंट स्ट्रोक आमतौर पर इस्केमिक होता है, जब थ्रोम्बस, थक्का मस्तिष्क की छोटी वाहिकाओं को अवरुद्ध कर देता है जिससे मस्तिष्क के छोटे क्षेत्र में क्षति होती है. साइलेंट स्ट्रोक एक बिना लक्षणों वाली घटना है जिसका आमतौर पर केवल न्यूरो-इमेजिंग तकनीकों द्वारा पता लगाया जाता है. साइलेंट स्ट्रोक के कारण सोचने-समझने की क्षमता कम हो सकती है. ओवर्ट स्ट्रोक की तुलना में साइलेंट स्ट्रोक अधिक सामान्य है.
साइलेंट स्ट्रोक के जोखिम कारक और कारण
- उम्र बढ़ना और हाई ब्लड प्रेशर इसके सबसे आम जोखिम कारक हैं
- टीआईए या माइनर स्ट्रोक का पिछला इतिहास
- दिल की अनियमित धड़कन
- लार्ज आर्टरी एथेरोस्क्लेरोसिस
- पेरिऑपरेटिव
- कोरोनरी हार्ट डिजीज
- डायबिटीज
- स्मोकिंग, डिस्लिपिडेमिया
- सेक्स, हार्ट फेलियर, क्रोनिक किडनी डिजीज
साइलेंट स्ट्रोक के लक्षण
- हल्की भूलने की बीमारी
- व्यवहार में बदलाव
- चलने पर संतुलन की कमी
- सोचने-समझे की क्षमता प्रभावित होना
- हल्की असमंजस की स्थिति
- चक्कर आना
- मूत्राशय पर कंट्रोल नहीं रहना
इस बात का रखें ध्यान
साइलेंट स्ट्रोक भविष्य में स्ट्रोक के बढ़ते जोखिम से जुड़ा है, जो सामान्य जनसंख्या की तुलना में दो गुना अधिक है. साइलेंट स्ट्रोक भी जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है. साइलेंट स्ट्रोक की शुरुआती पहचान और उपचार से हम प्रत्यक्ष स्ट्रोक के जोखिम को कम कर सकते हैं और संज्ञानात्मक गिरावट को रोक सकते हैं और जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं.
Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें.)
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