कहते हैं कि हर सफल पुरुष के पीछे एक महिला का हाथ होता है लेकिन यहां मामला थोड़ा अलग है. ऐसा समय जब महिलाओं की शिक्षा पर बहुत ध्यान नहीं दिया जाता था, तब बंगाल की एक लड़की ने डॉक्यर बनने का एक असाधारण रास्ता चुना. साल 1862 में जब समाज में काफी रूढ़िवादिता फैली थी तब एक बंगाली परिवार में एक बच्ची का जन्म हुआ. उस दौर में महिलाओं के पढ़ाई करने के विचार को भी तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाता था. लेकिन कादम्बिनी की आंखों में इस समय एक अलग ही सपना पल रहा था.
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भारत की पहली ग्रेजुएट महिला भी हैं कादम्बिनी
उनकी यात्रा 1883 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से कला स्नातक की डिग्री प्राप्त करने वाली पहली महिला बनने के बाद शुरू हुई. एक साल बाद उन्होंने कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लिया. जहां कुछ लोगों ने उनकी प्रशंसा तो कइयों ने उनकी आलोचना की. मेडिकल कॉलेज की पढ़ाई शुरू होने से लगभग दो दिन पहले उनकी शादी द्वारकानाथ गांगुली से हुई थी. उनके पति सुधारवादी विचारधारा के समर्थक थे. कादम्बिनी ने समाज के गहरे दबाव के बीच अपनी शिक्षा जारी रखने का फैसला किया.
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पति ने हर कदम पर निभाया साथ
कादम्बिनी को मेडिकल कॉलेज में एडमिशन पाने के लिए भी काफी संघर्ष करना पड़ा क्योंकि उस समय महिलाओं को दाखिले की अनुमति नहीं थी. उस वक्त उनके पति ने उनका भरपूर साथ दिया और जरूरी अनुमति पाने के लिए लड़ाई लड़ी तब जाकर वह एंट्रेंस एग्जाम में बैठ पाईं. वह फर्स्ड डिवीजन पाने से सिर्फ एक नंबर से रह गईं लेकिन उनका जीवन काफी प्रेरणादायक है.
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जिंदगी नहीं थी आसान
एक छात्रा, एक डॉक्टर और आठ बच्चों की मां के रूप में उनका जीवन आसान नहीं था. रात में अपने मरीजों के चेकअप के लिए उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था. कई लोगों ने तो उन्हें बदनाम करने की भी कोशिश की और उन्हें काफी अपमानजनक बातें कहीं. लेकिन इससे डरे बिना कादम्बिनी और उनके पति ने उन लोगों के खिलाफ मानहानि का मुकदमा कर दिया. इस मामले में एक एडिटर को कोर्ट ने 6 महीने की सजा सुनाई.
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कादम्बिनी ने 1893 में स्कॉटलैंड के एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी से एलआरसीपी क्वालिफाइड ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की. उन्होंने प्रसूति एवं स्त्री रोग में विशेषज्ञता हासिल की और वापस लौटकर कलकत्ता के लेडी डफरिन अस्पताल को जॉइन किया. उन्होंने खुद तो अपने सपने पूरे ही किए साथ ही महिलाओं के अधिकारों की जमकर वकालत भी की और अपना जीवन दूसरों को सशक्त बनाने में बिताया. उनकी कहानी दृढ़ता, साहस और विश्वास की कहानी है जो यह समझाती है बदलाव की शुरुआत उन लोगों से होती है जो कुछ अलग करने का इरादा रखते हैं.
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बंगाल की वो लड़की जो बनीं भारत की पहली महिला डॉक्टर, हमसफर ने यूं दिया सफर में साथ