डीएनए हिंदी: संजय मिश्रा ने अपनी बेहतरीन अदाकारी से दर्शकों के बीच एक खास पहचान बनाई है. उनकी एक ऐसी जगह बन चुकी है जिसे वो खुद ही भर सकते हैं. चाहें कॉमेडी करें या कुछ संजीदा उनका अंदाज़ इस कदर असल होता है कि आप उसके आगे कुछ और नहीं सोच सकते. कड़वी हवा, आंखों देखी, मसान जैसी गंभीर फिल्में हों या गोलमाल, ऑल द बेस्ट, वेलकम जैसी कॉमेडी, संजय मिश्रा ने हर किरदार में खुद को बेस्ट साबित किया है.
आज जो हिर किसी के पसंदीदा बन गए हैं वो एक वक्त पर अच्छा खासा काम करने के बावजूद गुमनामी के अंधेरे में खोने की कगार पर आ गए थे. संजय मिश्रा ने अपने एक इंटरव्यू में मुश्किल समय की कड़वी यादें साझा की थीं. उन्होंने बताया कि वे बेहद बीमार हो गए थे. उनके पिता जी भी चल बसे थे. वे इतने निराश और हताश हो गए थे कि फिल्मों की दुनिया से दूर ऋशिकेष चले गए.
यहां संजय एक ढाबे में ऑमलेट बनाने का काम करने लगे. इतना ही नहीं उन्हें 150 की सैलरी पर कप धोने का काम करने को भी कहा गया था. उन्होंने बताया कि ढाबे पर आने वाले कई लोग उन्हें पहचान लेते थे क्योंकि वो 'गोलमाल' जैसी हिट फिल्म कर चुके थे. संजय ने इन हालातों में भी कभी कोई शिकायत नहीं की लेकिन जल्द ही किस्मत ने फिर बाज़ी पलटी. डायरेक्टर रोहित शेट्टी ने उन्हें कॉल किया और 'ऑल द बेस्ट' ऑफर की. इस फिल्म के बाद सब बेस्ट हो गया और एक बार फिर वो वहीं पहुंच गए जहां उन्हें होना चाहिए था और जहां होना वो डिज़र्व करते थे.
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