मनमोहन देसाई की फिल्मों का रिकॉर्ड देखकर ऐसा लगता था जैसे दर्शकों की पसंद का हर पहलू उन्हें मालूम चल गया है. वह अपनी कल्पना की उड़ान से दर्शकों की भावनाओं को ऐसे छू जाते थे कि फिल्में सफलता का रिकॉर्ड बनाती जाती थीं. वह एकमात्र ऐसे फिल्ममेकर भी रहे जिनकी एक समय में एक साथ चार फिल्में थियेटर में चल रही थीं. ये बात अलग है कि आज उन फिल्मों को याद करने या दोबारा देखने पर कई सीन ऐसे लगते हैं जैसे उनका ना तो कोई लॉजिक है और ना ही कोई जरूरत फिर भी वो सीन देखकर कभी दर्शक खूब हंसे और कभी खूब रोए भी.
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सन् 1998 में आई मनमोहन देसाई की ही फिल्म 'मर्द' में राजा आजाद सिंह का रोल निभाने वाले दारा सिंह अपने घोड़े पर बैठकर ब्रिटिश प्लेन का पीछा करते हैं और एक हाथ से रस्सी प्लेन की तरफ फेंककर प्लेन को रस्सी से बांध लेते हैं और प्लेन रोकने में कामयाब भी हो जाते हैं. मतलब प्लेन ना हुआ कोई पेड़ हो गया, जो अपनी जगह से हीला ही नहीं.
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सन् 1988 में आई फिल्म गंगा जमुना सरस्वती फिल्म में गंगा का रोल निभाने वाले अमिताभ बच्चन अपने दुश्मन ठाकुर हंसराज यानी अमरीश पुरी को बताते हैं कि कैसे उन्होंने उसके सारे दांत तोड़ने की कसम खाई थी. इसके बाद एक ही मुक्का मारकर वो उसके सारे दांत तोड़ भी देते हैं.
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फिल्म 'धरमवीर' में राजा सतपाल सिंह की भूमिका निभाने वाले जीवन को कोई ज्योतिषी बताता है कि उसका बड़ा भांजा ही उसकी मौत का कारण बनेगा. इस भविष्यवाणी को सच मानकर वो अपनी बहन के साथ ही रहने लगता है और जब वो मां बनने वाली होती है, तो उसके होने वाले बच्चे को मारने का पूरा इंतजाम कर लेता है. राजा सतपाल सिंह की बहन एक बेटे को जन्म देती है. इसके जन्म के तुरंत बाद ही राजा उस बच्चे को खिड़की से बाहर फेंक देता है. नवजात बच्चे को कोई इतनी बेरहमी से फेंक दे, तो ना जाने क्या होता होगा. लेकिन फिल्म में उस बच्चे को कुछ नहीं होता और इतना ही नहीं, उसकी जान बचाने के लिए भी एक बाज आता है. बाज अपनी चोंच में बच्चे को उठाकर ले जाता है और एक निःसंतान दंपत्ति को दे देता है. अब ये तो वही बात हुई मानो या ना मानो.
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'अमर अकबर एंथॉनी' बेहद सफल फिल्म थी. फिल्म में अमर, अकबर, एंथॉनी का किरदार निभाने वाले ऋषि कपूर, अमिताभ बच्चन और विनोद खन्ना का वो खून देने वाला सीन तो आपको याद ही होगा. जब तीनों एक साथ एक्सीडेंट में घायल एक महिला को खून देने आते हैं. इस सीन में ना तो तीनों को ये मालूम है कि वो सगे भाई हैं. ना ही तीनों को ये मालूम है कि जिसे वो खून दे रहे हैं वो उन तीनों की ही मां है. सबसे बड़ी बात ये कि इस सीन में तीनों का खून एक ही नली से उनकी मां निरुपा रॉय को चढ़ते हुए दिखाया गया है. भला ऐसा भी हो सकता है क्या... खुद सोचिए..।
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अमर अकबर एंथॉनी का ही वो सीन याद होगा आपको जब गुंडों से बचते हुए निरुपा रॉय साईं बाबा के मंदिर पहुंचती हैं. वहां ऋषि कपूर पहले से मौजूद हैं और साईं बाबा का भजन गा रहे हैं. इसी दौरान एक पत्थर से निरुपा रॉय टकराती हैं. उनके माथे से खून निकलता है, वो सिर उठाकर बस एक बार आंखें भरकर साईं बाबा की मूर्ति की तरफ देखती हैं और उनकी आंखों की रोशनी वापस आ जाती है. ऐसा सच में कहीं हो सकता है क्या...और ये बताइए कि क्या सोचकर आपने इस सीन पर यकीन कर लिया था...