डीएनए हिंदी : हिंदोस्तानी गजल में बहुत सार्थक और चुनौती भरी रचनाएं हो रही हैं. ऐसी ही रचनाशीलता के उदाहरण भवेश दिलशाद हैं. भवेश की गजलों के तीन संग्रह 'सियाह', 'नील' और 'सुर्ख' पुस्तकनामा प्रकाशन से प्रकाशित हुए हैं. इस कलमकार का लंबा समय पत्रकारिता में भी गुजरा है. सेहत और साहित्य की चिंता इनके साथ चलती है.
लेकिन दिलशाद की गजलों की जो खूबी उन्हें 'अलग' श्रेणी में खड़ा करती है उसका संबंध छंद मिलाने से नहीं है. दो पंक्तियों में व्यंग्य करने से भी नहीं. किसी तरह का विवरण देने से भी नहीं है. इन सबसे इतर भाषा के जिस स्तर को छूकर गजल भावनाओं का संसार रचती है, वह आपको दिलशाद में नुमाया होंगी. दिलशाद बाह्य से अधिक आंतरिक संसार पसंद करते हैं और यही गजल की एक ऐसी मंजिल है, जहां पहुंचना हर गजल लिखने वाले के लिए सरल नहीं है. आज DNA Lit में पेश हैं भवेश दिलशाद की 5 गजलें. 

1

चुप रहा मैं तो जात बिगड़ेगी
बोलने से भी बात बिगड़ेगी

यूं भी मुश्किल है यूं भी मुश्किल है
अब तो ये काइनात बिगड़ेगी

कैदे-गम मुझसे इतनी चस्पां है
मुझपे बेशक नजात बिगड़ेगी

जिस्म बेसाया साया हो बेजिस्म
बत्ती गुल कर कि रात बिगड़ेगी

इश्क दिलशाद से न करना था
अब तो तू भी हयात बिगड़ेगी

2

कहां पहुंचेगा वो कहना जरा मुश्किल-सा लगता है
मगर उसका सफर देखो तो खुद मंजिल-सा लगता है

नहीं सुन पाओगे तुम भी खामोशी शोर में उसकी
उसे तनहाई में सुनना भरी महफिल-सा लगता है

बुझा भी है वो बिखरा भी कई टुकड़ों में तनहा भी
वो सूरत से किसी आशिक के टूटे दिल-सा लगता है

वो सपना-सा है साया-सा वो मुझमें मोह-माया-सा
वो इक दिन छूट जाना है अभी हासिल-सा लगता है

कभी बाबू कभी अफसर कभी थाने कभी कोरट
वो मुफलिस रोज सरकारी किसी फाइल-सा लगता है

वो बस अपनी ही कहता है किसी की कुछ नहीं सुनता
वो बहसों में कभी जाहिल कभी बुजदिल-सा लगता है

ये लगता है उस इक पल में कि मैं और तू नहीं हैं दो
वो पल जिसमें मुझे माजी ही मुस्तकबिल-सा लगता है

न पंछी को दिए दाने न पौधों को दिया पानी
वो जिंदा है नहीं बाहिर से जिंदादिल-सा लगता है

उसे तुम गौर से देखोगे तो दिलशाद समझोगे
वो कहने को है इक शाइर मगर नॉविल-सा लगता है

इसे भी पढ़ें : DNA Kavita Sahitya: बेचैनियों से भरीं कवि मुक्ति शाहदेव की छह कविताएं

3

जिद वहीं कामयाब होती है
जहां हर शै अजाब होती है

तुमपे इज्जत जरा नहीं जंचती
हमपे तुहमत खिताब होती है

जो सवालों को कुफ्र ठहराए
वो खुदाई खराब होती है

ख्वाब कमजोर हों निहत्थे हों
दुनिया अजमल कसाब होती है

उन किताबों को अब तो दफ्ना दो
जिनसे मट्टी खराब होती है

जानिए जितना रोइए उतना
अपनी गफलत सवाब होती है

बाकी बकवास होती है दिलशाद
बात लुब्बे-लुबाब होती है

4

कभी तो सामने आ बेलिबास होकर भी
अभी तो दूर बहुत है तू पास होकर भी

तेरे गले लगूं कब तक यूं एहतियातन मैं
लिपट जा मुझसे कभी बदहवास होकर भी

तू एक प्यास है दरिया के भेस में जानां
मगर मैं एक समंदर हूं प्यास होकर भी

तमाम अहले-नजर सिर्फ ढूंढ़ते ही रहे
मुझे दिखाई दिया सूरदास होकर भी

मुझे ही छूके उठाई थी आग ने ये कसम
कि नाउमीद न होगी उदास होकर भी

इसे भी पढ़ें : Book Review:विसंगतियों की नब्ज टटोलती लघुकथाओं का संग्रह- वक़्त कहाँ लौट पाता है

5

न करीब आ न तू दूर जा ये जो फासला है ये ठीक है
न गुजर हदों से न हद बता यही दायरा है ये ठीक है

न तो आशना न ही अजनबी न कोई बदन है न रूह ही
यही जिंदगी का है फल्सफा ये जो फल्सफा है ये ठीक है

ये जरूरतों का ही रिश्ता है ये जरूरी रिश्ता तो है नहीं
ये जरूरतें ही जरूरी हैं ये जो वास्ता है ये ठीक है

मेरी मुश्किलों से तुझे है क्या तेरी उलझनों से मुझे है क्या
ये तकल्लुफात से मिलने का जो भी सिलसिला है ये ठीक है

हम अलग-अलग हुए हैं मगर अभी कंपकंपाती है ये नजर
अभी अपने बीच है काफी कुछ जो भी रह गया है ये ठीक है

मेरी फितरतों में ही कुफ्र है मेरी आदतों में ही उज्र है
बिना सोचे मैं कहूं किस तरह जो लिखा हुआ है ये ठीक है

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर.

Url Title
DNA Ghazal Sahitya Ghazals of Bhavesh Dilshad
Short Title
DNA Ghazal Sahitya : शोर के बीच भी सुनाई देती हैं भवेश दिलशाद की गजलों की चुप्पी
Article Type
Language
Hindi
Section Hindi
Created by
Updated by
Published by
Page views
1
Embargo
Off
Image
Image
गजलगो भवेश दिलशाद.
Caption

गजलगो भवेश दिलशाद.

Date updated
Date published
Home Title

DNA Ghazal Sahitya : शोर के बीच भी सुनाई देती हैं भवेश दिलशाद की गजलों की चुप्पी

Word Count
742