मुंशी प्रेमचंद का शुमार हिंदी कथा साहित्य के उन साहित्यकारों में है, जिनकी कहानियां हमें तमाम तरह की गफलत से निकालकर यथार्थ की और ले जाती हैं. बतौर कहानीकार ये प्रेमचंद की कलम का जादू ही था जिसके चलते उन्हें सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में ख्याति मिली है. आमजन उसमें से भी समाज के बिलकुल अंतिम पायदान पर खड़े शख्स की तकलीफों को जिस तरह मुंशी प्रेमचंद ने अपने शब्दों में बांधा. बतौर पाठक वो तमाम चीजें आज भी हमारे रौंगटे खड़े कर देती हैं.

मुंशी प्रेमचंद की जयंती के मौके पर हंस पत्रिका द्वारा 39वीं वार्षिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. ध्यान रहे हंस पत्रिका की शुरुआत मुंशी प्रेमचंद द्वारा ही की गई थी. जिक्र संगोष्ठी का हुआ है तो बताते चलें कि संगोष्ठी का विषय रहा, समाज से सियासत तक- कैसे टूटे जाति? इस विषय पर चर्चा के लिए प्रख्यात साहित्यकार और लेखक सुरेंद्र सिंह जोधका, मनोज झा, हिलाल अहमद, प्रियदर्शन, मीना कंडा सामी और बद्री नारायण शामिल हुए.

कार्यक्रम का संचालन प्रियदर्शन ने किया. चर्चा में राज्यसभा सदस्य मनोज झा ने इसपर बल दिया कि आज जाति के बारे में सार्वजनिक रूप से बात नहीं कर सकते. झा का मानना है कि जातिगत उत्पीड़न को देखे बगैर जाति की चर्चा संभव नहीं है. उन्होंने आंबेडकर के एनिहिलेशन ऑफ कास्ट को कोट करते हुए ये भी कहा कि इसी की तरह आगे आकर जाति कैसे टूटे इसके लिए नए प्रतिमान गढ़ने होंगे.

विषय पर अपनी राय रखते हुए लेखक एवं सीएसडीएस में शिक्षक हिलाल अहमद ने मुस्लिम समाज के अंदर व्याप्त जातिगत विचारों एवं भावों को व्यक्त किया. हिलाल ने धर्म के बदलाव खासतौर इस्लाम में धर्म के बदलाव की चर्चा की.

चेन्नई की लेखिका मीना कंडासामी ने अपनी बातों में महिला मुद्दों को केंद्र में रखा. उन्होंने बताया कि कैसे स्त्रियों को जाति व्यवस्था का सामना बड़े स्तर पर करना पड़ता है, जहां उन्हें मंदिरों में प्रवेश की आज़ादी नहीं है, ज्यादा बोलने की आज़ादी नहीं है, शिक्षा की आज़ादी नहीं है.

उन्होंने ये भी कहा कि हमारे देश में लिंग अनुपात में विभिन्नता दर्शाती है कि महिलाओं को इन सब समस्याओं का बड़े स्तर पर सामना करना पड़ता है. उच्च जाति की के लोग निम्न जाति पर अपना वर्चस्व स्थापित करते हैं तथा निम्न वर्ग पर अत्याचार को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं.

वहीं विषय पर अपना पक्ष रखते हुए बद्री नारायण ने कहा कि तमाम लोगों के लिए जाति एक भाव के साथ-साथ औजार भी है. इसलिए उससे मुक्ति की लड़ाई कोई करना नहीं चाहता. अपनी बातों में  हरि नामक जाति की चर्चा की जो कि ब्राह्मण के हाथ का छुआ हुआ पानी नहीं पीती.

कार्यक्रम का संचालन करने वाले लेखक और पत्रकार प्रियदर्शन ने कहा कि यदि हमें जातिगत रूढ़ियों एवं विचारधारा को तोड़ना है तो समाज में रोटी एवं बेटी का रिश्ता जोड़ना होगा. उन्होंने सामाजिक-आर्थिक भेदभावों को मिटाने के सन्दर्भ पर लोहिया, आंबेडकर और गांधी को भी उद्धृत किया.

प्रियदर्शन ने शिक्षा पर बल देते हुए कहा कि आंबेडकर कहते है कि पढ़ी-लिखो तभी जाति से बाहर निकल सकते हैं, वहीं कांशीराम कहते हैं कि सत्ता गुरुकिल्ली है जिसके द्वारा तुम्हें सम्मान शिक्षा, सबकी प्राप्ति होगी.

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Premchand Jayanti Samaroh organised by Hans Magazine academicians and authors put there thought on caste
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'जाति के बारे में सार्वजनिक रूप से नहीं कर सकते बात' प्रेमचंद जयंती पर मनोज झा
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प्रेमचंद जयंती समारोह पर अपने विचार रखते वक्ता
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प्रेमचंद जयंती समारोह पर अपने विचार रखते वक्ता 

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'जाति के बारे में सार्वजनिक रूप से नहीं कर सकते बात...' प्रेमचंद जयंती पर मनोज झा ने पूछे गंभीर सवाल 

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