भारत में वेश्यावृत्ति सबसे पुराने व्यवसायों में से एक है फिर भी भारत में इसे लेकर अलग नजरिया रहा है. भारतीय सिनेमा में समय समय पर सेक्स वर्कर्स से जुड़ी फिल्में दिखाई जाती रही हैं. फिर चाहे वो कुछ समय पहले रिलीज हुई फिल्म गंगूबाई काठियावाढ़ी (Gangubai Kathiawadi) हो, मंडी हो चमेली हो या चांदनी बार (Chandni Bar). इन फिल्मों से सेक्स वर्कर्स (Sex Workers) की जिंदगी और चुनौतियों को बड़े पर्दे पर दिखाने की पूरी कोशिश की जाती रही है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी वेश्यावृत्ति को पेशा (Sex Work Legal) मान लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने (Supreme Court on Prostitution) साफ शब्दों में कहा कि पुलिस इसमें दखलंदाजी नहीं कर सकती और न ही सहमति से यह काम करने वाले सेक्स वर्करों के खिलाफ कोई कार्रवाई कर सकती है.
तो चलिए जानते हैं सेक्स वर्कर्स की जिंदगी पर बनी फिल्मों के बारे में :
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जानें वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला...इस लाइन को सुनते ही जहन में गुरुदत्त की फिल्म 'प्यासा' का नाम आता है. साल 1957 में आई ये फिल्म एक अकेले और बेरोजगार युवा कवि की कहानी है. जो अंत में गुलाबो नाम की वेश्या के साथ जीना पसंद करता है. कहा जाता है कि इस फिल्म के लिए गुरु दत्त असली कोठे पर गए थे. फ़िल्म में माला सिन्हा, वहीदा रहमान और जॉनी वॉकर जैसे कलाकार भी थे. इसके लेखक अब्रार अल्वी (Abrar Alvi) थे. इस फ़िल्म ने उस दौर में बॉक्स ऑफ़िस पर 29 रुपये की कमाई की थी, जो आज के 200 करोड़ रुपये से अधिक का कलेक्शन है.
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1981 में डायरेक्टर मुज़फ्फर अली की फिल्म ‘उमराव जान’ आई लखनऊ की तवायफ़ संस्कृति का बखान करती है. ये फिल्म अमीरन नाम की एक लड़की की कहानी है जो वेश्यावृति के लिए बेच दी गई थी. यही बच्ची आगे चलकर उमराव जान बनती है.
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साल 1983 में आई श्याम बेनेगल की फिल्म मंडी में समाज के एक तबके की हकीकत को बखूबी बयां किया गया है. इस फिल्म में शबाना आज़मी , नसीरुद्दीन शाह और स्मिता पाटिल हैं . इस फिल्म में सेक्स वर्कर्स के पेशे और उनके जीवन को दिखाया गया है.
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तब्बू स्टारर इस मशहूर फ़िल्म को फ़ेमस डायरेक्टर मधुर भंडारकर ने डायरेक्ट किया था. बेहद कम बजट में बनी इस फ़िल्म में 4 नेशनल अवार्ड अपने नाम किए थे. इसमें एक बार डांसर की कहानी दिखाई गई है, जिसका क़िरदार तब्बू ने निभाया है. इसमें दिखाया गया है कि वो कैसे विपरीत परिस्थितियों में अपने बच्चे की परवरिश करती है.
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फिल्म चमेली साल 2004 में रिलीज हुई थी. करीना कपूर और राहुल बोस की फिल्म चमेली की कहानी में वेश्यावृत्ति को दर्शाया गया है. मूवी का प्लॉट एक इन्वेस्टमेंट बैंकर और एक वेश्या के इर्द-गिर्द घूमता है. वो कैसे उस वेश्या की मदद करता है और कैसे दोनों की दोस्ती हो जाती है.
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बेगम जान राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक श्रीजीत मुखर्जी की बांग्ला फिल्म राजकहिनी का हिंदी रीमेक है. ये आजादी के दौर की ऐसी कहानी है जिसमें वेश्यावृत्ति को दिखाया गया है. फिल्म बताती है कि यह रेडक्लिफ रेखा बेगम जान के कोठे के बीच से गुजरती है. फिल्म में दिखाया गया कि अधिकारी किसी तरह बेगम जान से उसकी ये चारदीवारी छीन लेना चाहते हैं पर बेगम जान और उसके लिए काम करने वाली लड़कियों को ये मंजूर नहीं.
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मुंबई के रेडलाइट एरिया कमाठीपुरा की रहने वाली गंगूबाई के किरदार के जरिए महिला सशक्तिकरण की पुरजोर वकालत की गई है. इसमें वेश्यावृत्ति कानून की जरूरतों पर भी जोर दिया गया है. इसमें दिखाया गया है कि एक लड़की को जब धोखे से कोठे पर बेच दिया जाता है, तो वो वहां अपनी किस्मत पर रोने की बजाए, कुछ नया और बड़ा करने की सोचती है.लड़कियों और औरतों की दुर्दशा दूर करने की कोशिश करती है. आंदोलन करती है. वहां पैदा होने वाले वेश्याओं के बच्चों की शिक्षा के लिए काम करती है. वेश्यावृत्ति कानून के लिए देश के प्रधानमंत्री तक से मिलती है.
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देव-डी साल 2009 में रिलीज हुई रोमांटिक कॉमेडी ड्रामा है, जिसका निर्देशन अनुराग कश्यप ने किया है. फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे सेक्स वर्कर चंदा यानी कल्कि केकलां दिन में एक छात्रा के रूप में जीती है जबकि रात के अंधेरे में वेश्या बन जाती है.