डीएनए हिंदीः केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दिल्ली में तीनों नगर निगमों के मर्जर के लिए संसद में एक विधेयक पेश करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. केंद्र सरकार इस विधेयक को इसी बजट सत्र 2022 के दौरान संसद में पेश पर सकती है. अप्रैल में होने वाले निकाय चुनावों की तारीख की घोषणा करने के लिए राज्य चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस से ठीक पहले केंद्र ने 9 मार्च को राज्य चुनाव आयुक्त एसके श्रीवास्तव को एक मैसेज भेजा था जिसमें तीनों नगर निगम को  'reunify' करने पर विचार का जिक्र था. पढ़ें आरती राय की विशेष रिपोर्ट

केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद तीनों नगर निगमों को एक करने के साथ ही 272 वार्ड ही रखे जाने का फैसला भी लिया गया है. केंद्र सरकार के इस बड़े फैसले के साथ साथ मेयर के कार्यकाल को बढ़ाने पर भी विचार कर रही है. गृह मंत्रालय ने हाल ही में 3 एमसीडी को एकजुट करने के लिए कारणों का हवाला देते हुए कहा कि सैलरी न दे पाने के कारण और संपत्ति का असमान वितरण के कारण कर्मचारियों द्वारा बार-बार हड़ताल करने से नगर निगमों की कमाई और खर्च का ग्राफ बिगड़ गया है. 

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दिल्ली में तीनों MCD को एक करना बहुत जरूरी है. गृह मंत्रालय ने ये भी कहा कि साल 2011 में दिल्ली नगर निगम के डिवीज़न के बाद आय और व्यय को लेकर अंतर काफी बड़ा हो गया. इसके साथ ही अधिकारियों और ओवरहेड खर्च में बढ़ोतरी के कारण निगमों को भारी घाटे का सामना करना पड़ रहा है. 

गृह मंत्रालय ने चुनाव आयोग को लिखे पत्र में कहा कि “चूंकि एमसीडी के चुनाव नज़दीक है, इसलिए राज्य चुनाव आयोग को अवगत कराया जाए कि केंद्र सरकार, संविधान के आर्टिकल  239 AA के प्रावधानों और संविधान में उससे जुड़े और प्रावधानों के अनुसार कानूनी तौर पर दिल्ली के MCD में मौजूद तीन नगर निगमों को मिला कर एक करने पर सरकार विचार कर रही है.   

क्या होगा बदलाव विधेयक की मंजूरी के बाद 
यदि इस विधेयक को संसद में मंजूरी मिल जाती है तो यह अप्रैल में होने वाले निकाय चुनावों से पहले तीनों एमसीडी पूर्व, उत्तर और दक्षिण को एक कर देगा. इससे भाजपा को मदद मिलेगी, जो पिछले 15 साल से तीनों एमसीडी पर शासन कर रही है और आम आदमी पार्टी एक बाद फिर दिल्ली की जनता से बीच रह कर भी नगर निगम की सत्ता से दूर हो जाएगी.    

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2012 में किया गया था विभाजन
दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) का अप्रैल 2012 में शीला दीक्षित सरकार के समय विभाजन किया गया था. दिल्ली नगर के अधिनियम, 1957 को 2012 में संसद ने एमसीडी को तीन भागों में अलग अलग किया गया. तीन एमसीडी को मर्ज करने की बीजेपी की मांग नई नहीं है. बीजेपी ने 2014 और 2017 में भी ये मांग उठाई थी. पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय गोयल ने एमसीडी के मर्जर का पक्ष लेते हुए कहा था कि इससे बेहतर कामकाज होगा. इसके बाद तीन नगर निगम - दक्षिणी दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी), उत्तरी दिल्ली नगर निगम (उत्तरी डीएमसी), और पूर्वी दिल्ली नगर निगम (ईडीएमसी) बनाए गए. 

क्या हुआ विभाजन के बाद 
दिल्ली नगर निगम को तीन निगमों को अलग-अलग करने का एक्सपेरिमेंट अभी तक सफल होता नहीं नज़र आया है. 2012 में शीला दीक्षित की सरकार के समय एमसीडी के विभाजन के प्रस्ताव पास होने के बाद एमसीडी के कामकाज में बड़ा बदलाव दिखाई नहीं दिया. दिल्ली के तीनों नगर निगम पैसे की कमी से लगातार जूझते रहे. कर्मचारियों को वेतन देना मुश्किल हो गया. साल 2011 में जब दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित थीं, तो उन्होंने दिल्ली विधानसभा ने एक प्रस्ताव पास किया था, जिसे केंद्र सरकार ने अपनी स्वीकृति दी थी. इसके बाद तीनों नगर निगमों का पहली बार चुनाव 2012 में हुआ. उस समय दिल्ली और केंद्र दोनों जगहों पर कांग्रेस पार्टी की सरकार थी और नगर निगम में भारतीय जनता पार्टी का राज था.    

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साल  2012  में मर्जर के बाद चुनाव में तीनों नगर निगमों में बीजेपी को शानदार जीत मिली और बीजेपी 272 में से 138 सीट जीत कर एक बार फिर  एमसीडी की सत्ता में शामिल हो गई जबकि कांग्रेस पार्टी को 77 सीटें ही मिली. 2017 में जब दूसरी बार नगर निगम का चुनाव हुआ तो बीजेपी ने एक बार फिर से भारी मतों से जीत दर्ज़ की और बीजेपी के सीटें 138 से बढ़कर 181 पर पहुंच गई. 2017 में पहली बार नगर निगम चुनाव लड़ते हुए आम आदमी पार्टी 49 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही और कांग्रेस 31 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर रही थी.

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MCD के बंटवारे से लेकर मर्जर के प्रस्ताव तक... ऐसा रहा इतिहास
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