डीएनए हिंदीः कोरोना महामारी के बाद से यह महसूस हुआ कि सरकार को स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाना चाहिए लेकिन देश में जीडीपी के अनुपात में स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च बढ़ने के बजाय कम हो गया है. नेशनल हेल्थ अकाउंट के ताजा आंकड़ों से कई बातें साफ होती हो रही हैं. हाल ही में सरकार ने साल 2019 के लिए National Health Account की रिपोर्ट जारी की है इस रिपोर्ट के अनुसार साल दर साल सरकार द्वारा GDP के मुकाबले स्वास्थय पर खर्च में कमी आई है.
करीब डेढ़ दशक से बढ़ता चला आ रहा यह खर्च 2018-19 में घटकर 1.2 फीसदी पर आ गया है. इससे ठीक पहले यानी 2017-18 में यह 1.3 फीसदी दर्ज किया गया था. यह बात नेशनल हेल्थ अकाउंट के ताजा आंकड़ों से सामने आई है. जबकि सरकार का स्वास्थय पर खर्च बढ़ा है और लोगों के जेब पर भार कम हुआ है. साल 2014-15 में OOPE (Out of Pocket Expenditure) 62.6 प्रतिशत था जो कि ताजा आकंड़ो में कम होकर 48.2 प्रतिशत रह गया है.
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बढ़ती जीडीपी, घटता स्वास्थय खर्च
देश की जीडीपी में बढ़ोतरी हो रही है लेकिन उसके मुकाबले स्वास्थय पर सरकार का खर्च बढ़ने की बजाए कम होता जा रहा है, साल 2004.05 में नेशनल हेल्थ अकाउंट की रिपोर्ट में देश की जीडीपी का 4.2 प्रतिशत खर्च होता है लेकिन साल दर साल ये कम होता रहा है. नेशनल हेल्थ अकाउंट की ताजा जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2019 में सरकार का कुल हेल्थ पर खर्चा उनके जीडीपी का 3.2 प्रतिशत ही रह गया है.
OOPE (Out of Pocket Expense) अब कम होकर 48.2 %
स्वास्थय पर सरकार का खर्च जीडीपी के अनुपात में तो गिरा है लेकिन पिछले कुछ सालों से केन्द्र और राज्य सरकारों के प्रयासों के कारण स्वास्थय पर सरकार का खर्च बढ़ा है. वहीं लोगों द्वारा किए जाने वाले खर्च (Out of Pocket Expenditure) में कमी आई है.
साल 2004-05 में कुल स्वास्थय खर्च (The Health Expenditure) में से सरकार का खर्च 22.5 प्रतिशत था और लोगों को अपने जेब से 69.4 प्रतिशत खर्च करना पड़ता था. साल दर साल इसमें सुधार हुआ है.ताजा रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में कुल स्वास्थय खर्च का 40.6 प्रतिशत सरकार वहन कर रही है.वहीं लोगों की जेब से खर्च अब 48.2 प्रतिशत रह गया है.
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बीमारी में कर्नाटक में जेब पर सबसे कम भार, उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा
वहीं राज्यवार आंकड़ो को तुलना करने पर पता चलता है कि देश के कई राज्यों में OOPE (Out of Pocket Expense) राष्ट्रीय औसत से काफी कम है. देश में स्वास्थय पर खर्च के मामले में सबसे कम भार कर्नाटक के नागरिक को उठाना पड़ता है. कर्नाटक का OOPE 33.3 प्रतिशत है. वहीं उत्तराखंड (35.5%),असम(36.7%),छत्तीसगढ(38.3), गुजरात (40.7%), तमिलनाडू(44.3%), राजस्थान (44.9%),जम्मू कश्मीर(44.9%), हिमाचल प्रदेश (45.8), हरियाणा (47.2%) और तेलंगाना (48%) उन राज्यों में शामिल है जहां बीमार होने पर लोगों की जेब से खर्चा राष्ट्रीय औसत से कम होता है.
वहीं राष्ट्रीय औसत से ज्यादा बोझ वहन करने वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश (71.3%) सूची में सबसे खराब प्रदर्शन कर रहा है. इसके अलावा पश्चिम बंगाल(68.7%),केरल (68.6%),पंजाब (65.5%),झारखंड(63.9%), आंध्र प्रदेश (63.2%),मध्य प्रदेश (55.7%),बिहार (53.5%),उड़ीसा (53.2%)और महाराष्ट्र (48.4%)शामिल हैं.
उत्तराखंड और बिहार का सबसे ज्यादा सुधार
देश के नागरिकों के जेब पर स्वास्थय खर्चों का औसतन भार में साल 2017 के मुकाबले साल 2019 में 10.5 प्रतिशत की कमी हुई है. मगर बहुत से ऐसे राज्य है जिन्होने इस दौरान राष्ट्रीय औसत से बेहतर प्रदर्शन किया है. पिछले दो सालों में सबसे बेहतर सुधार करने वाले राज्यों में उत्तराखंड (26.6%)और बिहार में (24.1%) शामिल हैं.
वहीं तमिलनाडू(17.8%), छत्तीसगढ़(17.6 %), कर्नाटक (15.9 %), उड़ीसा (15.7 %), जम्मू और कश्मीर (13.6 %),मध्य प्रदेश (13.2%), राजस्थान (11.8%) और पंजाब (11.8 %) शामिल हैं. वहीं केरल एक मात्र ऐसा राज्य रहा जहां पर लोगों का स्वास्थय पर खर्च (OOPE) बढ़ा है. इसके अलावा हरियाणा(9.4%), आंध्र प्रदेश (9%), महाराष्ट्र (8.3 %), गुजरात (7.4%), पश्चिम बंगाल (5.4 %), उत्तर प्रदेश (3.5 %), झारखंड (2.1 %) और हिमाचल प्रदेश उन राज्यों में शामिल जहां सबसे कम सुधार देखने को मिला है.
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स्वास्थ्य सेवाओं पर घटा सरकारी खर्च, यूपी वालों की जेब पर सबसे ज्यादा भार- NHC Report