डीएनए हिंदी: कुछ कालाकर ऐसे होते हैं जो अपनी सादगी से ही लोगों का दिल जीत लेते हैं. ऐसा ही एक चेहरा हैं अनिल धवन. अनिल धवन का मासूम चेहरा आज भी उनके फैन्स के दिलों में कैद है. ये एक ऐसे कलाकार हैं जिन्हें शुरुआत से खुद पर भरोसा था. कहा जाता है कि अनिल सोचते थे कि जब जीतेंद्र हीरो बन सकता है तो मैं क्यों नहीं. मैं ऊंचे कद वाला और खूबसूरत भी हूं. अनिल का यही कॉन्फिडेंस उन्हें सिल्वर स्क्रीन तक ले आया और उन्हें रातों-रात स्टार बना दिया.
एक्टिंग स्कूल तक पहुंचने का रास्त एक अखबार के ज़रिए निकला. एक दिन अनिल ने अखबार में देखा कि FTII पुणे डिप्लोमा के एडमिशन फॉर्म निकले हैं. अनिल का परिवार जो इसके खिलाफ था उसे कानोकान खबर न थी और वह जाकर फॉर्म भर आए. जब एडमिशन हो गया तो अनिल ने घर में बताया लेकिन पिता जी नहीं माने. इस पर अनिल घर छोड़कर पुणे आ गए. यहां वह शत्रुघ्न सिन्हा और जया भादुड़ी के क्लासमेट बने. शत्रुघ्न सिन्हा की वजह से ही अनिल को उनकी पहली फिल्म मिली थी.
दरअसल कोर्स खत्म होने से पहले ही शत्रुघ्न स्टार बन चुके थे. अब हुआ यूं कि 1970 में आई फिल्म चेतना के लिए शत्रुघ्न को साइन किया गया था. बीआर इशारा यानी फिल्म के डायरेक्टर से मुलाकात करने के बाद उन्होंने अनिल को उनसे मिलने की सलाह दी. जब अनिल वहां पहुंचे तो इशारा बहुत इंप्रेस हुए. उन्होंने कहा मुझे ऐसे ही चेहरे की ज़रूरत थी. फिर क्या था फिल्म अनिल को मिली. काम शुरू हुआ और रिलीज़ हुई तो अनिल धवन स्टार बन गए. वह कहते हैं कि इस फिल्म के बाद उन्हें कभी भी काम मांगने नहीं जाना पड़ा.
70 के दशक में उन्होंने खूब काम किया और उन्हें काफी प्यार भी मिला लेकिन 80 का दशक आते-आते एक्शन फिल्मों की शुरुआत होने लगी और अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना ने इस कदर फिल्में की और ऐसी आंधी मचा दी कि सरल अभियन वाले कलाकार पीछे छूटते गए. इस दौर में अनिल हीरो से साइड हीरो की लिस्ट में आने शुरू हो गए और 90 के दशक में वो कैरेक्टर रोल में आ गए. जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने ऐक्शन फिल्में क्यों नहीं की तब उन्होंने कहा— वहां मेरी ज़रूरत ही नहीं. शत्रुघ्न सिन्हा, अमिताभ बच्चन, विनोद मेहरा और नवीन इनकी बात ही कुछ और है.
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