डीएनए हिंदी : कोलकाता के साहित्यिक समाज में आशुतोष जी की क्या जगह है, यह बात कोलकाता के देसुन अस्पताल में उनके चाहने वाले लोगों की पिछले छह दिनों की मौजूदगी से समझी जा सकती है. इन सभी सहित पूरे देश भर में उनके प्रशंसक उनकी सलामती के लिए पिछले छह दिन से लगातार प्रार्थना कर रहे थे.
पिछले बुधवार को गैस लीकेज के बाद हुई दुर्घटना में अपने बड़े बेटे गौरव को बचाने के लिए आशुतोष जी ने अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी. पूरा घर जब आग की लपटों में घिरा हुआ था, आशुतोष जी ने बेटे को बचाने की हरसंभव कोशिश की. इस क्रम में बेटे के साथ खुद भी बहुत बुरी तरह झुलस गए. बेटा पहले ही दिन जिंदगी की लड़ाई हार चुका था. हमें यकीन था कि 90 प्रतिशत जलने के बाद भी आशुतोष जी एक योद्धा की तरह जिंदगी की इस लड़ाई को जीत कर पुनः हम सबके बीच होंगे. पर यह हो न सका. आज सुबह 8:40 पर उन्होंने अंतिम सांस ली.
यात्राएं उन्हें थोड़ा सुकून देती थीं
कोलकाता और पूरे देश का हिंदी समाज आज उनके लिए गमगीन है. कुछ वर्ष पहले अपनी पत्नी को असमय खोकर वे जिस गहरी निराशा में डूबे थे, उससे निकलने की कोशिश वे लगातार कर रहे थे. इसमें उनके बेहद नजदीकी मित्र रविशंकर सिंह, डॉ योगेन्द्र, प्रियंकर पालीवाल, राज्यवर्धन, मृत्युंजय श्रीवास्तव और यतीश कुमार जैसे कई शख्स लगातार उन्हें हिम्मत दिला रहे थे. वे इस उदासी से बाहर निकलने के लिए लगातार यात्राओं पर रहते थे. यात्राएं उन्हें थोड़ा सुकून देती थीं.
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दुआएं काम न आ सकीं
कोरोना काल में कोरोना से भी लड़कर वे बाहर निकले थे. इस बार भी हम आशान्वित थे. अस्पताल में संभवतः बेटे गौरव के गुजर जाने की आशंका से उपजे असहनीय दुख को सहना उनके लिए मुश्किल हो रहा होगा. अंततः हम सब जिसकी कल्पना भी नहीं कर पा रहे थे वही हुआ. देश भर के उनके प्रशंसकों की दुआएं काम न आ सकीं.
अक्सर रहते थे सक्रिय
आशुतोष जी कोलकाता के विद्यासागर कॉलेज में हिंदी विषय के प्राध्यापक रहे हैं. पहले आलोचना एवं बाद में कविताएं भी लिखने लगे. अपने विद्यार्थियों एवं साहित्यप्रेमियों के बीच वे हमेशा काफी लोकप्रिय रहे हैं. साहित्य से जुड़ने के बाद मैं उन्हें 1998 से ही विभिन्न मंचों एवं आयोजनों में सक्रिय भूमिका में देखता रहा था. वामपंथी विचारधारा से जुड़े आशुतोष जी समय-समय पर विभिन्न सामाजिक आंदोलनों में भी सक्रिय रहे. हमेशा अपनी मृदुल हंसी के साथ अपनी उपस्थिति से महफिल गुलजार करने वाले आशुतोष जी को कभी किसी की बुराई करते मैंने नहीं सुना. उनके मित्रों की संख्या बहुत बड़ी रही है. दुश्मनी शायद ही किसी के साथ रही होगी.
नीलांबर से गहरा जुड़ाव
मेरी कविताओं पर अपने विचार हमेशा वे रखते रहे हैं. जहां कहीं सुधार की जरूरत होती वे हमेशा बताते रहते. धीरे-धीरे एक गहरी आत्मीयता उनके साथ बनती गई. वे ऐसे ही थे. अपने से उम्र में बहुत ही छोटे व्यक्तियों और विद्यार्थियों से भी मित्रवत व्यवहार करते थे. फेसबुक पर वे गंभीर टिप्पणियों के साथ हाल के वर्षों में अच्छी कविताएं भी लिख रहे थे. नीलांबर संस्था के साथ उनका गहरा जुड़ाव हमेशा से रहा है. उन्होंने हमेशा से हमें राह दिखाई है. उनके इस तरह जाने से एक गहरा सन्नाटा छा गया है. उनकी अनुपस्थिति हमें हमेशा खलेगी. हमारी स्मृतियों में वे हमेशा बने रहेंगे.
(कोलकाता के कवि आनंद गुप्ता की संस्मरणांजलि)
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स्मृति शेष आशुतोष : कोलकाता में लगी आग साहित्यजगत की आंखों में भर गई पानी