डीएनए हिंदी : युवा कवियों में शैलजा पाठक बिल्कुल अलग से पहचानी जाती हैं. प्रेम में पगी उनकी कविताएं अपने पाठकों को अक्सर शहर से गांव की यात्रा पर ले चलती हैं. जैसे गाय-बैलों के गले में बंधी घंटी की रुनझुन-रुनझुन आपको गांव में सुनाई पड़ती है, अपनेपन से भरी कुछ वैसी ही ध्वनि शैलजा की कविताओं से भी टपकती है.   
शैलजा पाठक की कविताओं में रिश्तों की खुशबू है, प्यार के चटख रंग हैं और गांव-घर की यादें हैं. इन कविताओं से गुजरते हुए आपको प्रेम सहेजने का नायाब मंत्र मिलेगा, प्रेम को जीने की जादुई राह दिखेगी. लेकिन इस राह की चमक के साथ कहीं वह अंधेरा भी कुनमुनाएगा जहां बिखरे हुए लोग हैं, उनके टूटे हुए सपने हैं, खोई हुई एक दुनिया है. लेकिन ये खोई हुई दुनिया आपको सताती नहीं, बल्कि अवसर देती है कि आप यादों को खुरच सकें और हर खुरचन में रिश्तों की धमक हो. शैलजा की कविताओं के दो संग्रह आ चुके हैं 'मैं एक देह हूँ फिर देहरी' और 'जहाँ चुप्पी टूटती है'. इसके अलावा छोटी-छोटी टिप्पणियों का एक कथेतर संग्रह भी है 'पूरब की बेटियां'. फिलहाल डीएनए हिंदी के पाठकों के लिए शैलजा पाठक की पांच कविताएं.

1. भीगी है मिट्टी, भीगा है मन 

ताल में चिट्ठियां मत डुबाना
उनके दर्द से कमल का रंग बैगनी हो जाता है 
नदी में मत बहवा देना उन्हें 
नदी तकलीफ से उफन जाती है 
बांध तोड़ कितने मासूम गांव बहा ले जाती है अपने साथ 

मैं तुम्हें समझा रही हूं लड़की 
कि हो सके तो इन्हें जलाना भी मत 
काले बादल उठते हैं 
तीखी आग होती है 
और मुहब्बत अक्षरों में राख हो जाता है 
हवाएं सुबकती हैं देर तक 

मुझे लगता तो ये भी है
कि इन्हें धरोहर की तरह सहेजना भी मत 
तिजोरियां कहां संभाल पाती हैं प्रेम 
दीवारें चुगली कर देती हैं 
सजा पक्के छत की रस्सियों से झूल जाती है 

मैं चाहती हूं 
तुम इन्हें रोप देना
जैसे रोप दिए जाते हैं बीज 
जड़े गहरी और मिट्टी नम रखना 
अपने प्रेम को पेड़ होते देखना
फूलते-फलते देखना 
हवाओं को गीत गाते सुनना 
हरे चुनर को बेखौफ लहरा देना 
पेड़ की किसी डाल पर 
बांध देना झूला 
भीगना, खिलखिलाना 
पैर में आलता लगाना 
धरती में बूंद-बूंद टपकना 

अपने प्रेम को जीना 
जी भर कर 
हां, जरा डर कर 
अब भी बची है अगर
प्रेम में लिखी चिठ्ठी 
तो मेरी जान 
उन्हें रोप दो 

बंजर धरती प्रेम की प्यास में तड़प रही
आसमान पर नहीं उड़े सफेद बादल 
मोर पंख खोलना भूल गए
मुझे यकीन है
जब ये खत बोए जाएंगे 
समय की अल्हड़ नदी चांद से मिलने जाएगी

प्रेम में लिखी चिट्ठियां 
वहीं बाची जाएंगी.

2. सावन में भरी गाड़ियां मायके जा रहीं

ये हर देश दिशा से होकर गुजर रही
ये कस्बे गांव बहनों को आवाज लगा रही 
ये हर छोटे स्टेशन से हाथ पकड़ थकी बहनों को आहिस्ता से चढ़ा रही 
गाड़ी में सवार है पूरी धरती
एक पूरा सौरमंडल
चमकते तारों का आकाश जैसे उल्टा सवार हो गया हो

गीतों से मिट्टी की महक उठ रही 
उछाह से ऐसे भरी जैसे लहलहाती धान की फसल हो
झूम रही
ये सब बहनापा निभा रही 

किसी ने किसी के उलझे बाल सुलझा एक जूड़ा बना दिया
एक ने रंग की शीशी खोली और सबके पैर रंग दिए 
उदास आंखों को काजल लगा रहीं 
साड़ी की बेतरतीब बहन की प्लेट्स बना रही

भाइयों के लिए उनकी पसंद का अचार है 
मीठी पूड़ी है, भरवां मसाला है 
और जतन से रखे पैसों से खरीदा आसमानी कुर्ता है

ये बहुत साल बाद राखी बांधने जा रहीं
ये जा रहीं खूब शिकायतें करने
ये जा रहीं भाभी से लड़ने
ये पिता से रूठ ही जाएंगी अबकी 
ये भतीजे के गले से लग खूब रोएंगी
ये भतीजियों की हथेली पर बताशे रख निहाल हो याद करवाएंगी

क्या नहीं याद आई कभी छोटी बुआ?
क्यों नही जिद्द कर बुलवा लिया 

सावन में भीगती पटरी पर भाग रही गाड़ी 
खिड़की से बौछार आ रही
पेड़ों से टूट रहे पत्ते हाथ हिला रहे
नदियां बल खाकर आशीष रहीं

इस वक्त छाती की गांठ दब गई है
कमर के नीचे कोई दर्द असह्य नहीं है
पैर की उंगलियों में पानी जमा नहीं सड़ा रहा
न फटी बिवाइयों में कसक सी करवट है
न अधूरी नींद की बेचैनी है

झूले के ऊंचे पिंग पर सवार है सपना
दरवाजों पर इंतजार है

सावन की गाड़ी में सवार है भाइयों से झगड़े करने वाली बहनें
गाड़ियों को याद है सबका पता

ये बरसों से लापता बहनों को उनकी छूटी देहरी तक पहुंचाएगी 
ये सब बरसों से छूटे आंगन में हरसिंगार सी बिछ जाएंगी
नए रंग के दीवारों को सहलाएंगी 
भाभी में अम्मा खोजेंगी
खाने की भरी थाली को देख भर जाएंगी 
जैसे नमक का स्वाद ही भूल गई थीं

चमकती पटरी पर भाग रही गाड़ी
नींद उड़ी है
बारिश से भीगे रिश्तों से प्यार बाहें खोल आवाज लगा रहा 

लड़कियां बौराई सी नैहर जा रहीं...

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3. औरतों के किस्से दुनिया में कम न होंगे

तब दर्द बड़े दबे-छुपे होते थे
जब खुल कर रो लेने की लग्जरी भी नसीब नहीं थी
तब जब घर इतना खुला और सीमित था
कि एक कोना भी हमें नहीं गले लगा बैठ सकता था कुछ देर 
तब जब देर शाम तक तरकारियां छीली जाती थीं
जब छौंक का तेल हाथों पर फुलझड़ी की आग सा बरसता था

ऐसे में कोई याद गर गलबहियां डाले झूल जाना चाहे 
तब देवरानी जिठानी को पीढ़े पर बैठा तेल लगाती थीं 
जब ननद का पहला बच्चा खराब हुआ था 
तब भी
जब बुआ को बरसों से ससुराल की कोई खबर न मिलती तब भी 
तब भी जब घर की लड़की किसी के प्यार में होती
पर बाहों में हो जाने को तरस गई होती 

घर के आंगन में ये इलाज किए जाते 
पीढ़ा, तेल और सर दबाना
जैसे दर्द की नस हों वही
सब अबोला
हथेली में तेल उलट बालों को सरकाते
जैसे रग रग को सहलाती औरतें 
ठीक इसी समय रोती थी 
ठीक लंबे बालों के बीहड़ में दर्द दुःख उदासी का शिकार होता 

तन बीमार, मन उदास, हताश जीवन, याद की तड़फड़
सब इस तेल मालिश से संभाले गए 

दर्द में पीतल की एक कटोरी पूरे घर में घूमती 
कभी आग पर चढ़ती
कभी कपूर से महकती 
सिरहाने खाली लुढ़की रहती 

औरतों के सभी दुःख पर दवा बना तेल 
आजकल खत्म सा हो रहा
दुःखों की कोई नई खेती है
आंगन छत से दूर हैं लोग
परेशानियों के हल में जूझ रही आधी आबादी
नए खंजर से मरी जा रही
भयानक है दुःख
गायब है कटोरी
बेचैन है सिरहाना 

बालों से सरकते दर्द ने देह में जगह बना ली 
मूर्ख औरतें
तुम कभी कहीं न बना पाई जगह 

औंधी कटोरी का दुःख देर रात टनकता है 

तुम लोग किधर हो आओ
मैं पीढ़ा तेल लिए
खुले बालों में तुम्हारे हाथ के इंतजार में हूं...

4. थोड़ा सा बादल थोड़ा सा पानी इक कहानी

वो झुंड में थीं
तमाम ममेरी-फुफेरी-चचेरी बहनें 
तब जब किसी शादी ब्याह
किसी जनेऊ के परोजन में सब मिलतीं
सबकी पसंद की अपनी-अपनी जोड़ी
सब जोड़ियों की अपनी-अपनी बातें 
मुझे नहीं याद ये सारी बहनें मिल कर कभी पढ़ाई-लिखाई की बात की हों 
जीवन में कुछ बनने के सपने के बारे में हुई हो बात 
शायद नहीं 
तब रेशमी धागे से भरे होते इनके डब्बे
ये तमाम फूलों को जस का तस मलमल के कपड़ों पर उतार सकती थीं
ये साथ होतीं तो लूट लिए जाते बगीचे के सभी टिकोरे
सुरुक ली जातीं मेहंदी की डाली
खेत में झुंड भर तितली की तरह ये मंडरातीं
कोई गीत सीखतीं
कोई साड़ी बांधना
कोई दाल-पूड़ी को पतला और बड़ा बना कर खुश होती 

और ये सब खुश होतीं तो
छोटी बहन का साज-सिंगार कर देतीं
कोई झूले की चोटी बना देता
कोई गाल पकड़ लगा देता काजल
कोई गाल की पप्पी ले लेता
कोई भर देता छोटे फ्रॉक के घेरे में जामुन-बेर 
ये तबके बचपन वाले दिन थे

फिर बहनें बारी-बारी से एक-दूसरे को विदा करने लगीं
झुंड कम होता गया
चिट्ठियां आती रहीं
कोई खूब लंबी हुई
किसी का रंग दबा ही रह गया
झुंड बिखर जाए तो दुःख अकेले काटने पड़े
बातें करने को कोई न बचा 
सब एक-दूसरे की शादी में अपना बीहउता बनारसी साड़ी पहनीं
कोई बच्चों वाली थी, कोई पेट से
सबने ब्याही जाने वाली की विदाई में आंसू बहाए

सब ब्याही गईं
सबने अपना घर संभाला
सब कम-बेशी खुश और दुःखी रहीं
सबकी खबर मिलते रहने वाले दिन थे फिर
फिर खबरों वाले दिन भी थे
गांव-शहर-कस्बों में बिखरी झुंड की बहनों को 
फिर कोई कार परोजन साथ न ला पाया

किस्मत और भाग्य का जीते हुए सबका जीवन चल रहा है

कि अचानक वो किसी शादी में मोरपंख नीला सूट पहनी बहन के नहीं होने की खबर आती है
अब झुंड की तितलियां अपना-अपना रंग छोड़ दूर देश की हो रहीं 

फिर ये कैसा दुःख मन को खा रहा
कि तमाम चाहतों से भरा जीवन बाजरे की रोटी के रंग की तरह धूसर रह गया
एक अच्छी जिंदगी सुंदर घर आरामकुर्सी पर नॉवेल पढ़ना
पति के साथ पहली रिलीज फिल्म देखना
साड़ी के तमाम रंग को उतार लेना अपनी देह पर
मायके से बनाए रखना संबंध

ये बड़े-बड़े घरों में ज्यादा-ज्यादा दहेज देकर ब्याही बहनें
प्यार को तरसीं 
कभी किसी ने ध्यान नहीं दिया 
पैंतीस साल का जीवन और एक कमबख्त कमजोर देह की चौसठ बीमारियां 
ये मरीं तो इनके उस मोरपंखी नीले सलवार कुर्ते से लिपट
कोई नाचने की चाहना लिए एक मोर मर गया

बहुतबहुत तेज है बारिश
कोई पंछी नहीं पहुंचा घोंसले तक 
कोई कातर आवाज बेचैन किए है

बारी-बारी से छूट रहे बहनों के हाथ
छोटे फ्रॉक में पड़े जामुन के रंग सा हुआ दिल
बड़ी शिद्दत से उन्हें आवाज लगा रहा...

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5. तुम ले गए हो अपने संग नींद भी हमारी

मिट्टी मिलते ही 
लड़की आटा गूथ देती
एक चूल्हा, एक चौका, एक थाली गढ़ती 
मुंडेर पर रखती 
सूरज को कहती जरा तेजी से सुखाए 
उसके बनाए बर्तन 
रात भर चैन ना लेती 
नाखून के सूखे माटी को खुरचती 
सबकी नजर बचा देख आती आंगन का मुंडेर 
बस सूखने ही वाले हैं बर्तन 

लड़का मिट्टी से बनाता चार पहिया 
जंगलों से चुनता लकड़ी 
सजाता बैलगाड़ी 
लड़की अपने बर्तन चौका के साथ 
अपनी गत्ते की गुड़िया लाती 

दोनों आंगन के दूसरे कोने से यात्रा करते हुए
ऊपर छत की बरसाती में पहुंचते 
नीम के पत्तों का कसोरा खट्टी बेर का दोना 
पुड़िया में बंधा चटपटा नमक 

जिंदगी बैलगाड़ी के पीछे भागती लड़की को थका गई गत्ते की गुड़िया कुरूप सी है 

याद के गमछे पर लड़के के साथ लेटी लड़की 
बताती है 
कभी दूर हुई ना, तो उस तरफ वाला तारा बनूंगी 
लड़का आसमान की गहरी नदी में अपनी बैलगाड़ी डुबा देता 
तीखी धूप ने बर्तन को सुखाया नहीं दरका दिया 

समय ने सबसे मोहक तस्वीर खींची 
मेरे शहरी डायरी में जलता है 
कच्ची मिट्टी का चूल्हा 
प्यार की सोंधी महक के साथ...

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DNA Kavita Sahitya: प्रेम में पगी स्त्री का संसार रचती हैं युवा कवि शैलजा पाठक
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