इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी यानी आईआईटी भारत के बेस्ट इंजीनियरिंग और टेक्नोल़जी इंस्टीट्यूट का एक समूह है. आईआईटी का गठन सरकार ने 1947 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र होने के बाद इंस्टीट्यूट्स ऑफ टेक्नोलॉजीज एक्ट 1961 के तहत किया था जिससे देश के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए एक बेहतर वर्कफोर्स तैयार किया जा सके. आईआईटी ने भारत ही नहीं बल्कि दुनिया को कई सफल सीईओ , उद्यमी और स्टार्टअप फाउंडर्स दिए हैं जिनमें गूगल और अल्फाबेट इंक के सीईओ सुंदर पिचाई और आईटी कंपनी इंफोसिस टेक्नोलॉजीज के संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति शामिल हैं.
यह भी पढ़ें- कभी थे मैकेनिकल इंजीनियर अब राष्ट्रपति भवन में पिला रहे असम चाय, यूं रहा जॉब से बिजनेस तक का अनोखा सफर
पंडित नेहरू ने उठाया था आईआईटी की स्थापना का बीड़ा
देश में अबतक 23 आईआईटी स्थापित किए जा चुके हैं लेकिन आईआईटी खड़गपुर भारत का पहला आईआईटी इंस्टीट्यूट है जिसका उद्घाटन 18 अगस्त 1951 को पश्चिम बंगाल में हुआ था. भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आईआईटी की स्थापना का बीड़ा उठाया. उन्होंने एक ऐसे सिस्टम की कल्पना की थी जो भारत के कुछ सबसे प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को तैयार करेगी जो नए स्वतंत्र राष्ट्र के निर्माण में मदद करेंगे और हमें आत्मनिर्भर बनाएंगे.
यह भी पढ़ें- बचपन से पढ़ाई में रहीं अव्वल, 23 की उम्र में क्रैक की UPSC, जानें IFS तमाली साहा की प्रेरणादायक कहानी
देश की आजादी से पहले दी इस उद्योगपति ने देखा था आईआईटी का सपना
हालांकि पंडित नेहरू की दूरदर्शिता और विज्ञान के प्रति प्रेम ने आईआईटी की स्थापना में मदद की लेकिन आईआईटी का सपना देश की आजादी से पहले प्रख्यात प्रशासक और उद्योगपति अर्देशिर दलाल ने भी देखा और इसकी जरूरत को महसूस किया था. दलाल को साल 1944 में वायसराय लॉर्ड वेवेल ने कार्यकारी परिषद (ब्रिटिश भारत सरकार की कैबिनेट) में योजना और विकास के प्रभारी सदस्य के रूप में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था. भारत के स्वतंत्र होने से पहले दलाल ने अनुमान लगाया था कि देश का भविष्य टेक्नोलॉजी पर निर्भर करेगा और उन्होंने ऐसे टेक्निकल इंस्टीट्यूट की अवधारणा बनाई जो देश के भीतर कुशल टेक्निकल वर्कफोर्स को प्रशिक्षित कर सके.
यह भी पढ़ें- ब्लाइंड IIM स्टूडेंट को नहीं मिल रही जॉब, बयां किया दर्द- 'मुझे सहानुभूति-खोखले वादों की जरूरत नहीं...'
इन व्यक्तियों की मेहनत का परिणाम है आईआईटी
आईआईटी की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कुछ अन्य व्यक्तियों में जाने-माने शिक्षाविद् और राजनीतिज्ञ हुमायूं कबीर, पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बिधान चंद्र रॉय और वायसराय की कार्यकारी परिषद के सदस्य जोगेंद्र सिंह द्वारा गठित एक समिति थी जिसकी अध्यक्षता एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री नलिनी रंजन सरकार ने की थी. सरकार समिति ने मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) की तर्ज पर उत्तरी, दक्षिणी, पूर्वी और पश्चिमी भारत में कम से कम चार आईआईटी संस्थानों की स्थापना की सिफारिश की जिससे भारत में पहले आईआईटी के निर्माण का रास्ता खुला.
यह भी पढ़ें- भारत की सबसे पुरानी लाइब्रेरी कौन सी है? यहां मौजूद हैं ईस्ट इंडिया कंपनी की दुर्लभ किताबें
आईआईटी खड़गपुर की जमीन पर कभी स्वतंत्रता सेनानियों को रखा जाता था बंदी
आईआईटी खड़गपुर फिलहाल जिस जगह पर है उसे कभी हिजली डिटेंशन कैंप के नाम से जाना जाता था. यह वही जगह थी जहां कभी अंग्रेज देश की आजादी के दीवाने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को बंदी बनाकर रखते थे और कईयों को तो यहां फांसी की सजा भी दी गई थी. काफी शांत क्षेत्र होने की वजह से अंग्रेजों को अपने खिलाफ हो रहे विरोध को दबाने के लिए राजनीतिक कैदियों को यहां रखना काफी मुफीद था. इससे पहले आईआईटी खड़गपुर को कोलकाता के पूर्वी एस्प्लेनेड में स्थापित किया गया था और तब इसका नाम ईस्टर्न हायर टेक्निकल इंस्टीट्यूट था. आईआईटी खड़गपुर की स्थापना के बाद सबसे पहले 224 स्टूडेंट्स ने यहां एडमिशन लिया था.
अपनी राय और अपने इलाके की खबर देने के लिए जुड़ें हमारे गूगल, फेसबुक, x, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और वॉट्सऐप कम्युनिटी से.
- Log in to post comments

IIT Kharagpur History (Image: Wikimedia Commons)
कहानी देश की पहली IIT के बनने की, कभी इसी जगह अंग्रेज 'आजादी के दीवानों' को बनाकर रखते थे बंदी